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वीरत्यओ
(१३) वीतराग--विषयों में अनुरक्त भावों को राग एवं विपरीत भावों को द्वेष कहा जाता है । ब्रह्मा, विष्णु, महादेव आदि के अहंकार को गलित करने पर भी अहंकार से रहित तथा शरीर में अनेक देवों का निवास स्थान होने पर भी विकार रहित होने के कारण आपको वीतराग कहा गया है (गाथा २३-२७)
(१४) केवलो-सर्व द्रव्यों को सर्व पर्यायों को तीनों कालों में एक साथ जानने से, अप्रतिहत शक्ति के धारणहार श्रेष्ठ साधु व्रत से युक्त होने से केवली कहा गया है । गाथा २८-२९)
(१५) त्रिभुवन गुरु- लोक में सद्धर्म का विनियोजन करने के कारण त्रिभुवन गुरु कहा गया है । (गाथा ३०)
(१६) सर्व--सभी प्राणियों के दुःखों के नाशक एवं हितकारी उपदेशक होने से महावीर को सम्पूर्ण कहा गया है । (गाथा ३१)
(१७) त्रिभुवन श्रेष्ठ-बल, वीर्य, सौभाग्य, रूप, ज्ञान-विज्ञान से युक्त होने से त्रिभुवन श्रेष्ठ कहा गया है । (गाथा ३२)
(16) भगवन्-प्रतिपूर्ण रूप धर्म, कांति, प्रयत्न, यश एवं श्रद्धा वाले होने से तथा इह लौकिक एवं पारलौकिक मयों को नष्ट करने वाले होने से महावीर को भगवान कहा गया है । (गाथा ३३.३४)
(१९) तीर्थकर चतुर्विध संघ रूप तीर्थ की स्थापना करने वाले होने के कारण महावीर को तीर्थकर नाम दिया गया है । (गाथा ३५)
(२०) शकेन्द्रनमस्कृत:---गुणों के समूह से युक्त आपका इन्द्रों द्वारा भी कीर्तन किया जाता है इसलिए आपको शकेन्द्र द्वारा अभिवन्दित कहा जाता है । (गाथा ३६)
(२१) जिनेन्द्र--मनःपर्याय ज्ञानी एवं उपशान्त क्षीण मोहनीय व्यक्ति जिन कहे जाते हैं और वे उनसे भी अधिक ऐश्वर्यवान हैं अतः महावीर जिनेन्द्र हैं ।. (गाथा ३७)
(२२) वर्षमाण-महावीर के गर्भ में आने से राजा सिद्धार्थ के घर में वंभव, स्वणं, जनपद एवं कोश में भारी वृद्धि हुई, इस कारण उन्हें वर्षमाण कहा गया है। ( गाथा ३८)