Book Title: Agam 33 Prakirnaka 10 Maran Samadhi Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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सत्तो? किं वातियमुवमाए जिणगण घर2श्चरिएसुं ॥५॥ किं चित्तं जइ नाणी सम्मट्टिी करंति उच्छाही तिरिएहिवि दुरणुचरो । केहिविअणुपालिओ धम्मो॥६॥अरूणसिंह ददुणं मच्छो सभणी महासमुद्दम्मिोहाण गंहिउत्ति काले झस( ड )त्ति संवेगमावण्णो॥७॥ अपाणं निदंतो उत्तरिऊणं महन्नवजलाओ॥सावजजोगविरओ भत्तपरिणं करेसीय ॥८॥खगतुंडभिन्नदेहो दूसहसूरग्गितावियसरीरो। कालं काअण सुरो उववन्नो एव सहणिज॥९॥ सो वानरजूहवई कंतारे सुविहियाणुकंपाए। भासुरवरबुदिधरो देवो वेमाणिओ जाओ॥५१०॥ तं सीहसेणगयवरचरियं सोऊण दुक्करं रण्णेको हु णु तवे पमायं करेज जाओ मणुस्सेसुं?॥१॥ भुयगपुरोहियडक्को राया मरिऊण सल्लइवणम्मिो सुपसत्थगंधहत्थी बहुभयगयभेलणो जाओ॥ २॥ सो सीहचंदमुणिवरपडिमापडिबोहिओ सुसंवेगो।। पाणवहालियचोरियअब्बभपरिगहनियत्तो॥३॥रागहोसनियत्तो छटुक्खमणस्स पारणे ताहे।आससिऊणं पंडं आयवत्ततं जलं पासी॥ ४॥ खमगत्तणनिम्मंसो धमणिसिरोजालसंतयसरीरो। विहरिय अप्पप्याणो मुणिउवएसं विचिंतंतो॥५॥सो अन्नया णिदाहे पंकोसन्नो वणं निरुत्थारो। चिरवेरिएण दट्ठो कुकुडसपेणं धोरेण॥ ६॥ जिणवयणमणुगुणितो ताहे सव्वं चव्विहाहा। वोसिरिऊण गइंदो भावेण जिणे नमंसीय ॥७॥ तत्थ यवणयरसुरवरविम्हियकीरतपूयसकारो मझत्थो आसी किर कलहेसु य जज्जरिजंतो ॥८॥सम्म सहिऊण तओ कालगओ सत्तमंमि कम्पम्मिा सिरितिलयम्मि विभाणे उक्कोसठिई सुरो जाओ॥९॥सुयदिट्ठिवायकहियं एयं अक्खाणयं निसाभित्ता। पंडियभरणम्मि मई दढं निवसिज भावेणं॥५२॥ जिणवयणमणुस्सट्ठा दोवि भुयंगा महाविसा घोराकासीय कोसिया | ॥श्री मरणसमाधि सूत्र।
पू. सागरजी म. संशोधित
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