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बीवस्तुति
(१३ वीतराग) (२३) शुभ वस्तुओं में प्राणी के चित्त का निविष्ट होना राग रति है
और अशुभ वस्तुओं के प्रति विमुखता के भाव को देष कहा जाता
है। ऐसे राग द्वेष से रहित होने के कारण आप वीतराग हैं । (२४) ब्रह्मा, विष्णु, महादेव, सूर्य आदि प्रमुख देव अपने अहंकार का
विगलन होने पर आपके पाद-मूल में उपस्थित होते हैं फिर भी हे जिन ! आप एक रस अर्थात् निर्षिकार रहते हैं, इसीलिये
आप वीतराग हैं। (२५) जो कमल मदन, दलन, विहलन, प्रसन से युक्त होकर अपना
जीवन जीता है, वही कमल आपके कर, चरण, नयन, नल और
अधर में उपर्युक्त दोषों से रहित होकर निवारः । (२६) कुटिलकुंतल (घुघराले बाल) पक्ष्मल भौहें (घनीभूत भौहें)
तारिका सदश नयन और गुरु का अभाव ये दोष ही हैं फिर भी
ये दोष आपके लिए गुण ही माने जाते हैं। (२५) हे देव । यदि तुम्हारे शरीर में विविध रूप धारण करने वाले देव
भी निवास करते हों तो भी उनके द्वारा किये गये मिकारों से आप रहित हैं, इसलिए आप 'वीतराग' कहे जाते हैं ।
(१४ फेवली) (२४) जो सभी द्रव्यों की अनन्त परिणति रूप त्रिकाल में होने वाली
प्रत्येक पर्याय के स्वरूप को युगपद रूप से जानते हैं, वे 'केवली'
कहे जाते हैं। (२९) आप अपनी अप्रतिहत शक्ति के प्रसार से ज्ञेय पदार्थों को अनवरत
एवं सम्पूर्ण रूप से जानते हैं, इसलिए आप केवली' कहे जाते हैं।