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|मरणसमाहिं च ॥ ६॥ स्० २०,१८९५ गाथाः॥ इति श्री भरणविभत्तिपइण्णयं १०॥ प्रभु महावीर स्वामीनीपट्ट परंपरानुसार|| कोटीगण-वैरी शाखा चान्द्रकुल प्रचंड प्रतिभा संपन्न, वादी विजेता परमोपास्य पू. मुनि श्री झवेरसागरजी म.सा. शिष्य बहुश्रुतोपासकसैलाना नरेश प्रतिबोधक-देवसूर तपागच्छ-समाचारी संरक्षक-आगमोध्धारक पूज्यपाद आचार्य देवेश श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी महाराजा शिष्य प्रौढ़ जोपी, सिध्धचक्र आराधक समाज संस्थापक पूज्यपाद आचार्य श्री चन्द्रसागर सूरीश्वरजी म.सा. शिष्य चारित्र चूडामणी, हास्यविजे-मालवीधारक महोपाध्याय श्री धर्मसागरजी म.सा. शिष्य आगमविशारद-नमस्कार महामंत्र समाराधक पूज्यपाद पंन्यासप्रवर अभयसागरजी म.सा. शिष्य शासन प्रभावक-नीडर वक्ता यू. आ. श्री अशोकसागर सूरिजी म.सा. शिष्य परमात्म भक्तिरसभूत आ. श्री जिनचन्द्रसागर सू.म.सा. लघु गुरु भ्राता प्रवचन प्रभावक पू. आ. श्री हेमचन्द्रसागर स.म. शिष्य प. गणिवर्य श्री पूर्णचन्द भागरजी म.सा. आ आगमिक सूत्र अंगे सं.२०५८/५९/६० वर्ध दरम्यान संपादन कार्य माटे महेनत करी प्रकाशक दिने पू. साधीजी म. संस्थापित प्रकाशन कार्यवाहक जैनानंद पुस्तकालय सुरत द्वारा प्रकाशित करेल छे.
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प्रशस्ति
संपादक श्री
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