Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 33
________________ अर्थ नवमांग- अणुत्तरोववाई दशांग सूत्र 4 कति जहा गोयमसामी आपुच्छंति जाव जेणेव काकंदी णयरी तेणेव उवागच्छ २ त्ता काकंदीय णयरीए उच्च जात्र अडमाणे अयंबिले णो अणायंबिलं जाव नाव कंक्खंती ॥ १२ ॥ तरणं घण्णे अणगारेताए आभुजताए पयत्ताए पग्गहियत्ताए एसणाए, एसमा जइ भंते लभइ णो पाणं लब्भइ, अह पाणं लब्भइ णो भत्तं लब्भइ ॥ १३ ॥ तरणं से धन्ने Jain Education International के पारने के दिन प्रथम प्रहर में स्वध्याय की, दूसरे महर में ध्यानधरा, तीसरे प्रहर में मुहपती वस्त्र पात्रादि का प्रतिलेखनकर गौतम स्वामीजी की तरह भगवंत से पूछकर यावत् जहां काकंदि नगरी तहां आये, काकंदी नगरी के ऊंच क्षत्रियादि के कुलों में, नीच कृपणादि के कुलों में मध्यम वणिकादि के कुलों में भीक्षार्थ परिभ्रमण कर आयंबिलवाला लूक्खा एकही प्रकार का धान्य ग्रहण) किया, किन्तु आयंबिल बिना का चिह्नना आदि विविध प्रकार के आहार की वांछ भी की नहीं, तथा श्रमण ब्राह्मणादि के काम में न आवे ऐसा आहार ग्रहण किया ॥ १२ ॥ तब धन्ना अनगारने आहार के मालक गृहस्थ से पूछकर उस आहार को ग्रहण किया. किन्तु बिना पूछा वह भी परतीत उत्पन्न हो ऐसा आहार ग्रहण किया, किन्तु किसी प्रकार अप्रतीव हो आहार ग्रहण किया नहीं. ग्रहण करते कभी आहार मिले तो पानी नहीं मिले, और For Personal & Private Use Only वृतिका प्रथम अध्ययन ग्रहण किया नहीं, [ निन्दा हो ] ऐसा कभी पानी मिले . २३ www.jainelibrary.org

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