Book Title: Agam 33 Prakirnaka 10 Maran Samadhi Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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| (जड़) असंभंतो ॥ ६ ॥ नवि कारणं तणमओ संथारो नवि य फासुया भूमी । अय्या खलु संथारो होइ विसुद्धो मरतस्स ॥७॥ जिणवयणमणुगया मे होउ भई झाणजोगमल्लीणा। जह तम्मि देसकाले अमूढसनो चए देहं ॥ ८ ॥ जाहे होइ पमत्तो जिणवयणेण रहिओ अणायत्तो। ताहे इंदियचोरा करेंति तवसंजमविलोमं (वं ) ॥ ९ ॥ जिणवयणमणुगयमई जंवेलं होइ संवरपविट्ठी । अग्गीव वायसहिओ समूलडालं डहइ कम् ॥ २९० ॥ जह डहइ वायसहिओ अग्गी हरिएवि रुक्खसंघाए। तह पुरिस्कारसहिओ नाणी कम्मं खयं ने३ ॥ १ ॥ जह अग्गिंमिव पबले खडपुलियं खिष्पमेव झामेइ । तह नाणीवि सकम्मं खवेइ ऊसासमित्तेणं ॥ २ ॥ न हु मरणम्मि उवग्गे सक्को बारसविहो सुयक्खंधो। सव्वो अणुचिंते धंतंपि समत्थचित्तेणं ॥ ३ ॥ इक्कम्मिवि जंमि पए संवेगं कुणइ वीयरागमए । वच्चइ नरो अविग्धं तं मरणं तेण मरितव्वं ॥ ४ ॥ इक्कंमिवि० । सो तेण मोहजालं छिंदइ अज्झम्पओगेणं ॥ ५ ॥ जेण विरागो जायड़ तं तं सव्वायरेण करणिज्जं । मुच्चइ हु ससंवेगी अनंतओ होअसंवेगी ॥ ६ ॥ (प्र० धम्मं जिणपण्णत्तं सम्मत्तमिणं सद्दहामि तिविहेणं । तसथावर भूयहियं पंथं निव्वाणमग्गस्स ॥ १ ॥ ) समणोऽहंतिअ पढमं बीयं सव्वत्य संजओमित्ति। सव्वं च वोसिरामी जिणेहिं जं जंच पडिक्कुटुं ॥ ७॥ मणसाऽविचिंतणिज्जं सव्वं भासाइऽभासणिज्जं चो कारण अ अकरणिजं वोसिरि तिविहेण सावज्जं ॥ ८ ॥ अस्संजमवोसिरणं उवहिविवेगो तहा उवसमो अ। पडिरूवजोगविरिओ खंतो मुत्तो विवेगो अ ॥ ९ ॥ एवं पच्चक्खाणं आउरजण आवईसु भावेणं । अन्नतरं पडिवन्नो जंपतो पावइ समाहिं ॥ ३०० ॥ मम मंगलमरिहंता सिद्धा साहू सुयं च धम्मो यो तेसिं सरणोवगओ पू. सागरजी म. संशोधित
॥ श्री मरणसमाधि सूत्रं ॥
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