Book Title: Agam 33 Prakirnak 10 Viratthao Sutra
Author(s): Punyavijay, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 50
________________ गापा १. परिशिष्ट वीरस्तव प्रकीर्णक की गाथानुक्रमणिका क्रमांक प्र अमर-नर-असुवरपहु अरिहा जोगा पूया अरु ! अरिहंत ! अरहंत 1 इ नामावलिसंधु ! छह्-पारलोयाईयं एवं गुणगणस्करा क कमलासनो विजे‍ घ घोरुवसम्म परीग्रह ज मईवि बहुरुवधारी जय वीराय | केवल 1 जं मण-दल-बिहण जं सव्त्र द्रव्य पज्जव जे भूय भविस्रा भवंति त तं ते अपवित तित्यं चविहसंधो ८ १२ २ *४३ ३४ ३६ ६ ૭ 국 २५ २८ १८ गाथा तं कसिण भुणभवणोरि प पच्चुप्पन्न - अणागय ४१ पडिपुष्प स्वघणे धम्म मगहण दिवसे २९ ३५ व दृट्टट्ठकम्मठि दोसो वि कुडिल कुंतल न नमिकण जिर्ण जय जीव न रहसि सद्दाहमणो हरेस 'नाही' वाहाण एतेयर सुमेयर पंवेदिय सत्रिणी जे पारं कम्मस्स भयस्स य बम विरिय सप्त-सोहन बुद्ध अवगयमेगट्टियं भ भवीकुरभूयं म मणपज्जव बोहि उवसंत क्रमांक १९ १५ २६ 1 ११ २२ २१ ३३ १६ ३१ ३० २० ३२ ४२ ३७

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