Book Title: Agam 33 Prakirnaka 10 Maran Samadhi Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भवस्यसहस्सदुलहे जाइजरामरणसामरुत्ता जिणवयणम्मि गुणागर! खणभविमा काहिसिपमाय॥५॥दव्वेहिं पज्जवेहि य ममत्तसंगेहि | सुविजियप्यानिष्पणयपेमसगो जइ सम्म नेइ मुक्खत्थं ॥६॥एवं कयसलेहं अभिंतरबाहिरम्भिसंलेहे।संसारमुक्खबुद्धी अनियाणो दाणि विहराहि ॥ ७॥ एवं कहिय समाही तहविह संवेगकरणगंभीरो। आउरपच्चक्खाणं पुणरवि सीहावलोएणं॥ ८॥न हु सा पुणरूत्तविही जा संवेगं करेइ भण्णती आउरपच्चक्खाणे तेण कहा जोइया भुजो ॥९॥ एस करेमि पणामं तित्थयराणं अणुत्तरगई। सव्वेसिं च जिणाणं सिद्धाणं संजयाणं च॥ २१०॥ जंकिंचिवि दुच्चरियं तमहं निंदामि सव्वभावेणी सामाइयं च तिविहं तिविहेण करेमऽणागारं॥ १॥ अब्अिंतरं च तह बाहिरं च उवहीं सरीरं सा( रमा) हार। मणवयणकायतिकरणसुद्धोऽहं भित्ति परेमि॥ २॥ बंधपओसं हरिसं रइमरई दीणयं भयं सोगी रागद्दोस विसायं उस्सुगभावं च पयहामि ॥ ३॥ रागेण व दोसेण व अहवा अकयन्नुया पडिनिवेसेणी जो मे किंचिवि भणिओ तमहं तिविहेण खामेमि॥ ४॥ सव्वेसु य दव्वेसु य उवढिओ एस निम्ममत्ताए।आलंबणं च आया दसणनाणे चरित्ते य॥५॥आया पच्चक्खाणे आया मे संजमे तवे जोगो जिणवयणविहिविलगो अवसेसविहिं तु दंसेहि॥६॥ मूलगुण उत्तरगुणा जे मे नाराहिया पाएगीते सव्वे निंदामि पडिक्कमे आगमिस्साणं॥७॥एगो सयंकडाई आया मे नाणंदसणवलक्खो। संजोगलक्खणा खलु सेसा मे बाहिरा भावा ॥८॥पत्ताणि दुहसयाई संजोगगस्सा ( वसा )णुएण जीवेणी तम्हा अणंतदुक्खं चयामि संजोगसंबंधं ॥९॥अस्संजममण्णाणं मिच्छतं सवओ ममत्तं चोजीवेसु अजीवेसु यतं निंदे तं च गरिहामि ॥२२०॥परिजाणे मिच्छत पू. सागरजी म. संशोधित ॥श्री मरणसमाधिसूत्र For Private And Personal Use Only

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