Book Title: Agam 33 Prakirnaka 10 Maran Samadhi Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir पायमूले अविसोही करणिजा सुविहिजणेणं॥ ३॥ काइयवाइयमाणसियसेवणं दुप्पओगसंभूयं । जो अइयारो कोई तं आलोए| अगूहितो ॥४॥अमुगंमि इओकाले अभुगत्थे अभुगगामभावेणीजंजह निसेवियं खलुजेण यसव्वं तहाऽऽलोए ॥५॥मिच्छादसणसल्लं मायासलं नियाणसल्लं च तं संखेवा दुविहं दव्वे भावे य बोद्धव्वं ॥ ६॥ वि(ति)विहं तु भावसल्लं दंसणनाणे चरित्तजोगे यो सच्चित्ताचित्तेऽविय मीसए यावि दव्वंमि॥ ७॥ सुहुमंपि भावसल्लं अणुद्धरित्ता 3 जो कुणइ कालो लजाय गारवेण य नहु सो आराहओ भणिओ ॥८॥तिविहंपि भावसल्लं समुद्धरित्ता 3 जो कुणइ काली पव्वजाई सम्मं स होइ आराहओ भरणे॥९॥ तम्हा सुत्तरमूलं अविकूलमवियं अणुविग्गो निम्मोहियमणिगूढं सम्मं आलोअए सव्वं॥ १००॥जह बालो जंपंतो कजमकजं च उजुयं भणइ। तं तह आलोएज्जा मायामयविष्यमुक्को य ॥१॥ कयपावोऽवि मणूसो आलोइय निंदिउं गुरुसगासे। होइ अइरेगलहओ ओहरियभरोव्व भारवहो॥२॥ लज्जाइ गारवेण य जे नालोयंति गुरुसगासम्मिा धंतपि सुयसमिद्धा न हु ते आराहगा हुंति ॥ ३॥ जह सुकुसलोऽवि विजो अन्नस्स कहेइ अत्तणो वाहि। तं तह आलोयव्वं सुदृवि ववहारकुसलेणं॥४॥जपुव्वं तंपुव्वं जहाणुपुब्बिं जहक्कम सव्व। आलोइज्ज सुविहिओ कमकालविहिं अभिदंतो ॥५॥ अत्तंपरजोगेहि य एवं समुवट्ठिए पओगेहि। अमुगेहि य अमुगेहि य अमुयगसंठाणकरणेहि ॥६॥वण्णेहि य गंधेहि य सहफरिसरसरुवगंधेहि। ( सद्देहि य रसफरिसठाणेहिं )। पडिसेवणा कया पज्जवेहि कया जेहि य जहि च॥ ७॥ जो जोगओ अपरिणामओ अ दंसणचरित्तअइयारो। छट्ठाणबाहिरो वा छट्ठाणब्भतरो वावि॥८॥ || श्री मरणसमाथि सूत्र॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57