Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra
Author(s): Devendramuni
Publisher: SuDharm Gyanmandir Mumbai

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Page 470
________________ १९ दसणविणए आवस्सए य सीलव्वए निरइयारो । खणलवतवच्चियाए वेयावच्चे समाही य ॥ अप्पुन्वनाणगहणे सुयभत्ती पवयणे पहावणया । एएहिं कारणेहि तित्थयरत्तं लहइ जीवो ॥ -ज्ञातृ धर्म कथाङ्ग, सूत्र ११८ १३०. उग्गतवसंजम च ओ, पगिट्टफलसाहगस्सवि जियस्स । धम्मविसए वि सुहुमावि होइ माया अणत्थाय ।। जह मल्लिस्स महाबलभवम्मि, तित्थयर नाम बंधेऽवि । तवविसय थोवमाया, जाया जुवइत्त हेउ त्ति ।। --ज्ञातृधर्म कथाङ्ग ११ १९ १३१. देखिए ज्ञातृ धर्म कथाङ्ग १८ १३२. (क) महावीर चरियं, गुणचन्द्र गा० ५ प० २५१।१ (ख) महावीर चरियं, नेमिचन्द्र गा० ८६ पत्न ५९ (ग) न सर्वविरतेरहः कोऽप्योति विदन्नपि ___ कल्प इत्यकरोत्तन निषण्णो देशना विभुः॥ -प्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र १०।५।१०।६४ १३३. आवश्यक नियुक्ति गा० २८७, पृ० २०९ १३४. दिगम्बर मान्यतानुसार भगवान् महावीर ने केवलज्ञान होते ही उपदेश नहीं दिया। छियासठ दिन के पश्चात् श्रावण कृष्णा प्रतिपदा को जब इन्द्रभूति गौतम उन्हें गणधर के रूप में प्राप्त हुए तब प्रथम दिव्योपदेश दिया। धवल सिद्धान्त और तिलोयपण्णत्ति में प्रस्तुत तिथि को धर्मतीर्थोत्पत्ति तिथि माना है। अवसर्पिणी के चतुर्थकाल के अन्तिम भाग में तेतीस वर्ष आठ माह और पन्द्रह दिन शेष रहने पर वर्ष के श्रावण नामक प्रथम महीने में कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा के दिन अभिजित् नक्षत्र के उदित रहने पर धर्म तीर्थ की उत्पत्ति हई :-- वासस्स पढममासे, पढमे पक्खम्मि सावणे बहले। पाडिवदपुव्वदिवसे तित्थुप्पत्ती दु अभिजम्हि ॥-धवला टीका, प्रथमभाग पृ. ६३ १३५. ज्ञातासूत्र श्रुत० १ अ० १६ १३६. (क) कोसंबि चंदसूरोअरणं । -आवश्यक नियुक्ति गा० ५१६ -२९४ (ख) त्रिषष्टि० १०८।३३७-३५३ प० ११० - १११ साहाविया पच्चक्ख दिस्समाणाणि आरुहेउण । ओयरिया भत्तीए, वंदणवडियाए ससिसूरा ।।९।। तेसि विमाणनिम्मल, मऊह निवहप्पयासिए गयणे । जायं निसिपि लोगो, अवियाणंतो सूणइ धम्मं ॥१०॥ नवरं नाउं समयं, चंदणबाला पवत्तिणी नमिउं । सामि समणोहिं समं, निययावासं गया सहसा ॥११॥ सा पुण मिगावई, जिणकहाए वक्खित्तमाणसा धणियं । एगागिणी चिय ठिया. दिणंति काऊण ओसरण ॥१२॥ --महावीर चरियं (गुणचन्द्र) प्रस्ताव ८--पत्र २७५ १३७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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