Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 31
________________ 488+ नवमांग-अणुत्तरविवाई दशांग मूत्र. 488 सयमेव जियसत्तु निक्खमणं करेइ; जहा था बच्चा पुत्तस्स कण्हे, जाव पव्वइए, अण. गारेजाए, इरियासमिए जाव गुत्तबंभयारी ॥ ९ ॥ तएणं से धण्णे अणगारे, जंचेव दिवसे मुडेभवित्ता जाव पव्वइयाए तंचव दिवसेसं समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-एवं खलु इच्छामिणं भंते ! तुम्भेहिं अब्भणु ण्णाए समाणे जाव जीवाए छटुं छट्टेणं अणिक्खित्तणं आयंबिले पारग्गहिएणं तवो. जितशत्रु राजा स्वयं धारनकर जिस प्रकार थावरचापुत्र को कृष्णजीने दीक्षा दिलाइ थी उस ही प्रकार धन्ना कुमार को भी जितशत्रुराजाने दीक्षा दीलाइ, यावत् धन्ना अनगार हवे इर्यासमिती समिता यावत् गुप्तब्रह्मचारी बने ॥ १ ॥ तब धन अनमार जिस दिन दीक्षा धारण की उमही दिन श्रमण भगवंत श्री महावीर सामीजी को वंदना नमस्कार कर इस प्रकार अभिग्रह धारन किया-यों निश्चय अहो भगवन् ! आप की आज्ञा होतो मैं जावजीच पर्यन्त बेले २ तप निरन्तर करूं, बेले के पारने में आयंबिल कर्फ इस प्रकार तप कर्म से अपनी आत्मा को भावता हुवा विचरूं, बेले के पारने में मुझे आयंबिल-32 लूक्ख एक ही प्रकारका अन्न ग्रहण करना कल्पे किन्तु आयंबिल विना पारना करना कल्ले नहीं, वह भी 20 भाहार भरे हुवे हाथ से देवे तो लेना कल्पे किन्तु विना भरे हाथ से देवे तो लेना कल्ये नहीं, वह भी आहार घरवालो के खाकर वाढडो-बचा हुवा हो जो किसी के काम में नहीं आतहो उमे करडी आदी । वर्गका प्रथम अध्ययन 88 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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