Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi Author(s): Amolakrushi Maharaj Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari View full book textPage 9
________________ 488 28 विपाक मूत्र 8438 48848 एकादश विपाक विपाकसूत्र की प्रस्तावना. प्रणम्य श्रीजिनाधीशं,सद्गुरून नमो नमः॥विक सूत्र स्यवार्तिकं,कुरुते बाल बोधकः ॥१॥ श्री जिनेश्वर भगवान् को आर गुरु महाराज को सावनय वंदना नमस्कार कर के एका दश अंग जो श्री विपाक सूत्र है उस के अर्थ का अल्पज्ञों को मुख से अवबोध कराने के लिये हिन्दी अनुवाद लिखता हुं ॥ ६॥ दशमा अंग प्रश्नब्याकरण सूत्र में तो आश्रय संवर का स्वरूप समजाया. आश्रव दुःख रूप और संवर सुखरूप होता है. इस लिये इग्यारवा अंग विपाक सूत्र में दो प्रकार के पाक ( सुख दुःख रूप) कथन कहते हैं. अर्थात्-जैसे अफीमादि का कटुपाक भोगवते दुःख रूप होता है ऐसे ही पाप कर्म के कटु फल भोगवते दुःख रूप होते हैं और जैसे मिष्टान्नादि भोगवते सुख रूप होता है वैसेही मिष्ट के मिष्ट फल भोगवते सुख रूप होते हैं. इस कथन को दश २ दृष्टान्तों कर के विस्तार पूर्वक इस सूत्र में समजाया गया है. कहते हैं कि जिस प्रकार माता पिता मृत्यु के अवसर में अपने घर का सार पदार्थ मुपुत्र को बताते हैं तैसे ही श्री महावीर महापिता ने अन्तिम समय में *चारो ही तीर्थ को इस विशक सत्रका फरमान चारो तीर्थ रूप पुत्रको किया है. इस सूत्र के दो श्रुतस्कन्ध है यथा-१ दुःख विपाक और २ सुख विपाक. एकेक श्रुतस्कन्ध के दशअध्ययनो, यों दोनों के सब २०३। अध्ययन हैं. इस का उतारा मुख्यता में तो कच्छ देश पावन कर्ता महात्मा श्री नागच 'नी प्रस्तावना 428948 - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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