Book Title: Agam 33 Prakirnaka 10 Maran Samadhi Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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कालकरणंचोपुरिसंजीअंच तहा खित्तं पडिसेवणविहिं च ॥५॥ जोगंपायच्छितं तस्स अदाऊण बिंति आयरियादिसणनाणचरित्ते|| तवे अ कुणमप्यमायंति ॥६॥अणसणभूणोयरिया वित्तिच्छेओ रसस्स परिचाओ। कायस्स परिकिलेसो छट्ठो संलीणया चेव ॥७॥ विणए वेयावजे पायच्छित्ते विवेग सम्झाए। अभिंतरं तवविहिं छठें झाणं वियाणाहि ॥ ८॥ बारसविहम्मिवि तवे अभिंतरबाहिरे| कुसलदिढे। नवि अस्थि नवि य होही सज्झाय समं तवोकम्म ॥ ९॥ जे पयणुभत्तपाणा सुयहेऊ ते तवस्सिणो समए। जो अतवो सुयहीणो बाहिरयो सो छुहाहारो ॥ १३०॥ छहमदसमदुवालसेहिं अबहुसुयस्स जा सोही। ततो बहुतरगुणिया हविज जिमियस्स नाणिस्स ॥१॥कल्लं कलंपि वरं आहारो परिमिओ अपंतो औनयखमणो पारणए बहु बहुतरो बहुविहो होइ ॥२॥एगाहेण तवस्सी हविज नत्थित्थं संसओ कोइाएगाहेण सुयहरो न होई धंतपि तूरमाणो ॥३॥सो नाम अणसणतवो जेण मणो मंगुलं न चिंतेइ जेण न इंदियहाणी जेणय जोगा नहायति ॥४॥जं अन्नाणी कम्मं खवेइ बहुआहिं वासकोडीहितं नाणी तिहिं गुत्तो खवेइ ऊसासभित्तेणं॥ ५॥ नाणे आउत्ताणं नाणीणं नाणजोगजुत्ताणं । को निजरं तुलिजा चरणे य परक्कमंताणं? ॥ ६॥ नाणेण वजिणिज्ज वजिजइ किजई य करिणजी नाणी जाणइ करणं जमकजं च वजे॥७॥ नाणसहियं चरित्तं नाणं संपायगं गुणसयाणी एस जिणाणं| आणा नस्थि चरित्तं विणा णाणं॥८॥नाणं सुसिक्खियव्वं नरेण लथूण दुल्लहं बोहिं। जो इच्छइ नाउ जे जीवस्स विसोहणाभग्गं ॥ ९॥ नाणेण सव्वभावा णजंती सव्वजीवलोयंमिी तम्हा नाणं कुसलेण सिक्खियव्वं पयत्तेणं ॥ १४०॥ नहु सका नासे नाणं ॥श्री मरणसमाधि सूत्र
पू. सागरजी म. संशोधित
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