Book Title: Agam 33 Prakirnaka 10 Maran Samadhi Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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||फासेहंति चरित्तं सव्वं सुहसीलयं पजहिणीघोरं परीसहच अहियासिंतो धिइबलेणं॥५॥सद्दे रुवे गंधे रसे अफासे अनिधिणधिईए|| सव्वेसु कसाएसु अनिहंतु परमो सया होहि ॥६॥चइऊण कसाए इंदिए असव्वेअगारवे हंतुी तो मलियरागदोसो करेह आराहणासुद्धि ॥७॥दसणनाणचरित्ते पव्वजाईसु जो अ अइयारो। तं सव्वं आलोयहि निरवसेसे पणिहियथ्या॥ ८॥ जह कंटएण विद्धो सव्वंगे वेयणदिओ होइ। तह चेव उद्धियंमि उ निस्सल्लो निव्वुओ होइ॥९॥ एवमणुद्धियदोसो माइल्लो तेण दुक्खिओ होइ।सो चेव चत्तदोसो सुविसुद्धो निव्वुओ होइ॥५०॥ रागहोसाभिहया ससल्लमरणं मरति जे मूढा। ते दुक्खसल्लबहुला भमंति संसारकंतारे॥१॥ जे पुण तिगारवजढा निस्सला सणे चरित्ते याविहरंति मुक्कसंगाखवंति ते सव्वदुक्खाई ॥२॥सुचिरमविसंकिलिटुं विहरितं झाणसंवरविहीणी// नाणी संवरजुत्तो जिणइ अहोरत्तभित्तेणं ॥३॥जं निजरेइ कम्म असंवुडो सुबहुणाऽवि कालेणीतं संवुडो तिगुत्तो खवेइ ऊसासभित्तेणं | ॥४॥सुबहुस्सुयाविसंता जे मूढा सीलसंजमगुणेहि न करति भावसुद्धिं ते दुक्खनिभेला हुंति ॥५॥जे पुण सुयसंपन्ना चरित्तदोसेहि नोवलिप्पंतिते सुविसुद्धचरित्ता करंतिदुक्खक्खयं साहू ॥६॥पुवमकारियजोगो समाहिकामोऽवि मरणकालम्मिान भवइ परीसहसहो| विसयसुहपराइओ जीवो ॥७॥ तं एवं जाणतो महत्तरं लाहगं सुविहिए।दसणचरित्तसुद्धीइ निस्सल्लो विहर तं धीर! ॥८॥ इत्थ पुण भावणाओ पंच इमा हुंति संकिलिट्ठाओ।आराहत सुविहिया जा निच्चं वजणिज्जाओ ॥९॥ कंदप्पा देवकिदिवस अभिओगा आसुरी यसंमोहा। एयाउ संकिलिहा असंकिलिट्ठा हवइ छट्ठा ॥६०॥ कंदप्प कोकुयाइय दवसीलो निच्चहासणकहाओ। विम्हावितो उ परं | ॥श्री मरणसमाधि सूत्र॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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