Book Title: Agam 33 Prakirnaka 10 Maran Samadhi Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra | छिन्ना ते सीयलजलेहिं ॥ ३ ॥ तिविहेणवि सुहभउलं जम्हा कामरइविसयसुक्खाणं । बहुसोऽवि समणुभूयं न य तुह तण्हा परिच्छिण्णा ॥ ४ ॥ जा काइ पत्थणाओ क्या भए रागदोसवसरणं । पडिबंधेण बहुविहा तं निंदे तं च गरिहामि ॥ ५ ॥ हंतूण मोहजालं छित्तूण य अटुकम्मसंकलिय। जम्मणमरणरहट्टं भित्तूण भवा णु मुच्चिहिसि ॥ ६ ॥ पंच य महव्वयाइं तिविहंतिविहेण आरुहे ऊणं । मणवयणकायगुत्तो सज्जो मरणं पडिच्छिज्जा (लहिज्जा ) ॥ ७॥ कोहं माणं मायं लोहं पिज्जं तहेव दोसं च। चइऊण अप्पमत्तो रक्खामि महव्वए पंच ॥ ८ ॥ कलहं अब्भक्खाणं पेसुन्नंपिय परस्स परिवार्य । परिवज्जिंतो गुत्तो रक्खामि० ॥ ९ ॥ किण्हा नीला काऊ लेसा झाणाणि अप्पसत्याणि। परिवज्जितो गुत्तो० ॥ २६० ॥ तेऊ पम्हं सुक्कं लेसा झाणाणि सुम्पसत्याणि। उवसंपन्नो जूत्तो रक्खामि० ॥ १ ॥ पंचिंदियसंवरणं पंचेव निरंभिऊण कामगुणे। अच्चासायणविरओ रक्खामि० ॥ २॥ सत्तभयविष्णुमुक्को चत्तारि निरुंभिऊण य कसाए। अट्ठमयट्ठाणजड्ढो रक्खामि० ॥ ३॥ मणसा मणसच्चविऊ वायासच्चेण करणसच्चेण । तिविहेण अप्पमत्तो रक्खामि० ॥ ४ ॥ एवं तिदंडविरओ तिकरणसुद्धो तिसल्ल निस्सल्लो। तिविहेण अप्पमत्तो रक्खामि० ॥ ५ ॥ सम्मत्तं समिईओ गुत्तीओ भावणाओ नाणं च । उवसंपन्नो जुत्तो रक्खामि० ॥ ६ ॥ संगं परिजाणामि सल्लंपि य उद्धरामि तिविहेणं। गुत्ती ओ समिईओ मज्झं ताणं च सरणं च ॥ ७ ॥ जह खुहियचक्कवाले पोयं रयणभरियं समुद्दम्मि । निज्जामया धरिती कयकरणा बुद्धिसंपण्णा ॥८॥ तवपोअं गुणभरियं परीसहम्मीहि धणियमाइद्धं। आराहिंति तह विऊ उवएस ज्वलंबगा धी। ॥ ९ ॥ जइ ताव ते सुपुरिसा आयारोवियभरा निश्वयक्खा। गिरिकुहर कंदर गया पू. सागरजी म. संशोधित ॥ श्री मरणसमाधि सूत्रं ॥ १७ www. kobatirth.org For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir

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