Book Title: Agam 33 Prakirnaka 10 Maran Samadhi Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अहं चएगाणिओ इहं पाणी वसिओऽहं तिरियत्ते बहुसोएगागिओरण्णे॥३॥वसिऊणविजणमझे वच्चइ एगागिओ इमो जीवोll मुत्तूण सरीरधरं मच्चुमुहा कडिओ संतो॥४॥जह बीहंति य जीवा विविहाण विहासियाण एगागी। तह संसारगएहिं जीवेहिवि हेसिया अन्ने ॥ ५॥ सावयभयाभिभूओ बहूसु अडवीसु निरभिरामासु। सुरहिहरिणहिससूयर करवोडियाक्खछायासु ॥६॥ गयगवयखग्गगंडयवग्धतरच्छच्छ भल्लचरियासु। भल्लुकिकंकदीवियसंचरसब्भावकिण्णासुं॥ ७॥ मत्तगइंदनिवाडियभिल्लपुलिंदाविकुंडियवणासुंोवसिओऽहं तिरियत्ते भीसणसंसारचारम्मि ॥८॥कत्थ्य मुद्धमिगत्ते बहुसो अडवीसु पयइविसमासुग्धमुहावडिएणं रसियं अइभीयहियएणं॥९॥कथइ अइदुप्पिक्खो भीसणविगरालघोरवयणोऽहोआसि महंविय वग्धोरूरुमहिसवराहविद्दवओ॥५६०॥ कत्थई दुविहिएहिं रक्खसवेयालभूयरूवेहिं । छलिओ वहिओ य अहं मणुस्सजम्भभ्भि निस्सारो॥१॥पयइकुडिलम्मि कत्थइ संसारे पाविऊण भूयत्ती बहुसो उब्वियमाणो भएवि बीहाविया सत्ता॥२॥ विरसं आरसमाणो कत्थइ रण्णेसु घाइओ अहयो सावयगहणम्मि वणे भयभीरू खुभियचित्तोऽहं ॥३॥पत्तं विचित्तविरसं दुक्खं संसारसागरगएणी रसियं च असरणेणं क्यंतदंतंतरगएणं॥४॥ तइया कीस न हाय जीवो जड़या सुसाणपरिविद्ध भलंकिकंकवायससएस ढोकिज्जए देहं॥५॥ता तं निजिणिऊणं देहं भुत्तण वच्चा जीवो। सो जीवो अविणासी भणिओ तेलुक्कदंसीहिं ॥६॥ तं जइ ताव न मुच्चइ जीवो मरणस्स उब्वियंतोऽवि। तम्हा मझ न जुज्जइ दाऊणभ्यस्स अप्याणं ॥७॥एवमणुचिंतयंता सुविहिय! जरमरणभावियमईया।पावंति क्यपयत्ता मरणसमाहिं महाभागा॥८॥एवं ॥श्री मरणसमाधि सूत्र
| पू. सागरजी म. संशोधिता
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57