Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अझणा पण्णंता तंजहा-(गाहा)-जालि, मयालि, उवयालि। पुरिससेणं वारिसेण्य, दीहदंतेय,लट्ठदंतेय,विहल्ले, विहायरसे,अभयकुमारे ॥१॥६॥ जइणं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाईय दसाणं पढमस्स वग्गरस दस अज्झयणा पण्णत्ता,पढमस्सणं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते ? ॥ ७ ॥ एवं खलु जंबू! तेणंकालेणं तेणंसमएणं रायगिहे नयर रिद्धीस्थिमिय समिद्धा, गुणसिलए
नवमांग-अणुत्तरोत्रवाई दशांग सूत्र 438
वर्ग अनुत्तरोववाइ दशांग के दश अध्ययन कहे हैं, उन के माप-1 जालि कुमार का, २ मयाली कुमार का, ३ उज्वालि कुमार का, ४ पुरुषसेन कुमार का, ५ वारीसेण कुमार का, 6 दीर्य दंत कुमार का, ७१ लष्ठदंत कुमार का, ८ विहल्ल कुमार का, १ विहांस कुमार का, और १० अभय कुमार का ॥ ६ ॥ यदि अहो भगवाम : श्रमण यावत् मुक्ति पधारे उनोंने प्रथम वर्ग के दश अध्ययन कहे हैं तो
प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा ? ॥ ७ ॥ यों निश्चय हे जम्बू ! उस काल उस समय, *में राजगही नगरी ऋद्धि समद्धिकर युक्त थी. राजगही के बाहिर ईशान कान में
नमाक चैत्य था, राजगृही नगरी में श्रेणिक राजा राज्य करता था, श्रेणिक राजा की धारनी नामे रानी थी, वह धारनी एकदा पुन्यवंत के शयन करने योग्य शैय्या में मूती हुई।
प्रथम वर्गका प्रथम अध्ययन 438
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