________________
११
भूमिका विविध विषयों पर रचे जाते हैं।
यह भी मान्यता है कि श्रुत का अनुसरण करके वचन कौशल से धर्मदेशना आदि के प्रसंग से श्रमणों द्वारा कथित जो रचनाएँ हैं, वे भी प्रकीर्णक कहलाती हैं। प्रकोणकों की संख्या--
समवायांग सूत्र में "चोरासोई पपणगं सहस्साई पण्णता" कहकर भगवान ऋषभदेव के चौरासी हजार शिष्यों के चौरासी हजार प्रकीर्णकों का उल्लेख किया गया है।
दूसरे तीर्थकर से तेइसवें तीर्थङ्कर तक के शिष्यों द्वारा संख्येय सहस्र प्रकीर्णक रचे गये। महावीर के तीर्थ में चौदह हजार साधुओं का उल्लेख प्राप्त होता है। अतः उनके तीर्थ में प्रकीर्णकों की संख्या मौदह हजार मानी गयी है।
नन्दीसूत्र के एक प्रसंग में ऐसा भी उल्लेख है कि तीर्थंकरों के मोत्पातिकी, बैनयिकी, कामिकी तथा पारिणामिकी- इन चार प्रकार की बुद्धि से सम्पन्न जितने सहस्र शिष्य होते हैं, उनके उतने ही सहन प्रकीर्णक होते हैं अथवा उनके शासन में जितने प्रत्येक बुद्ध होते हैं, उतने ही प्रकीर्णक-ग्रन्थ होते हैं।
नन्दीसूत्र के टीकाकार आचार्य मलयगिरि ने इस सम्बन्ध में इस प्रकार स्पष्टीकरण किया है कि अहंत प्ररूपित श्रुत का अनुसरण करते हुए उनके शिष्य भी ग्रन्थ रचना करते हैं, उन्हें प्रकीर्णक कहा जाता १. आगम और त्रिपिटक : एक अनुदिन, पृष्ठ ४८४ । २. जैन मागम माहित्य : मनन और मीमासा, पाठ ३८८ । ३. सावायांग मूत्र, मृति मधुकर, ८४ वां समवाय । ४. एपमाश्याई चउरामीई पइगणग-सहस्साइ भगवी अरहओ सहसामि
यस्स आइतित्यय रस्स । तहा सन्निज्जाई पदण्णाग सहस्साई मजिजामगाणं जिणवराणं । चोद्दमपण्णगसहस्साणि भगवओ बदमाणसामिस्स । अहवा अस्स जनिया सीसा उत्तियाए वेणयाए कम्मिगार परिणामियाए चबिहाए बुद्धीए उववेया, तस्स तत्तियाई पइण्णगमहरसाई। पतंय बुद्धा वि तत्तिया चेव ।
-नन्दी सूब, ८१ ।