Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 5
________________ भगवानुं : श्रीम.ला.. स्थानवासी જૈનશાસ્ત્રાદ્ધાર સમિતિ, ४. गरेडिया ईवा शेड, राट, (सौराष्ट्र ) 甌 ये नाम केचिदिह नः प्रथयन्त्यवज्ञां, जानन्ति ते किमपि तान् प्रति नैष यत्नः । उत्पत्स्यतेऽस्ति मम कोऽपि समानधर्मा. कालोद्ययं निरवधिर्विपुला च पृथ्वी ॥ १ ॥ Published by : Shri Akhil Bharat S. S. Jain Shastroddhara Samiti, Garedia Kuva Road, RAJKOT, (Saurashtra ), W. Ry, India. 5 हरिगी तच्छन्दः करते अवज्ञा जो हमारी यत्न ना उनके लिये 1 जो जानते हैं तत्त्व कुछ फिर यत्न ना उनके लिये || जनमेगा मुझसा व्यक्ति कोई तत्त्व इससे पायगा । है काल निरवधि विपुलपृथ्वी ध्यान में यह लायगा ॥ १ ॥ फ्र પ્રથમ આવૃત્તિ પ્રત ૧૨૦૦ વીર સંવત ૨૫૦૦ વિક્રમ સ’ત્ ૨૦૩૦ ઇસવીસન ૧૯૭૪ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧ 24: 3. 34-00 : भुद्र : મણિલાલ છગનલાલ શાહ प्रिन्टींग मस નવપ્રભાત घीअंटा रोड, अभहापोह.

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 1029