Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
सूत्र
अर्थ
48- नवमांग अणुत्तरोववाई दशांग मूत्र 48
॥ १३ तेरसमंमासं अठावीराए अठावीसईणं अनिक्खिसेणं तवोकम्मैणं दिट्टाणुकद्दूए सराभिमूहे आयावणभूमीए आयात्रेमाणे रतिं वीरातणेणं अबाउट्ठेजय ॥ १४ च मंासं तीसइ तीसइमेगं अनिक्खितेणं तवोकमेणं दिययट्ठाणु कद्दूए सूराभिनु यावणभूमीए आयावेमाणं रतिंबीरासणेणं अशउढेण्य ॥ १५ पनसमा बत्ती बत्ती ईमेणं अनिक्खित्तणं तवाकम्मे दियाठाणुक ए सूरामिमूहे आयावणभूमीए आयात्रेमाणे रतिं वीराणं अबाउड्डेय ॥ १६ साल रममान चोतसएम चोती इमेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्पेणं दिणु कद्दूए सूभिमृहे आयात्रण भूमीए आयांवेमाणे रत्ति वीरानमेण अवाउणय ॥ ११ ॥ तएभं से जाली अणगारे गुणरमणं संवच्छरं तत्रो कर्म आहासूतं अहाकप्पं अहमगं अहातचं समकाएणं फासित्ता पालित्ता सोहिता तिरिता किट्टिता आणाए आये, आकर श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर उपनाम बेले तळे चोला पचोला मास खमन (३० उपवास ) आधामास खमन ( १६ उपवास ) आदि विचित्र प्रकार तप कर्म से अपनी आत्मा को मारते हुवेचिचरनेलगे ||१३|| तत्र जन जाली अनगारका शरीर उस
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
प्रथम का प्रथम अध्ययन
www.jainelibrary.org