Book Title: Agam 33 Prakirnaka 10 Maran Samadhi Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥श्री मरणसमाधि सूत्र। तिहुयणसरीरिवंदं सप्प (५० संघ) वयणरयणमंगलं नमि। सभणस्स उत्तमढे मरणविहीसंगहं वुच्छं ॥१॥ १२३६॥ सुणह सुयसारनिहसं ससमयपरसमयवायनिम्मायो सीसो समणगुणटुं परिपुच्छ३ वायंगं कंची ॥ २॥ अभिजाइसत्तविकमसुयसीलविमुत्तिखंतिगुणकलियो आधारविणयमद्दवविजाचरणागरमुदारं॥ ३॥ कित्तीगुणगब्भहरं जसखाणिं तवनिहिं सुयसमिद्ध सीलगुणनाणदसणचरित्तयणागरं धीरं॥४॥तिविहं तिकरणसुद्धं मयरहियं दुविहठाण पुणरत्तं (रुटुं)विणएण कमविसुद्धं चस्सिरं बारसावत्तं ॥५॥दुओणयं अहाजायं एयंकाऊण तस्स किइकम्मा भत्तीइ भरियहियओ हरिसवसुभिन्नरोमंचो ॥६॥उवएसहेउकुसलं तं पश्यणरयणसिरिघरं भगइ। इच्छामि जाणिजे मरणसमाहिं समासेणं॥७॥अब्भुजयं विहारं इच्छं जिणदेसियं विउपसत्यो नाउं| महापुरिसदेसियं तु अब्भुजयं मरणं॥८॥तुभित्थ सामि! सुअजलहिपारगासमणसंघनिजवया तुझंखुपायमूले सामन्नं उज्जमिस्सामि|| ॥९॥सो भरियमहरजलहरगंभीरसरो निसन्नओ भणहोसुण दाणि धम्मवच्छल! मरणसमाहिं सममासेणं ॥१०॥सुण जह पच्छिमकाले पच्छिमतित्थयरदेसियमुयारं। पच्छ। निच्छियपत्थं उविति अब्भुज्जयं मरणं॥ १॥ पव्वजाई सव्वं काऊंणालोयणं च सुविसुद्ध। શ્રી માણસમાધિ સૂત્ર पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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