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उत्तराध्ययन /२४ दशवैकालिक के उत्तरकाल में पढ़े जाने लगे।२९ अतः ये उत्तर अध्ययन ही बने रहे हैं। प्रस्तुत उत्तर शब्द की व्याख्या तर्कसंगत है।
दिगम्बर-परम्परा के ग्रन्थों में उत्तर शब्द की विविध दृष्टियों से परिभाषाएँ प्राप्त होती हैं। आचार्य वीरसेन ने षट्खण्डागम की धवलावृत्ति में लिखा-उत्तराध्ययन उत्तर पदों का वर्णन करता है। यह उत्तर शब्द समाधान का प्रतीक है।३० अंगपन्नत्ति में आचार्य शुभचन्द्र ने उत्तर शब्द के दो अर्थ किये हैं३१ -
[१] उत्तरकाल—किसी ग्रन्थ के पश्चात् पढ़े जाने वाले अध्ययन। [२] उत्तर–प्रश्नों का उत्तर देने वाले अध्ययन।
इन अर्थों में उत्तर और अध्ययनों के सम्बन्ध में सत्य तथ्य का उद्घाटन किया गया है। उत्तराध्ययन में ४, १६, २३, २५ और २९ वां -ये अध्ययन प्रश्नोत्तरशैली में लिखे गये हैं। कुछ अन्य अध्ययनों में भी आंशिक रूप से कुछ प्रश्नोत्तर आये हैं। प्रस्तुत दृष्टि से उत्तर का समाधान' सूचक अर्थ संगत होने पर भी सभी अध्ययनों में वह पूर्ण रूप से घटित नहीं होता है। उत्तरवाची अर्थ संगत होने के साथ ही पूर्णरूप से व्याप्त भी है। इसीलिए उत्तर का मुख्य अर्थ यही उचित प्रतीत होता है।
अध्ययन का अर्थ पढ़ना है। किन्तु यहाँ पर अध्ययन शब्द अध्याय के अर्थ में व्यवहृत हुआ है। नियुक्ति और चूर्णि में अध्ययन का विशेष अर्थ भी दिया है३२ पर अध्ययन से उनका तात्पर्य परिच्छेद से है।
उत्तराध्ययन की रचना के सम्बन्ध में नियुक्ति, चूर्णि तथा अन्य मनीषी एक मत नहीं हैं। नियुक्तिकार भद्रबाहु की दृष्टि से उत्तराध्ययन एक व्यक्ति की रचना नहीं है। उनकी दृष्टि से उत्तराध्ययन कर्तृत्व की दृष्टि से चार भागों में विभक्त किया जा सकता है-१. अंगप्रभव, २. जिनभाषित, ३. प्रत्येकबुद्ध-भाषित, ४. संवादसमुत्थित।३३ उत्तराध्ययन का द्वितीय अध्ययन अंगप्रभव है। वह कर्मप्रवादपूर्व के सत्तरहवें प्राभृत से उद्धृत है।३४ दशवाँ अध्ययन जिनभाषित है।३५ आठवाँ अध्ययन प्रत्येकबुद्धभाषित है।३६ नौवाँ और तेईसवाँ अध्ययन
२९. विशेषश्चायं यथा- शय्यम्भवं यावदेष क्रमः तदाऽऽरतस्तु दशवकालिकोत्तरकालं पठ्यन्त इति।
-उत्तराध्ययन बृहद्वृत्ति, पत्र ५ ३०. उत्तरायणं उत्तरपदाणि वण्णेइ। -धवला, पृष्ठ ९७ ३१. उत्तराणि अहिणंति, उत्तरायणं पदं जिणिंदेहि। -अंगपण्णत्ति, ३/२५,२६ ३२. (क) अज्झप्पस्साणयणं कम्माणं अवचओ उवचियाणं।
अणुवचओ व णवाणं तम्हा अण्झयणमिच्छति॥ अहिगम्मति व अत्था अणेण अहियं व णयणमिच्छति ।
अहियं व साहु गच्छइ तम्हा अज्झयणमिच्छंति॥ -उत्तरा. नि. गाथा ६-७ (ख) उत्तराध्ययन बृहद्वृत्ति, पृष्ठ ६-७
(ग) उत्तराध्ययनचूर्णि, पृष्ठ ७ ३३. अंगप्पभवा जिणभासिया य पत्तेयबुद्धसंवाया। ___बंधे मुक्खे य कया छत्तीसं उत्तरायणा॥–उत्तराध्ययननियुक्ति, गा. ४ ३४. कम्मप्पवायपुव्वे सत्तरसे पाहुडंमि जं सुत्तं।
सणयं सोदाहरणं तं चेव इहपि णायव्व॥ -उत्तराध्ययननियुक्ति, गा. ६९ ३५. (क) जिणभासिया जहा दुमपत्तगादि।-उत्तराध्ययनचूर्णि, पृष्ठ ७
(ख) जिनभाषितानि यथा द्रुमपुष्पिकाऽध्ययनम्। –उत्तराध्ययन बृहद्वृत्ति, पत्र ५ ३६. (क) पत्तेयबुद्धभासियाणि जहा काविलिणादि। -उत्तराध्ययनचूर्णि, पृष्ठ ७
(ख) प्रत्येकबुद्धाः कपिलादयः तेभ्य उत्पन्नानि यथा कापिलियाध्ययनम्। -उत्तराध्ययन बृहवृत्ति पत्र ५