Book Title: Agam 33 Prakirnaka 10 Maran Samadhi Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 31
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सावज वोसिरामित्ति॥१॥ इति सिरिमरणविभत्तिसुए संलेहणासुयं समत्तं १॥ अथ आराहणासुयंसिद्ध उवसंपन्नो अरिहंते केवली अभावेणी इत्तो एगतरेणवि पएण आराहओ होइ ॥२॥ समुइन्नवेयणो पुण समणो हिययभिम किं निवेसिज्जा आलंबणं च काई काऊण मुणी दुहं सहइ?॥३॥ नरएसु अणुत्तरेसु अअणुत्तरा वेयणाओ पत्ताओ। वहतेण पमाए ताओवि अणंतसो पत्ता। ४॥एयं सयं कयं मे रिणव कम्मं पुरा असायं तु। तमहं एस थुणामी मणमि सत्त निवेसिजा॥५॥ नाणाविहदुक्खेहि य समुइन्नेहि ३ सम्म सहणिजीन य जीवो 3 अजीवो क्यपुव्वो वेयणाईहिं ॥६॥अब्भुजयं विहारं इत्थं जिणदेसियं विउपसत्य। नाउँ महापुरिससेविय जं अब्भुजयं मरणं॥ ७॥ ज(अ)ह पच्छि मम्मि काले पच्छिमतित्थयरदेसियमुयारी पच्छानिच्छयपत्थं उवेइ अब्भुजयं मरणं॥८॥छत्तीसमट्टि ( मंडि) याहि य कडजोगी जोगसंगहबलेणी उजमिऊणं बारसविहेण तवनियमठाणेणं ॥९॥ संसाररंगमज्झे धिइबलसन्नद्धबद्धकच्छाओ। हंतूण मोहमलं हराहि आराहणपडागं | ॥३१०॥पोराणयं चकमंखवेइ अन्ननबंधणायायोकम्मकलंकलवल्लिं छिंदइ संथारमारूढो॥१॥धीरपुरिसेहिं कहियंसप्पुरिसनिसेवियं परमधोरं। उत्तिण्णोमि हु रंग हरामि आराहणपडागं ॥ २॥ धीर! पडागाहरणं करेहि जह तंसि देसकालम्मिा सुत्तत्थमणुगुणिं तो थिइनिच्चलबद्धकच्छाओ ॥३॥ चत्तारि कसाए तिन्नि गारखे पंच इंदियग्गामे। जिणि पीसहसहे हराहि आराहणपडाग॥ ४॥न य मणसा चिंतिजा जीवामि चिरं मरामि व लहंतिीजइ इच्छसि तरिउ जे संसारमहोअहिमपारं ॥५॥जइ इच्छसि नीसरिसव्वेसिं चेव ॥श्री मरणसमाथि सूत्र | पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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