Book Title: Agam 33 Prakirnaka 10 Maran Samadhi Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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|एवं बहुप्पयारं तु अवायं उत्तमढकालम्मिा दंसंति अवायण्णू सल्लुद्धरणे सुविहियाणं॥३॥ दितिय सि उवासं गुरुणो नाणाविहेहिं|| हेअहिं । जेण सुगई भयंतो संसारभयहुओ (हुहो) होई॥४॥न हु तेसु वेयणं खलु अहो चिरम्मित्ति दारूणं दुक्खी सहणिज्ज देहेणं मणसा एवं विचिंतिजा॥५॥ सागरतरणत्थमई इयस्स पोयस्स जए (उज्जवे) धूवे। जो रज्जु (रक्ख ) मुक्खकालो न सो विलंबत्ति कायवो ॥६॥ तिल्लविहूणो दीवोन चिरं दिप्पई जगमि पच्चक्खान यजलरहिओ मच्छो जिअइ चिरं नेवपउमाई॥७॥अन्नं इम सरीरं अन्नोऽहं इय मणभिम ठाविजाजं सुचिरेणऽविमोच्चं देहे को तत्थ पडिबंधो? ॥८॥ दूरस्थंपि विणासं अवस्सभावं उवट्ठियं जाणोजो अह वट्टइ कालो अणागओ इत्थ आसिण्हा ॥९॥जं सुचिरेणवि होहिइ अणावसं तंमि को ममीकारो?।देहे निस्संदेहे पिएवि सुयणतणं नत्थि ॥ ३७०॥उवलद्धो सिद्धिपहो न य अणुचिण्णा मायदोसेणी हा जीव! अपवेरिय! न हु ते एयं न तिप्पिहिइ ॥१॥ नस्थि य ते संध्यणं धोरा य परीसहा अहे निरया। संसारो य असारो अइप्यमाओ य तं जीव! ॥ २॥ कोहाइकसाया खलु बीयं संसारभेरवदुहाणी तेसु पमत्तेसु सया कत्तो सुक्खो य मुक्खो वा? ॥३॥जाओ परव्वसेणं संसारे वेयाओ घोराओ। पत्ताओ नारगत्ते अहुणा ताओ विचिंतिजा॥४॥ इण्हिं सयं वस्सिस उ निरुवमसुक्खावसाणमुहदूयं (कडुयं)। कल्लाणमोसहं पिव परिणामसुहं न त दुक्खं॥५॥ संबंभि बंधवेसु अन अ अणुराओ खणंपि कायव्वो। तेच्चिय हुंति अभित्ता जह जणणी बंभदत्तस्स॥ ६॥ वसिऊण वसहिमझे वच्चइ एगाणिओ इमो जीवो। मोत्तूण सरीरधरं जह कण्हो मरणकालम्मि॥७॥ इण्हिं व मुहुत्तेणं गोसे व सुए व अद्धरते ॥ ॥ श्री मरणसमाधि सूत्र॥
पूि. सागरजी म. संशोधित
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