Book Title: Agam 33 Prakirnaka 10 Maran Samadhi Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 36
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वो जस्सन नजइ वेला कदिवसं गच्छिई जीवो? ॥८॥ एवमणुचिंतयंतो भावणुभावाणुरत्त सियलेसो। तद्दिवस मरिउकामो व होई| आणम्मि उज्जुत्तो॥ ९॥ नरगतिरिक्खगईसु अ माणुसदेवत्तणे वसंतेणी जं सुहदुक्खं पत्तं तं अणुचिंतिज संथारे॥ ३८०॥ नरएसु वेयणाओ अणोवमा सीयउण्हवेरा(गा)ओ। कायनिमित्तं पत्ता अणंतखुत्तो बहुविहाओ ॥१॥ देवत्ते माणुसत्ते पाहिओगत्तणं उवगएणी दुक्खपरिकेसविही अणंतखुत्तो समणुभूया॥२॥ भिन्निंदियपंचिंदियतिरिक्खकायम्मि णेगसंठाणी जम्मणभरणऽरहट्टे | अणंतखुत्तो गओ जीवो॥ ३॥ सुविहिय! अईयकाले अणंतकाएसु तेण जीवेणी जम्भणमरणमणंतं बहुभवगहणं समणुभूयं ॥ ४॥ घोरम्भि गब्भवासे कलमलजंबालअसुइबीभच्छे। वसिओ अणंतखुत्तो जीवो कमाणुभावेणं॥५॥ जोणीमुह निग्गच्छतेणं संसारे इमे ( रिमे) ण जीवेणी रसियं अइबीभच्छं कडीकडाहतरगएणं ॥६॥जं असियं बीभच्छं असुईधोरम्मि गब्भवासम्मि। तं चिंतिऊण सयं मुक्खम्मि मई निवेसिज्जा ॥७॥ वसिऊण विमाणेसु य जीवो पसरंतमणिमहेसुविसिओपुणोवि सुच्चिय जोणिसहस्संध्यारेसुं॥८॥ वसिऊण देवलोए निच्चुज्जोए सयंपभे जीवो। वसइ जलवेगकलमलविउले वलयामुहे घोरे ॥ ९॥ वसिऊण सुरनरीसरचाभीयररिद्धिमणहरघरेसु। वसिओ नरग निरंतरभयभेरवपंजरे जीवो ॥ ३९०॥ वसिऊण विचित्तेसु अविमाणगणभवणसोभसिहरेसु। वसई तिरिएसु गिरिगुहविवरमहाकंदरदरीसु॥१॥भुत्तूणवि भोगसूहं सुरनरखयरेसु पुण पमाणोपियइ नरएसु भेरवकलंततउतंबपाणाई॥२॥ सोऊण मुइयणरवइभवे अजयसहभंगलरवोघोसुणइ नरएसु दुहपअकंदुद्दामसहाई ॥३॥निहण हण गिण्ह दय पय उब्बंध पबंध बंध || ॥श्री मरणसमाधि सूत्र | पू. सागरजी म. संशोधित ||| For Private And Personal Use Only

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