Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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॥हीतीय-वर्ग॥ जइणं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयस्स पढमस्स वग्गस्स अयमढे पण्णत्ते, दोचेस्सणं भंते ! वग्गस्स अणुत्तरोववाई दसाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अट्टे पण्णत्ते ? ॥१॥ एवं खलु जंब ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोवाइयस्स दोच्चस्स वम्गस्स तेरस्स अज्झयणा पण्णत्ता?तंजहा-(गाहा)-दीहसेणे,महासेणे,लट्ठदंतेय, गुढदंतेय, ॥ सुद्धदैतेय, हल्ले, दुम्मे, दुम्मसेणे, महादुमसेणेय ॥ १ ॥ आईए सिहेय, सीहसेणेय, महासीहसेणेय आहिए ॥ पुणसेणेय बोधव्या, तेरसमो होतिअज्झयणे ॥२॥ यदि अहो भगवान ! श्रमण भगवंत यावत् मुक्ति पधारे उनोंने अनुत्तरोपपातिक दशा का प्रथम वर्गका उक्त अर्थ कहा, तो अहो भगवान! अनुत्तरोपपातिक दशाके दूसरे वर्गका श्रमण यावत् मुक्ति पधारे उनोंने क्या अर्थ कहा ? ॥१॥ यों निश्चय हे जम्बू ! श्रमण यावत् मुक्ति पधारे उनोने दूसरे वर्ग के तेरे अध्ययन कहे हैं तद्यथा- दीर्घसेन कुमार का, २. महासेन कुमार का, ३ लष्टदन्त कुमार का, ४ गुढदन्त कुमारका, ५/3 शुद्धदन्त कुमार का,६ हल्लकुमार का,७ द्रुमकुमार का, ८ द्रुमसेव कुमार का ९महासेन कुमार का, १० सिंह कुमारका,११ सिंहसेन कुमार का,१२ महासिंहसेन कुमार का, और१३ पुण्यसेन कुपरका जानना, यह दूसरे वर्गके तेरे भध्यन के नाव हुवे ॥ २ ॥ यदि अहो भगवान ? श्रमण भगवंत यावत् मुक्ति पधारे ‘उनोंने
42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वाला प्रसाद
अर्थ
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