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वीरस्तुति
રૂં
( ८ सर्वन)
(१८) आप स्व स्वभाव में रमण करते हुए श्रेष्ठ ज्ञान के द्वारा भूत, भविष्य एवं वर्तमान में होने वाले समस्त भावों को जानते हो, इस कारण आपको 'सर्वज्ञ' कहते हैं ।
(६ सर्वदर्शी )
(१९) आप सम्पूर्ण विश्व के गर्भ में निहित / निज निज स्वरूप में स्थित तत्त्वों पदार्थों के सामान्य स्वरूप का अवलोकन करते हो, इसलिए आप 'सर्वदर्शी' कहे जाते हो।
( १० पारगामी)
(२०) जन्म-मरण रूपी अनेकों भवों और सर्व कर्मों से पार हो जाने के कारण अथवा श्रुत- सागर के तथा सभी ज्ञेय विषयों के ज्ञाता होने के कारण आपको 'पारगामी' कहा जाता है ।
( ११ त्रिकालविश )
(२१) भूत, भविष्य एवं
वर्तमान तीनों कालों के पदार्थों को कर में स्थित आमलक के समान जानने के कारण आपको 'त्रिकालविज्ञ' कहा जाता है ।
(१२ नाथ)
(२२) दुर्लभ्य एवं भयावह संसार समुद्र के मध्य डूबते हुए प्राणियों को सदुपदेश देकर उनका मार्गदर्शन करने से आप अनाथों के नाथ हो, इसलिए आप 'नाथ' कहे जाते हो ।