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वीरस्तुति (१६ तीर्थंकर)
(३५) चतुविध संघ रूपी तीर्थं अथवा प्रथम गणधर रूप तीर्थ की संस्थापना करने के कारण आप 'तीर्थंकर' कहे जाते हो ।
२० शान्ति)
(३६) इसी प्रकार गुणों के समूह से युक्त होने के कारण इन्द्र भी आपका अभिवन्दन करता है, इसमें आश्चयं ही क्या है ? 'चक्राभिवन्दित' जिनेश्वर ! बापको नमस्कार हो ।
(२१ जिनेा)
( ३७ ) मनः पर्यायज्ञान और अवधिज्ञान से युक्त एवं उपशान्त मोह अपवा क्षीण मोह गुणस्थानों के धारक व्यक्ति 'जिन' कहे जाते हैं। उनकी अपेक्षा भी अधिक आध्यात्मिक ऐश्वर्ययुक्त होने से आप उनके इन्द्र (स्वामी) हैं। इसलिए आप 'जिनेन्द्र' कहे जाते हो ।
(२२ वर्षमान)
(३८) हे जिनेश्वर ! आपके (गर्भ में आने से श्री सिद्धार्थ राजा के घर में वैभव, स्वर्ण, जनपद एवं कोष में वृद्धि हुई। इस कारण आप 'वर्धमान' हो ।
(२३ हरि)
(३९) हे कमलालय (लक्ष्मी निधान) ! आपके करतल अर्थात् हथेली में शंख, चक्र, धनुष के चिह्न होने से एवं दान की वर्षा करने से अथवा वर्षीदान देने के कारण हे जिनेश्वर ! आप 'हरि' (विष्णु) कहे जाते हैं ।