Book Title: Agam 33 Prakirnaka 10 Maran Samadhi Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 42
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |जोगसंगहउवहाणक्याणयभि कोसंबी। रोहगावतिसंणो रुझेइ भगिप्पभी भासौर इन्भासं) ॥ ४॥ धम्मगसुसीसजुयलं थमजसे|| तत्य रणदेसम्मि। भत्तं पच्चक्खाइय सेलमि उ वच्छगातीरे ॥५॥निम्ममनिरहंकारो एगागी सेलकंदरसिलाए। कासी य उत्तमढे सो भावो सव्वासाहूणं ॥६॥ उहम्मि सिलावट्टे जह तं अहण्णएण सुकुमाली विग्धारियं सरीरं अणुचिंतिजा तमुच्छाहं॥७॥ गुब्बर पाओग3) सुबुद्धिा णिग्घिणेण चाणको। दड्डो न य संचलिओ सा हु थिई चिंतिणिज्जा 3 ॥८॥ जह सोऽवि सम्पएसी/ दोमानसितदेहो उ। वंसीपत्तेहिं विनिग्गएहिं आगासमुक्खित्तो॥९॥जह सा बत्तीसघडा वोसट्ठनिसढचत्तदेहा धीरावाएण दीवएणविगलिभिम ओलइया॥ ४८०॥जंतेणकरकएणवसत्थेहिं वसावएहिं विविहेहि। देहे विद्धस्संते ईसिपिअकप्पणारू(झ)मणा ॥१॥ पडिणीययाइ केसिं चम्मंसे खीलएहिं निहणित्ता। मध्यमक्खियदेहे पिवीलियाणं तु दिजाहि ॥२॥ जेण विरागो जायइ तं तं सव्वायरेण करण्णिजी सुव्वइ हु ससंवेगो इत्थ इलापुत्तदिटुंतो ॥ ३॥ समुइण्णेसु य सुविहिय! धोरेसु परीसहेसु सहणेणी सो अत्थो सरणिजो जोऽधीओ उत्तरायणे॥४॥ उज्जेणि हस्थिमित्तो सत्थसमग्गो वणम्मि कट्टेणोपायहरो संवरण चिल्लग भिक्खा वण सुरसुं ॥५॥ तत्थेव य धणभित्तो चेल्लगमरणं नईइ तहाए। निच्छिण्णेसुऽणजत बिंटियविस्सारणं कासी ॥६॥ मुणिचंदेण विदिण्णस्स रायगिहि परीसहो महाधोरो। जत्तो हरिवंसविहूसणस्स वुच्छं जिणिंदस्स ॥ ७॥ रायगिहनिग्गया खलु पडिमापडिवनगा मुणी चउरो। सीयविहूय कमेणं पहरे पहरे गया सिद्धिं ॥८॥उसिणे तगर रहना चंपा मसएसु सुमणभद्दरिसी खमसमण अजरक्खिय अचेलयत्ते || ॥श्री भरणसमाधि सूत्र॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57