Book Title: Agam 33 Prakirnaka 10 Maran Samadhi Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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सुट्टियथेरसगासे निक्खंता खायकित्तीया ॥८॥ जिट्ठो चउदसपुव्वी चउरो इकारसंगवी आसी। विहरिय गुरुस्सगासे|| जसपाहतजियलोया॥९॥ ते विहरिऊण विहिणा नवरि सुटुं कमेण संपत्ता। सोउं जिणनिव्वाणं भत्तपरिन्नं करेसीय॥ ४६०॥ घोराभिगहधारी भीभो कुंतागगहियभिक्खाओ। सत्तुंजयसेलसिहरे पाओवाओ गयभवोधो॥१॥ पुव्वविराहियवंतरउवसग्गसहस्समारुयनगिंदो।अविकंपो आसि मुणी भाईणं इक्कपासम्मि २॥दो मासे संपुण्णे सम्म धिइधणियबद्धकच्छाओ।ताव उवसग्गिओ सो जाव 3 परिनिव्वुओ भगवं ॥३॥ सेसावि पडुपुत्ता पाओवगया 3 निव्वुया सव्वे एवं धिइसंपन्ना अण्णेवि दुहाओ मुच्चंति॥४॥ दंडोविय अणगारो आयावणभूमिसंठिओ वीरो। सहिऊण बाणघायं सम्मं परिनिव्वुओ भगवं॥ ५॥ सेलमि चित्तकूडे सुकोसलो सुट्ठिओ उ पडिमाए। नियजणणीए खइओ वग्धीभावं उवग्याए ॥६॥पडिमाय गओ अमुणी लंबं सुठिओ बहूसु ठाणेसुं। तहविय अकलुसभावो सा हु खमा सव्वासाहूणं ॥ ७॥ पंचसयापरिवुडया वइररिसी पव्वए रहावत्ते। मुत्तूण खुड्डगं किर अन्न गिरिमस्सिओ सुजसो॥८॥ तत्थ यसो उवलतलेएगागी घीरनिच्छयमईओ।वोसिरिऊण सरीरं उण्हम्मि ठिओ वियप्या (विगयपा) णो॥९॥ता सो अइसुकुमालो दिणयरकिरणग्गितावियसरीरो। हविपिंड्डव विलीणो उववण्णो देवलोयम्मि॥ ४७०॥ तस्स य सरीरपूयं कासीय रहेहि लोगपाला । तेण रहावत्तगिरी अजवि सो विस्सुओ लोए॥१॥ भगवंपि वइरसामी बिइयगिरीदेवयाइ क्यपूओ।संपूइओऽत्थ मरणे कुंजरभरिएण सकेणं॥ २॥ पूइयसुविहियदेहो प्याहिणं कुंजरेण तं सेलो कासीय सुरवरिंदो तम्हा सो कुंजरावत्तो ॥ ३॥ तत्तो य ॥ ॥ श्री मरणसमाधि सूत्र
पू. सागरजी म. संशोधित
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