Book Title: Agam 33 Prakirnak 10 Viratthao Sutra
Author(s): Punyavijay, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 27
________________ वीरत्यओ कई नाम महावीर के लिए प्रयुक्त हुए हैं। यहां पर पूर्व आचारांग गत नामों के अतिरिक्त 'बोर' शब्द का उल्लेख हुआ है उदाहरण के लिए-- [अ] 'योर' सूत्रकृतांग-११।१।१। [ब] एवमाहु से वीरे-वही-१४।२।२२ । [स] उदाहु औरे-वही-१।१४।११। ____ 'भगवान्', 'जिन' एवं 'अरिहत' शब्द का प्रयोग पूर्व परम्परा की तरह ही प्रयुक्त हुए हैं। ___ आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध में श्रमण भगवान महावीर के तीन नामों का उल्लेख हुमा है- वर्धमान, सन्मति और श्रमण । श्रमण भगवान महावीर के ज्ञातपुत्र, विदेह मादि नामो का भी उल्लेख प्राप्त होता है, जैसे- "समणे भगवं महावीरे नाए नायपुत्ते नाह कुलनिन्वते विदेह विदेहदिन्ने.."। ज्ञातव्य है कि वोर आदि नामों के साथ-साथ आचासंग के द्वितीय श्रत स्कन्ध में प्रथम बार तित्ययर, भगवं, अरहंत, केवलि, जिन सध्वण नामों का महावीर के लिए स्पष्ट रूप से प्रयोग हुआ है।। सूत्रकृतांग में महावीर के लिए 'बुद्ध' शब्द का प्रयोग भी अनेक जगह हुआ है। साथ ही साथ अनन्तचक्षुसवी * त्रिलोकवर्णी १. सूत्रकृतांग-११।।३।२२, १।१६।१, १।२।३, १९, १।९।२९ ।। २. आचारांग-२।१५।१७५ ३. वही-२।१७१ ४. (A) वही २।१०९ (B) मे भगचं अरह जिणे, केवली सम्वाणू सव्व भावदरिसी. "आचारांग २।१५१७॥ ५. सूत्र कृतांगसूत्र--१।११।२५, १1१11३५, १।१५।१८। ६. वही-१।६।६। ७. वही-१।६१५ । ८. वही-११४।१६ ।

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