Book Title: Agam 33 Prakirnaka 10 Maran Samadhi Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 53
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दारिदो तहय पियविप्पओगा अप्पियजणसंपओग॥ ५ ॥ ८॥ एयाणि य अण्णाणि अ माणुस्से बहुविहाणि दुक्खाणि। ५च्चक्वं|| पेक्खंतो को न मरइ तं विचितंतो? ॥ ९॥ लघृणवि माणुस्सं सुदुल्लहं केइ कम्मदोसेण। सायासुहमणुरत्ता भरणसमुद्देऽवगाहिति ॥६५०॥ते। उ इहलोगसुहं मोत्तूणं मा (झा )संसियमईओ।विरतिक्खभरणऽभीरू लोगसुईकरणदोगुंछी॥१॥दारिददुक्खवेयणबहविहसीउण्हखुप्पिवासाणी अरईभयसोगसाभियतकरदुभिक्खमरणाई ॥२॥ एएसिं तु दुहाणं जं पडिवक्खं सुहंति तं लोए। जं पुण अच्चंतसुहं तस्स पक्खा सया लोया॥३॥ जस्स न छुहा ण तण्हा न य सीउण्हं न दुक्खमुक्किट्ठन य असुइयं सरीरं तस्सऽसणाईसु किं कज? ॥४॥जह निंबदुभुप्पन्नो कीडो कडुयंपि मन्नए महुरं। तह मुक्खसुहपरूक्खा संसारदुहं सुहं बिंति॥५॥जे कडुयदुमुपन्ना कीडा वरकस्यपायवपरूक्खा तेसिं विसालवल्ली विसं व सग्गो यमुक्खो य॥६॥तह परतिस्थ्यिकीडा विसयविसंकुविभूढदिट्ठीया।। जिणसासणकप्पतरूवरपारूक्खरमा किलिस्संति ॥ ७॥ तम्हा सुक्खमहातरुसासयसिवफलयसुक्खसत्तेणं। भोत्तू लोगसणणं पंडियभरणेण मरियध्वं ॥८॥जिणमयभाविअचित्तो लोगसुईमलविरयणं का धम्मंमि तओ झाणे सुक्के यमई निवेसेह ॥९॥सुणह जह जिणवयणामय(रस)भावियहियएण झाणवावारो कणिजो समणेणं जं झाणं जेसुझायव्वं ॥६६॥इति संले( आरा )हणासुयं॥ एयं भरणविभत्तिं मरणविसोहिं च नाम गुणस्यण मरणसमाही तइयं संलेहणसुयं चउत्थं च॥१॥पंचम भत्तंपरिण्णा छटुंआउरपच्चक्खाणं चोसत्तम महपच्चखाणं अट्ठम आराहणपइण्णो ॥२॥इमाउ अट्ट सुयाओ भावे गहियंमिलेस अत्थाओओमरणविभत्ती रइयं बिय नाम | ॥श्री मरणसमाथि सूत्र॥ | पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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