Book Title: Agam 33 Prakirnak 10 Viratthao Sutra
Author(s): Punyavijay, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ १४ चौरत्यओ __यहाँ एक बात विशेष रूप से द्रष्टव्य है कि मुनि पुण्यविजय जी द्वारा सम्पादिल एवं महावीर विद्यालय, बम्बई द्वारा प्रकाशित, जो पइण्णयसुत्ताई भाग १ एवं भाग २ प्रकाशित हुए है, उनमें नाम और संख्या भिन्न रूप से प्राप्त होते हैं। मुनि पुण्यविजय जी ने अपनी प्रकीर्णक सूत्र भाग १ को प्रस्तावना में लिरहा है कि वर्तमान में यदि प्रकीर्णक नाम से अभिहित ग्रन्थों का संग्रह किया जाय लो बावीस नाम आता होते है जो उनका उन्होंने नामोल्लेख भी किया है। जबकि मल रूप में प्रकाशित इन ग्रन्थों में प्रथम खण्ड में बीस एवं द्वितीय खण्ड में बारह प्रकीर्णक एवं कूलक ग्रन्थों का प्रकाशन हुआ है। यह सभी प्रकीर्णक उन पूर्व उल्लेखित बाइस प्रकीर्णकों से भेद रखते हैं। मुनि पुण्यविजय जी द्वारा सम्पादित पइण्णयसुत्ताई भाग १ एवं भाग २ में निम्न प्रकीणंकों का संग्रह है। पाइपणयत्ता भाग १ :-- इसमें निम्न बीस प्रकीर्णक हैं-- (१) देवेन्द्रस्तव (२) तंदुलवैचारिक (३) चन्द्रवेध्यक (४) गणिविद्या (५) मरणसमाधि (६) आतुरप्रत्याख्यान (७) महाप्रत्याख्यान (८) प्रषिभाषित (९। द्वीपसागरप्रति (१०) संस्तारक (११) वीरस्तव (१२) चतुःशरण (१३) आतुरप्रत्याख्यान (१४) चतुःशरण (१५। भक्तपरिज्ञा (१६) आतुरप्रत्याख्यान (१७) गच्छाचार (१०) सारावली (१२) ज्योतिएकरण्इक (२०) तित्योगाली

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53