Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अग जीमहाराजकुल (0 पंडित मुनि श्री अमोलक हिन्दी भाणानुवाद साहित ॐ बालब्रह्मचारी पनि अनुत्तरोववाई दशांग सूत्र प्रासिद्ध कर्ता दाक्षिण हैदराबाद निवासी. लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसाद VAAYAYAYAA AAAAAAAAAAAAMAYA - - अमूल्य. मत १० 0.0/064649 जेन शास्त्रोद्वार मुद्रालय सीकंदराबाद (दक्षिण.)30633000000 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अमूल्य शास्त्रे दानदाता. जैन स्थम्भ दानवीर BBC- EPRESE:e जैन प्रभावक धर्म धुरंधर అస్స LAPRASHA S.JWALA जेन शास्त्रोद्धार मुद्रालय, सिकंदराबाद, (दक्षिण.) ALORE BE 993 स्व राजा बहादुर लाला मुखदेव स हायजी. जौहरी ममय म्गस्थ स०१९७४. लाया घालाप्रसादजी, जौहरी. जन्म सं.१९५० s Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूत्र अनुत्तरोपपातिक शास्त्र की प्रस्तावना. सद्गुरुणेनमस्कृत्य,भव्यजन सुखबोधवे ॥ अनुत्तरोपपातिकसूत्रस्य,बार्तिकलिख्यतेमया ॥१॥ __मूत्रज्ञान के दाता सद्गुरु महाराज को सविनय वंदना नमस्कार करके इस अनुसरोपपातिक शास्त्रार्थ का भव्यजनों को सुख से बोध होने के लिये हिन्दी भाषानुवाद करता हूं ॥ १०॥ HE अष्टांग अंतगड दशा सूत्र में सर्वांश कर्मोंका क्षय करके जिन जीवोंने मोक्ष प्राप्त की उनका कथन किया. Fऔर जो जीवों कर्म क्षय का उद्यम करते सर्व कर्माश क्षय हो इतने आयुष्य के अभाव से तथा शुभ 'कर्मों ( पुण्य ) की वृद्धि होने से जो जीवों उस भव में मोक्ष प्राप्त नहीं करसके, परंतु एक भवान्तर से मोक्ष प्राप्त करेंगे. उन बृद्धि हुवे पुण्य फल को भोगवने के लिये २६ ही स्वर्ग के ८४९७९०२३, विमानों में से अत्युत्तम सौंपरी जो पांच अनुत्तर विमान हैं जहां जघन्य ३१ सागरोपप उत्कृष्ट ३३ सागरोपमका आयुष्य है वे एकान्त सम्यक दृष्टी जीवों हैं वहां जाकर जो पुण्यात्मामहापुरुषोंउत्पन्नहुवेहँ वे. 20 श्लोक-गुणैयदध्ययन कलापीर्तिता, अनुत्तरा प्रशामिणु जालिमुख्यकाः ।। अनुत्तरश्रियम भजअनुत्तरोपपातिकोपपदशाः श्रयामिताः ॥१॥ अर्थात्-जाली आदि २३ श्रेणिक राजा के पुत्रों और धन्नादि १० श्रेष्ट पुत्रों, यो २३ जीवों जो विषयानुक्रमाणिका 4838 For Personal & Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 48 प्रयोजक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + ( अनुचर विमान में उत्पन्न हुवे हैं उन का कथन किया है. इस मंत्र के तीन वर्ग और २३ अध्ययन हैं.! इस का उतारा खेतशी जीवराज की तरफ से छपी हुई प्रतपर से किया है और अनुवाद सूत्रानुसार किया है. दृष्टीदोष से बहुत स्थान अशुद्धीयों रहगई है. उने शुद्ध कर पठन कीजीये. अनुत्तरोपपातिक मूलानुक्रमणिका. १ प्रथम वर्ग १० अध्ययन १ प्रथय जालीकुमार का अध्ययन २ गुणरत्न संवत्सर रूप का यंत्र ९ नव ही अध्ययन संक्षेप में १२ द्वितीय वर्ग १३ अध्ययन संक्षेप में ... ... १२ १३. ३ तृतीय वर्ग. १० अध्ययन प्रथम अध्ययन धनाजी का ९ नव ही संक्षेप में अध्ययन परम पुज्य श्री कहानजी ऋषि महाराज के सम्प्रदाय के बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलकऋषिजी ने सीर्फ तीन वर्ष में ३२ ही शास्त्रों का हिंदी भाषानुवाद किया, उन ३२ ही शास्त्रों की १०००१००० प्रतों को सीर्फ पांच ही वर्ष में छपवाकर दक्षिण हैद्राबाद निवासी राजा बहादुरलाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी ने सब को अमूल्य लाभ दिया है। ४७ For Personal & Private Use Only *पकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी * Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * अवश्यकीय सूचना 2 %8785 Saxcisco शान प्रकाशन दक्षिण हैद्राबाद निवामी जौहरी बग या देवी दानवीर राजा बहादुर लाराजी साहे। श्री भुवदेव महायजी ज्वालाप्रमादजी आपने माधु मंगा के और ज्ञान दान जैसे म...भाभके लोभी बन माघमा जैन धर्म के म माननीय व परम आदरणीय बत्तीस भावों हिन्दी भाषानुवाद माहन पाने की स. २६० का खर्च कर अदानीकार किया पर युरोप युद्रारंभ भाव में वृद्धि 5 | ज्ञोवाला (काठियावाड) निवासी मणीलाल || शीवलाल जो शास्त्रोद्धार कार्यालय का मेनेजर व था और जो शास्रोद्धार जैसे महा उपकारी और धार्मीक कार्य के हिसाब को संलोष जनक और विश्वाशनीय ढंग से नहीं समझा सकने के सबब से हमको पूर्ण अविश्वाश होगया और भाप खुद घबरा कर बिना इजाजत एक दम चलागया इस लिये जोश अखबार अरै धार्मीक कार्य के लिये मणीलाल को देना चाहाथा वो उसकी 1 अप्रमाणिकता और घोटाला देखकर उस को नही देते हवे आग्रा निवासी जैनपथप्रदर्शक 18|मासिक के प्रसिद्ध कर्ता बाबू पदम सिंघ नको धार्मिक कार्य निमित्त दिया गया है सर्व सज्जन उस अखबार से कायदा सठा .. पानीदाने भी आपने सही उत्साह कार्य को समाम कर मनका अमूल्य महान दिया, या भाप की उदारता माधुमार्गीयों की गोमांक परमादरणीय है। 35854856 L पाशा मवादे NXX 18 दावाहांमकन्द्राबाद जैन मंत्र For Personal & Private Use Only www.janelibrary.org Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महायक-मुनिमंडल -TO ** और भी-सहायदाता __ अपनी छसी ऋद्धि का त्याग कर हैद्राबाद सीकन्द्राबादमें दीक्षा धारक बाल ब्रह्मचारी पण्डित मुनि श्रीअमोलक ऋषिजीके शिष्यवर्य ज्ञानानंदी श्री देव ऋषिजी. वैय्यावृत्यी श्री राज ऋषिजी. तपस्वी श्री उदय ऋषिजी और विद्याविलासी श्री मोहन ऋषिजी. इन चारों बुनिवरोंने गुरु भाज्ञाका बहुमानसेसीकार कर आहार पानी आदि मुखोपचार का संयोग मिला. दो प्रहर का व्याख्यान, प्रसंगीसे वातीलाप,कार्य दक्षसा व समाधि भाव से सहाय दिया, जिस से ही यह महा कार्य इतनी 21 शीघ्रता से लेखक पूर्ण सके. इस लिये इस कार्य / बद्दल उक्त मुनिवरों का भी बडा उपकार है. HI* पंजाब देश पावन करता पूज्य श्री सोहनलालजी, महात्मा श्री माधव मुनिजी, शतावधानी श्री रनचन्द्रजी, तपस्त्रीजी मोणकचन्दजी, कविवर श्री अमी ऋषिजी,सुवक्ता श्री दौलत ऋषिजी.पं. श्री नथमलजी,पं. श्री जोरावरमलजी.कविवर श्री नानचन्द्रजी.प्रवर्तिनी सतीजीश्री पार्वतीजी.गुणज्ञसतीजी श्री रंभाजी. धोराजी सर्वज्ञ भंडार, भीना सरवाले कनीरामजी बहादरमलजी बाँठीया, | लीबडी भंडार, कुचेरा भंडार,इत्यादिक की तरफ से शास्त्रों व सम्मति द्वारा इस कार्य को बहुत सहायता मिली है. इस लिये इन का भी बहुत उपकार मानले हैं. 5 सखचसहाय ज्वाला प्रसाद मुखदेव सहाय ज्वालाप्रसाद For Personal & Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ xx250 आभारी-महात्मा हिन्दी भाषानुवादक sixi कच्छ देश पावन कर्ता मोटी पक्ष के परम पूज्य श्री कर्मसिंहजी महाराज के शिध्ववर्य महात्मा कविवर्य श्री नागचन्द्रजी महाराज ! इस शास्त्रोद्धार कार्य में आद्योपान्त आप श्री | मायिन शुद्ध शास्त्र, हुंडी, गुटका और समय२पर थावश्यकीय शुभ सम्मति द्वारा मदत देते रहनेसेही मैं इस कार्य को पूर्ण कर सका. इस लिये केवल मैं ही नहीं परन्तु जो जो भव्य इन शास्त्रोद्वारा लाभ प्राप्त करेंगे वे सब ही आप के अभारी - ___ शुद्धाचारी पूज्य श्री खूबा ऋषिमी महाराज के शिष्यवर्य, आर्य मुनि श्री चना ऋषिजी महाराजके शिष्यवर्य बालब्रह्मचारी पण्डित मुनि श्री अमोडक ऋषिजी महाराज! आपने बडे साहस से शाजोद्धार जैसे यहा परिश्रम वाले कार्य का जिस उत्साहमे स्वीकार किया था उस ही उत्साह से तीन बर्ष जितने स्वरूप समय में अहर्निश कार्य को अच्छा बनाने के शुभाशय से सदैव एक भक्त भोजन और दिन के मात घरे लेखन में व्यतीत कर पूर्ण किया. और ऐना सरल बनादिया कि कोई भी हिन्दी भाषज्ञ सहज में समन सके, ऐसे ज्ञानदान के महा उपकार तल दवे हु हम आप के बडे भभारी हैं. संघकी तर्फ से. Fxxs मुखदेव महाय ज्याला प्रसा343933 13 आपका-अमोल ऋापे. 18188 For Personal & Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Rawasad मुख्याधिकारी2 daalasmasal *Madaan उपकारी-महामा INx परम पूज्य श्री कहानजी ऋषिजी महाराज की सम्प्रदाय के शुध्धाचारी पूज्य श्री खवा ऋषिजी महाराज के शिष्यवर्य स. तपस्वीजी श्री केवल ऋषिजी महाराज आप श्रीने मुझे साथ ले महा परिश्रम से हैद्राबाद जैसा बडा क्षेत्र माधुमागिय धर्म में प्रषिद्ध किया व परमोपदेश से राजाबहादुर दानवीर लाला मुखदेव सहायजी माला प्रसादजी को धर्मप्रेमी बनाये. उनके प्रतापसे ही शास्त्रोद्धा. रादि महा कार्य हैद्राबाद में हुए. इस लिये इन कार्य के मुख्याधिकारी आपही हुए. जो जो भव्य जीवों इन शानद्वारा महालाभ प्राप्त करेंगे ये भापही के कृतज्ञ होंगे. परम पूज्य श्री कहानजी ऋपिनी महागज की सम्प्रदाय के कविवरेन्द्र महा पुरूप श्री तिलोक' ऋषिजी महाराज के पाटवीय शिप्य वर्य, पूज्यपाद गुरू वर्य श्री रत्नपिनी महाराज! | आप श्री की आज्ञासे ही शासोद्धार का कार्य स्वी. कार किया और आप के परमाशिर्वाद से पूर्ण कर सका. इस लिये इस कार्य के परमोपकारी महामा आप ही हैं. आप का उपकार केवल मेरे पर ही नहीं परन्तु जो जो भव्यों इन शास्त्रोंद्वारा लाभ प्राप्त करेंगे उन मवपर ही होगा, STEPS शिशु-अनाव प. STESil REASESEE दास-भमाल तापESS For Personal & Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ MA R ...ALLLLLLLL ..... ...................HALA L AM VEERescrescesIRTEREIGEECISCESSISE-CONGREEEEEEEEEEEEEEECTRESEARCROSERIESRCISEARCH . CREENDARA T H KissTHANTHEMIARIEmaabee - ॥ नवमम्-अणुत्तरोववाई दशाड़ सूत्रम् ॥ * प्रथम-वर्ग * तेणं कालेणं, तेणे समएणं, रायगिहे णाम णयर होत्था, सेणियनाम राया होत्था, चेलणा. देवीए गुणसिलाए चेइए वण्णआ॥ ॥ तेणंकालेणं तेणसमएणं रायगिहे नयरे, अजसुहम्मणामत्थरे समोसरिए, परिसाणिग्गया धम्मकहिओ परिसापडिगया ॥ २ ॥ जंबू जाव पज्जुबासई एवं बयासी-जइणं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं अर्थ/3 है उसकाल उससमयमें रामगृही नगरीमें श्रेणिक राजा राज्य करता था,उसकी चेलना नाम की राणी थी, ईशान 15फोन में गुलसिला नामक वागया।।२।।उसकाल उससमयमें गुनासला पागमें आर्य सुधर्मा स्वामीजी पधारे,परिषदा, चन्दने आइ, धर्म कथासुनाइ, परिषदा पीजी गई ॥२॥ भार्य जंबू स्वामी आर्य सुधर्मा स्वामी को वंदना | नवमांग-अणुचरोववाई दशाम सूत्र 488 प्रथम-वर्या प्रथम बचपन - For Personal & Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - 48 अनुवादक-बालबमचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 8 अट्ठमस्स अंगरस अंतगड दसाणं अयम? पण्णते, नवमस्सणं भंते ! अंगरस अणु. त्तरोवाई दसाणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते ? ॥ ३ ॥ तएणं से सुहम्मे अणगारे जंबू अणगार एवं वयासी-एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं नवमस्स अंगरस अणुत्तरोववाई दसाणं तिणि वग्गा पण्णत्ता ॥४॥ जइणं भंते ! समणेणं जाव संपत्तणं नवमरस अंगस्स अणुत्तरोववाई दसाणं तिणिवग्गा पण्णत्ता,पढमस्सणं भत्ते! बग्गरस अणुत्तवियाई दसाणं समेणण जाव संपत्तेणं के अज्झयणा पण्णत्ता? ॥५॥ एवं खलु जंबू! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाई दसाणं पढमस्स वग्गस्स दस नमस्कार कर पूछने लगे कि-अहो भगवान ! यदि श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी यावत् मोक्ष पधारे उनोंने आठवा अंग अंतकृत दशांग का उक्त अर्थ कहा तो नववा अंग अनुत्तरोक्वाइ दशांगका क्या अर्थ कहा है? ॥॥तब बे सौधर्म स्वामी जंबू स्वामी से यों कहने लगे-यों निश्चय है जबू! श्रमण भगवंत यावन् मुक्ति पधारे उनोंने मरवा अंग अनुत्तराववाइ दशाके तीन वर्ग कहे हैं॥४॥ यदि अहो भगवाग! नववा अंग अनुत्तरोक्वाइ दशाके तीन वर्ग कई हैं तो अनुत्तरोववाइ के दशाके प्रथम वर्ग के कितने अध्ययन ॥५॥ यों निश्चय है जंयू ! श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी यावत् मुक्ति पधारे उनीने प्रथम प्रकाशक राजाबहादुर लालामुखदवसहायजी ज्वालाप्रसाद For Personal & Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. १ अझणा पण्णंता तंजहा-(गाहा)-जालि, मयालि, उवयालि। पुरिससेणं वारिसेण्य, दीहदंतेय,लट्ठदंतेय,विहल्ले, विहायरसे,अभयकुमारे ॥१॥६॥ जइणं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाईय दसाणं पढमस्स वग्गरस दस अज्झयणा पण्णत्ता,पढमस्सणं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते ? ॥ ७ ॥ एवं खलु जंबू! तेणंकालेणं तेणंसमएणं रायगिहे नयर रिद्धीस्थिमिय समिद्धा, गुणसिलए नवमांग-अणुत्तरोत्रवाई दशांग सूत्र 438 वर्ग अनुत्तरोववाइ दशांग के दश अध्ययन कहे हैं, उन के माप-1 जालि कुमार का, २ मयाली कुमार का, ३ उज्वालि कुमार का, ४ पुरुषसेन कुमार का, ५ वारीसेण कुमार का, 6 दीर्य दंत कुमार का, ७१ लष्ठदंत कुमार का, ८ विहल्ल कुमार का, १ विहांस कुमार का, और १० अभय कुमार का ॥ ६ ॥ यदि अहो भगवाम : श्रमण यावत् मुक्ति पधारे उनोंने प्रथम वर्ग के दश अध्ययन कहे हैं तो प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा ? ॥ ७ ॥ यों निश्चय हे जम्बू ! उस काल उस समय, *में राजगही नगरी ऋद्धि समद्धिकर युक्त थी. राजगही के बाहिर ईशान कान में नमाक चैत्य था, राजगृही नगरी में श्रेणिक राजा राज्य करता था, श्रेणिक राजा की धारनी नामे रानी थी, वह धारनी एकदा पुन्यवंत के शयन करने योग्य शैय्या में मूती हुई। प्रथम वर्गका प्रथम अध्ययन 438 488 For Personal & Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेइत्य सेणिएराया, धारणीदेवी, सीह सुमिणंप सित्ताण पडिबुद्धा जाव जालिकुमारेजाए, जहामेहो जाव अट्ठ उदाओ, जाव उपिपासए जाव विहरंति ॥८॥ तेणंकालेणं सेणं समएणं समणं भगवं महावीरे जाव समोलढे, सेणिय णिग्गओ, जालि जहा मेहो। तहा णिग्गओ, तहेव णिक्खतो, जहा मेहो, एकारस्स अंगाई अहिझंति ॥ ९॥ तएणं से जाली अणगारे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक पिजी सिंह का स्वप्न देखा, यावत् नत्रमहिने सादीसातररात्रि व्यतीत हुवे सुकुमार कुमार का जन्म हुवा, बारवे दिन जालि कुमर नाम दिया, बालवय मुक्त हुवे विद्याभ्यास किया, यौवन अवस्था । प्राप्त होते आठ गज्य कन्याओं के साथ पानी ग्रहण कराया, आठ २ दात दायचा की दो यावत् मेघकुमार की तरह ऊपर महलों में सुख भोगरता विचरने लगा ॥८॥ उस काल उस समय में श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी पधारे, श्रेणिक राजा और परिषदा दर्शनार्थ आई, धर्मकथा सुनाई, मेघकुमारकी तरह जा कुमार को भी वैराग्य उत्पन्न हुवा मातापिता से चरचा की आज्ञा ले यावत् औत्सव पक दीक्षा ली. मेघकुमार की तरह इग्यारे अंग का अभ्यास किया ॥ ९ ॥ तब वे जाली अनगार जहां श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी थे तहां आये आकर श्रमण भगवंत श्री महा .प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवसहायजी बालाप्रसादजी क For Personal & Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समणं भगवे महावीर बंदइ नमसइ २ त्ता एवं क्यासी-इच्छामिणं भंते ! तुमहिं अभणुणाय समाणे गुणरयण संवच्छरंतवो कम्मं उवसंपजिताणं विहरित्तए ? अहासुहं देवाणुप्पिया ! मडिबंध करह ॥ १०॥ तएणं से जली अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुणाय समाणे समणं भगवं महावीरं वंदइ . नमसइ २ त्ता गुणरयणं बच्छरं तबो कम्मं उपस पजित्ताणं विहरइ तंजहा-१ पढमं मासं चउत्थं चउत्थेणं अणिक्खित्तेणं तयो कम्मेणं दियटुणुकटुय सूराभिमूहे आयावणभूमीए आयावेमाणे रत्तिं वीरासणेणं अबाउट्ठणय ॥ २ दोचं मासं छ? छट्टेणं. अणिक्खित्तेणं तवो अर्थमहावीर स्वामी के वंदना नमस्कार करके यों कहने लग-यों निश्चय अहो भगवान ! आपकी आज्ञा हानो में चहाताहूं कि गुगरत्न संवत्लर तपकर्म अंगीकार कर विचरूं ? भगवंतने कहा-हे देवानुप्रिया. जैसे 11 सखी वैने कगे प्रतिध मतकरो ॥ १० ॥ तव श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी की आज्ञा हुवे जाली में अनगार श्रमग भगवंत श्री महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार करके गुजरत्त संवत्सर तप कर्म प्रारंभ किया तद्यथा-प्रथम महिने एकमहिने नक एकान्तर उपावास के पारने निरन्तर किये. तपश्चर्या के दिनको । उसाटासन सर्य के सन्मुख हे सूर्य का ताप सहन किया और रात्रि को वस्त्र रहित वीरासन से 84वांग-अणुत्तरोवाई दशांग सूत्र-80 मथम वर्गका प्रथम अध्ययन For Personal & Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + गुणरत्न संवत्सरतप. तपदिन पारणा सर्वदिन I0.11teaseeeews Selese esseEEEER1111 Or asasJACEREMEEER MPS १७ For Personal & Private Use Only २४ ।६।६।६ २५. दादाद। ५। ५५ १४४४।४।४।४।४।४६ - २। २।२।२।२।२।२।२।२१. १०४११११११११११११११११११११११११६३२ 33-23930ABARDaraPSCENJ9999999EWSpa इस की विधी-पहिले महिने एकान्तर उपवास, दूसरे महिने बेले २पारना तीसरे महिने तेले२पारना, यावत् सोलवे महिने में सोले २ उपवास के पारना करे दिनको उक्तटासन से सूर्यकी आतापना लेघे और रात्रिको वस्त्र रहित वीरासन से ध्यानकरे. इस तपके सब तपदिन ४०७ पारणे के दिन ७३ यों सबादन ४८०होते हैं जिसके १४महिने होते हैं इतने में यह तप पूर्ण होता है। Janwarmmmmmmm * Als Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4. 428 नवमांग-अणुसरोववाई दशांग सूत्र 1984 कम्मेणं दियट्ठाणुकटुए सुराभिमुहे आयावण भूमीए आयावेमाणे, रति बीरासणेणं आवउद्वेणय ॥ ३ तमासं अट्ठमं अट्ठमेणं अनिक्खित्तेणं तबोकमेणं दियट्ठाणू कटूए । सुराभिमूहे, आयावणभूमीए आयावेमाणे, रत्ति विरामणेणं अबाउद्वेणय॥४चउत्थंमासं दसमं दसमेणं अनिक्खित्तर्ण तवो कम्मेणं दियट्ठाणुकट्टए सूराभिमृहे आयावणभूमीए आयावेमाणे रात्तिं वीरासणेणं आवाउद्वेणय ॥ ५ पंचममासं वारसम वारसमेणं अनिक्खित्तेणं तबोकम्मेणं दियट्ठाणुकटूए सूराभिमूहे आयावण भूमिए आयावेमाणे रतिविरासणेणं अवाउडेणय ॥ ६ छट्रेमासं चउदसमेणं २ अणिक्खितेणं तवो कम्मेणं दियाठाणुकटुए सूरामीमहे आयावणभूमीए आयावेमाणे रत्तिवीरासणेणं अवाउद्वेणय ॥ ७ सत्तममासं सोलसमं सोलमेणं अनिक्खितेणं तबोकम्मेणं दियट्ठाणू कटूए सुराभिमुहे आयाणभूमीए आयविमाणे रत्तिं वीरासणे अबाउरहते ऐसे ही दूसरे महीने में एक महिने तक छट २ (वेले ) २ पारने करते और मब विधी उक्त प्रकार ऐसे ही तीसरे महीने में एक महीने तक अष्टम २ [तेले २] पारना करते सविधी उक्त प्रकार ॥ यों यावत् सोलो महीने में एक महीने तक चौंतीस २ भक्त [सोले२] उपवास के पारने करते दिनको उत्कटासन ... प्रथम-वर्गका प्रथम अध्ययन 486 For Personal & Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्थ 49 अनुदादक- बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी द्वेय ॥ ८ अद्रुमंमासं अट्ठारसमं अट्ठारसमेणं अनिखितेणं तवोकरमेणं दियाठाकट्टू सूराभिमूहे आयावणभूमीए आयावेमाणे, रत्तिबीरासणेणं अबाउ ॥ ९ णत्रमंमासं वीसइमं वीसइमेणं अनिक्खित्तेणं तत्रोकम्मेणं दियट्टाणुकट्टूएं सूराभिमूहे आयावणभूमी, रतिं वीरामणेणं अवाउड्डेणय || १० दसमंमासं वावीसाए बावीस ईमेणं अनिक्खित्तेणं दियाणकद्दूए सूराभिमूहे आयावणभूमीए आयावेमाणेणं रतिं वाउ || ११ एक्कारसमंमासं चउवीसाए चउवीसईमेणं अनिक्खितेणं तवोकम्मेणं दियाणुकट्टए सूराभिमूहे आयात्रेमाणे रत्तिविरासणेणं अवाउगुणयं ॥ १२ वारसमंमासं छब्बीसाए छबीसईमेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं दिय'द्वाणु कहुए सूराभिमूहे आयायण भूमीए आयाचेमाणे रात्तं वीरासणणं अवाडेड्डेणय सूर्य की आतापना लेते और रात्रिको वस्त्र रहित वीरासन से रहते ॥ ११ ॥ तबउन जाली अनगारने गुररत्न संवत्सर तपकर्म को सूत्रोक्त विधी प्रमाने साधु के कल्प प्रमाने जिन मार्ग कीति प्रमाने, भगवंतने { कहा वैसा यथा तथ्य सम्यक् प्रकार अपनी कायाकर स्पर्श विशुद्ध भाववाला, शुद्धता पूर्वक, पार पहोंचाया कीर्तियुक्त भयवंत की आज्ञा प्रमाने आराधन किया ॥२॥ फिर जहां श्रमगवंत श्री महावीर स्वामी - तहां For Personal & Private Use Only प्रकाशक- राजावहादुर लाला मुखदेव मझयजी ज्वालाप्रसादजी Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र अर्थ 48- नवमांग अणुत्तरोववाई दशांग मूत्र 48 ॥ १३ तेरसमंमासं अठावीराए अठावीसईणं अनिक्खिसेणं तवोकम्मैणं दिट्टाणुकद्दूए सराभिमूहे आयावणभूमीए आयात्रेमाणे रतिं वीरातणेणं अबाउट्ठेजय ॥ १४ च मंासं तीसइ तीसइमेगं अनिक्खितेणं तवोकमेणं दिययट्ठाणु कद्दूए सूराभिनु यावणभूमीए आयावेमाणं रतिंबीरासणेणं अशउढेण्य ॥ १५ पनसमा बत्ती बत्ती ईमेणं अनिक्खित्तणं तवाकम्मे दियाठाणुक ए सूरामिमूहे आयावणभूमीए आयात्रेमाणे रतिं वीराणं अबाउड्डेय ॥ १६ साल रममान चोतसएम चोती इमेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्पेणं दिणु कद्दूए सूभिमृहे आयात्रण भूमीए आयांवेमाणे रत्ति वीरानमेण अवाउणय ॥ ११ ॥ तएभं से जाली अणगारे गुणरमणं संवच्छरं तत्रो कर्म आहासूतं अहाकप्पं अहमगं अहातचं समकाएणं फासित्ता पालित्ता सोहिता तिरिता किट्टिता आणाए आये, आकर श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर उपनाम बेले तळे चोला पचोला मास खमन (३० उपवास ) आधामास खमन ( १६ उपवास ) आदि विचित्र प्रकार तप कर्म से अपनी आत्मा को मारते हुवेचिचरनेलगे ||१३|| तत्र जन जाली अनगारका शरीर उस For Personal & Private Use Only प्रथम का प्रथम अध्ययन Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी + अराहिता ॥१२॥ जेणेव समणे भववं महावरि तेणवेउवागच्दछ २ त्तसामणे भगव माहावीरं वंदइ नमसइ वंदइत्तानमंसइत्ता बहुहिं चउत्थछट्ठ अट्ठमदसम दुवालसेहिं मासेहिं अधममास खसमणेहिं विचित्तेहिं तवो कम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ १३ ॥ तएणं से जाली अणगारे तेणं उरालेणं विउलेणं पयतेणं पग्गइएणं एवं सचेव जहा में क्खंदस्स वत्तव्यया तहा चेव आपुच्छणा, थेरेहिं सद्धिं विपुलं तहेव दुरुहंति, गवरं सोलस्स बासाइं समण्ण परियाग्गं पाऊणित्ता कालं मासं कालंकिच्चा उर्दु चंदिमाई सोहम्मसिाण जाव आरणाच्चुयोकप्पे नवएगवेजयविमाणं पत्थडेओ वित्तिवयाती विजय विमाणे देवत्ता उबवणे ॥ १४ ॥ तयाणं थेरा भगवंतो जाल अणगारं विचित्र प्रकार के उदार-प्रधान प्रकर्ष तप करके निप्त प्रकार स्कन्ध का कथन भगवती में कहा उस ही प्रकार शरीर से दुर्बलबने यावत् धर्म जागरणा की तैसे ही भगवंत को पूछ कर कडाये (संथार में साहय, करे ऐसे) स्थविर को साथ लेकर विपुलगिरी पर्वत पर पृथ्वी सिलापट्ट पर सपना की, यावत् सोलह वर्ष संयम पाला, काल के अवसर में काल पर्ण करके ऊर्य मौधर्म : ईशान सनतकुमार माहेन्द्र इत्यादि बारह देवलोक नवग्रंयिक को उल्लंघनकर विजय विमान के पाथडे में गये, विनय विमान में देवतापने उत्पन्न हुवे ॥ १४ ॥ तत्र स्थविर भगत जाली अनगार को काल प्राप्त हुवे नानकर कायुत्सर्ग. किया, ॥ प्रकाशक-सजावहादरहाला सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी. For Personal & Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20280 * नवमांग अणुत्तरोववाई दशांग मूष 488+ है. कालगयं जाणित्ता, परिनिव्वाणवत्तियं काउसग्गं करेइ, पत्तचीवराई गिण्ह २ तहेव उत्तरंति जाव इमेसे आययार भंडए॥१५॥ भंतेत्ति ! भगवं गोयमे जाव एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी जालीनाम अणगारं पगइभद्दए, सेणं जालि अणगारे कालगए कहिंगए काहिं उववण्णे ? ॥ एवं खलु गोयमा ! मम अंतेवासी- तहेव जहा क्खंदयस्स जाव कालगए उर्दू चंदिमा जाव विजय विमाणे देवत्ताए उववणे ॥ १६ ॥ जालिसणं भंते ! देवरस केवइयं कालं दिई पण्णता ? गोयमा ! बत्तीसं सागरोवमाइं टुिई पण्णत्ता ॥ १७ ॥ सेणं भंते ! उन जाली अनगार के धर्मोपकरण पात्रे वस्त्रादि ग्रहण कर पर्वत से उतरे, उतरकर भगवंत के पास आये बंदना नमस्कार कर उपकरण मुपरत किये ॥ १५ ॥ भगवान से, भगवंत गौतम श्रमण भगवंत जमहावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर पूछने लगे. अहो भगवन् ! आपका शिष्य प्रकृतिका भद्रिक जाली अनगार, काल के अवसर काल कर कहां गया कहां उत्पन्न हुवा ? हे गौतम ! मेरा शिष्य तैसे ही खंदक की परे आयुष्य पूर्ण कर यावत् उपर चन्द्रमा सूर्य बारे देवलोक नवग्रीयवेक को उल्लंघनकर विजय, विमान में देवतापने उत्पन्न हुवा है ॥ १६ ॥ अहो भगवन् ! जाली देवता की कितने काल की स्थिति है ? । प्रथम-बगेका प्रथम अध्ययन 488 For Personal & Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुवादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी - ताओं देवलोगाओ आउक्खएणं मक्खएणं ठीक्खएर्ण कहिंगच्छति कहिउववजति ? गोयमा ! महाविदेहेवासे सिज्झिरसंति जाव सम्वदुवखाणं अंतं करिस्सइ ॥१५॥ एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइय दसाणं पढमस्स वग्गस्स पढमस्स - अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्वे ॥ इति पढम वग्गस्स पढमअझवणं सम्मत्तं ॥१॥३॥ एवं सेसावि नवण्हं भाणियन्वं, णवरं सत्तधारणी सुत्ता, विहल विहास चलणाए, अभयणंदाए ॥ १ ॥ आइलाणं पंचण्हं सोलस्स वासाइं, तिण्हं बारस्स वासाइ,. हे गौतम ! बत्तीम सागरोपम की स्थिति कही है ॥ १७ ॥ अहो भगवन् ! जालीदेव देवलोक से आयु.. प्य का भव की स्थिति का क्षय कर कहा जावेगा कहां उत्पन्न होवेगा? हे गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में जन्म ले संयम ले सिद्ध बुद्ध मुक्त होवेगा सर्व दुःख का अन्त करेगा ॥ १६ ॥ यों निश्चय, हे जम्बू ! श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी यावत् मुक्ति पधारे उनोंने प्रथम वर्ग का प्रथम अध्ययन का यह अर्थ कहा है॥ १७॥ इति प्रथम वर्ग का प्रथम अध्ययन संपूर्ण ॥१॥2॥ जिस प्रकार जाली कुमार काई आपकार कहा वैसा ही बाकी रहे. नव ही कुमारों का अधिकार जानना,जिसमें इतना विशेष-सात कुमार सो धारणी राणी के पुत्र, विहल्ल कुमार और वे हांस कुमार चिल्लना राणी के पुत्र, और अभय कुमार Amanmainamaina सकाशक राजबहादुर लाला मुखदवसहाय माज्यालाणसादजी* Aaina For Personal & Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 42 १ 434 नवमांग-अणुत्तरोववाई दशांग सूत्र दोहपंधवासाई,स.माणपरियाण।।आइलाणपंचण्हं अणुपुबीए उववाओ,विजय विजयते जयंते अपराजिए सन्वटेसिद्धे दीहदंते सम्वट्ठसिद्धे उक्कोसे सेसा अभओ विजय ॥३॥सेसं जहा पढमे ॥ ४ ॥ अभयस णाणत्तं-रायगिहे णयरे, सेणिएराया, गंदादेवी माया ॥ सेसं तहेव ॥ ५ ॥ एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोक्वाइय दसाणं ___ पढम्मस्स वग्गस्स अयमढे पण्णत्ते ॥ इति पढमो वग्गो सम्मन्तो ॥१॥ x नन्दा राणी के पुत्र ॥ १ ॥ पहिले पांच अनगारोंने सोलह २ वर्ष संयम पाला, तीनोंने बारे २ वर्ष संयम में पाला और दोनोंने पांच २ वर्ष संयम पाला ॥२॥ पहिले पांचजने अनुक्रम से जाली कुमार विजय विमान में, मयाली कुमार विजयंत विमान में, उन्माली कुमार जयंत विमान में, पुरिससेन कुमार अपराजित विमान में, वारीमेन कुमार सर्वार्थ सिद्ध विमान में, दीर्घदन्त सर्वार्थ सिद्ध विमान में, लइदंत अपराजित विमान में, विहल्ल जयंत विमान में, विहांत विजयंत विमान में और अभयकुमार विजय विमान में, उत्पन्न बहुवे ॥३॥ शेष कथन मथम ध्ययन के जैसा जानना ॥४॥ अन्तिम के अभयकुमार राजगृही नगरी, श्रेणिक राजा पिता, नन्दादेवी राणी माता, शेष प्रथय अध्ययन तैसेही॥५॥यों निश्चय,हे जम्बू! अपण यावत् मुक्ति पधारे उनोंने अनुचरोपपातिक दशा के मथम वर्गका इस प्रकार का अर्थ कहा ॥इति प्रथम वर्ग समाप्त ॥१॥ प्र थम-वर्गका देशम अध्ययन + 7 For Personal & Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥हीतीय-वर्ग॥ जइणं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयस्स पढमस्स वग्गस्स अयमढे पण्णत्ते, दोचेस्सणं भंते ! वग्गस्स अणुत्तरोववाई दसाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अट्टे पण्णत्ते ? ॥१॥ एवं खलु जंब ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोवाइयस्स दोच्चस्स वम्गस्स तेरस्स अज्झयणा पण्णत्ता?तंजहा-(गाहा)-दीहसेणे,महासेणे,लट्ठदंतेय, गुढदंतेय, ॥ सुद्धदैतेय, हल्ले, दुम्मे, दुम्मसेणे, महादुमसेणेय ॥ १ ॥ आईए सिहेय, सीहसेणेय, महासीहसेणेय आहिए ॥ पुणसेणेय बोधव्या, तेरसमो होतिअज्झयणे ॥२॥ यदि अहो भगवान ! श्रमण भगवंत यावत् मुक्ति पधारे उनोंने अनुत्तरोपपातिक दशा का प्रथम वर्गका उक्त अर्थ कहा, तो अहो भगवान! अनुत्तरोपपातिक दशाके दूसरे वर्गका श्रमण यावत् मुक्ति पधारे उनोंने क्या अर्थ कहा ? ॥१॥ यों निश्चय हे जम्बू ! श्रमण यावत् मुक्ति पधारे उनोने दूसरे वर्ग के तेरे अध्ययन कहे हैं तद्यथा- दीर्घसेन कुमार का, २. महासेन कुमार का, ३ लष्टदन्त कुमार का, ४ गुढदन्त कुमारका, ५/3 शुद्धदन्त कुमार का,६ हल्लकुमार का,७ द्रुमकुमार का, ८ द्रुमसेव कुमार का ९महासेन कुमार का, १० सिंह कुमारका,११ सिंहसेन कुमार का,१२ महासिंहसेन कुमार का, और१३ पुण्यसेन कुपरका जानना, यह दूसरे वर्गके तेरे भध्यन के नाव हुवे ॥ २ ॥ यदि अहो भगवान ? श्रमण भगवंत यावत् मुक्ति पधारे ‘उनोंने 42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वाला प्रसाद अर्थ For Personal & Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र अर्थ जइणं भंते! समगेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइय दसाणं दो बरस वग्गस्स तेरस्स अययणा पण्णत्ता, दोच्चरणं भंते ! वग्गस्स पढम अज्झयणस्स जाव संपत्तणं के अट्ठे पण्णत्ते? ॥*॥ एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहेणयरे गुणसिले चेईए, सेणिएराया, धारणीदेवी, सिहे सुमिणे जहा जाली तहा जम्मणं, बावलतणं कलाओ, वरं दीह्णे कुमारे सव्ववत्तव्यया, जहा जालिरंस जाव अंतंकरति । १ । एवंतेरस्स चिरायगिहे नयरे सेणिए पिया, धारिणी माया, तेरस्सण्हंचि सोलस्तवासाए परियायं मासीयाए संलेहणाए आणुपुथ्वी उबवाओ विजय दोण, विजयं ते दोणि, जयंतेदोणि, अपराजिते दोणि, | दूसरे वर्ग के तेरे अध्ययन कहे तो दूसरे वर्ग के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा ? ॥ ● ॥ यों निश्चय हे जम्बु ! उस काल उस समम में राजगृही नगरी, गुनसिला बाग, श्रेणिक राजा, धारनी रानी, सिंहका स्वप्न देखा, दीर्घसेन कुपर नामदिया. शेष जैसा जाली कुमार का अधिकार कहा तैसा ( ही सब इसका वालक्रीडा कहना, बहुतर कलापडे, विशेष दीर्घ सेन नामदिया आदि वक्तव्यता जानना. जिस { प्रकार जालि कुमार विजय विमान मे गया तैसे यह भी विजय विमान में गया यावत् महाविदेह से मुक्ति { जावेंगा || १ || इस प्रकार ही तेरही शध्ययन का अधिकार जानना, तेरे ही की राजगृही नगरी, श्रेणिक 4 नवमांग अणुत्तराववाई दशांग सूत्र For Personal & Private Use Only 44 द्वितीय वर्गका दशम अध्ययन 4 १५ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सैसा महादुम्म सेणं माइये पंच मन्वट्ठ सिद्धि ॥२॥ एवं खलु जंबू ! समणणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोवबाइय साणं दोच्चस्सवग्गस्त अयमढे पपणसे, दोसुवि वग्गेसु तिबमि ॥ बीओ वग्गो सम्मत्तो ॥ २ ॥ राजा पिता, धारणी राणी माता, तेरीहीन सोलह वर्ष संयम पाला, सत्र के एक महीने की सलेपना नानना. अनुकम से, विजय विमान दो, वेजयंत में दो, अपराजिन में दो और शेष महासेन आदि पांच सर्वार्थ सिद्ध विमान में उत्पन्न हुवे सब महाबिदेह में मोक्ष जावेंगे ॥११॥ यों निश्चय, है जम्बू ! श्रमण पावत् मुक्ति पधारे उनीने अनुत्तरोपपातिक दशा के दसरे वर्ग का यह अर्थ कहा ॥ इति द्वितीय वर्ग समाप्त ॥२॥ 48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अोलक ऋषिजी + Annanmmmmmmmmmmmmmmmmmm . प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी me kede Saah Geet For Personal & Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www 41 नवमांग-अणुत्तरोत्राई दशांग मृण ॥ तृतीय-वर्ग ॥ जइणं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोबवाइए दाणं दोच्चस्स बग्गरस अयमढे पण्णत्ते; तच्चस्रणं भंते ! वग्गस्स अणुत्तरोववाइय दपाणं समणेणं भगव्या महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते ? ॥ १ ॥ एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपरोणं तचस्सवग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता तंजहा-(गाहा)-धणेय,सुनक्खत्तेय, इसियदाय, आहिते ॥ पेलाए रामपुत्तेय, चंदमा, पुट्ठिमाइया ॥.॥ पेढ लपुत्ते आणगारे, नवमो पोटिलतिय ॥ विहल्लेय, दसमेबुत्त, एते अज्झयणा आहिया ॥ २ ॥ जइणं मंते । समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइय दसाणं तच्चस्स बग्गरस दस । यदि अहो भगवन्! श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी धर्मकी आदिके करता यावत् मुक्ति पधारे उनोंने अनुत्तरोपपातिक दशाका दसरे वर्गका उक्त अर्थ कहा,तो अनुत्तरोपपातिक दशाके तासरे वर्गका क्या अर्थ कहा॥१॥निश्चय, हे अम्बू ! श्रमण यावत् मुक्ति प्राप्त हुवे उनोंने तीसरे वर्ग के दश अध्ययन कहे हैं, उन क नाम- धन्ना अनगार का, २ सुनक्षत्र अनगार का, .३ ऋषिदास का, ४ पेल्लक पुत्र का १५ राम पुत्र का, ६ चन्द्र कुमार का, ७ पोष्टि पुत्र का, ८ पोढाल कुमार का, ९ पोटिला साधु का,800 और १.० विहल्ल कुमार का. यइ दश अध्ययन कहे हैं ॥ २॥ यदि अहो भगवन् ! अपण भगवंत। 48488 तृतीय-वर्गका प्रथम अध्ययन 4888 For Personal & Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अज्झयणा पण्णत्ता,पढमस्सणंभंते!अज्झयणस्स समणेणं जाव संपत्तणं के अट्रे पण्णत्ते? ॥३॥एवं खलु जंबू! तेणं कालणं तेणं समएणं काकंदी नाम नरी होत्था, रिद्वत्थामया समिड, सहसंववणे उज्जाणे सव्वओय, जियसत्तुराया, ॥४॥ तत्थणं काकंदीय नयरीए भद्दाणामं सत्थवाही परिवसंति, अट्ठा जाव अपरिभुया ॥५॥ तीसणं भदासात्यावाहीए पुत्ता धन्ना नामए दारए होत्था अहीणा जाव सुरूवा, पंचधाई परिग्गहिइ, 4. अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + यावत् मुक्ति प्राप्त हुवे उनोंने तीसरे वर्ग के दश अध्ययन कहे हैं तो अहो भगवन् ! प्रथम अध्ययन का मण यावत् मुक्ति प्राप्त हुवे उनोंने क्या अर्थ कहा है ?॥३॥ यों निश्चय, हे जम्बू ! उस काल उस समय में काकंदी नामकी नगरी थी. वह ऋद्धि समृसिकर संयुक्त थी, उस के ईशान कौन में सहश्रम्ब नाम का उध्यान था, वहां जीत शत्रु नाम का राजा राज्य करता था ॥ ४ ॥ तहां काकंदी नगरी में है भद्रा नामकी सार्थ वाहिनी रहती थी, वह ऋद्धिवंत यावत् अपराभवित थी ॥५॥ उस भद्रा सार्थ वहीनी के धनानाम का पुत्र था वह पांचोइन्द्रियों कर पूर्ण यावत् मुरूपवंत था, वह पांच धायमाता से परिवरा हुवा बृद्धिपाया जिन के नाम-१ क्षीर-दूधपिलाने वाली ध्याय २ मज्जन कराने वाली, ३ भूषण पहनाने वाली, ४ गोद में खिलाने वाली और ५ क्रीडा कराने वाली, यावत् महावल कुमार को तरह प्रकाशक-राजाबहादुरलाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी For Personal & Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ88880 Page नवमांग-अणुसरोक्वाई दशांग सूत्र 4387 तंजहा-खीरधाईए जहा महाबलो जाव बावत्तरिकलाओ अहिजंति जाव अलंभोग समत्थं जाएआविहोत्था ॥ ६ ॥ तएणं सै भद्दा सत्थवाहिं धण्णदारयं उमुक्त बालभावं जाव भोगसमत्यंच वियाणिया, बत्तीसं पासाय वडिसए कारेई,२त्ता अब्भग्गय मसीए जाव तसिंमझं भवण अणेग खंभ सयसन्निविट्राजाव बत्तीसाए इब्भवरकन्नगाणं एगदिवसणं पाणिगिण्हावेई,बत्तीसंओदाओ जाव उप्पिंपासाय फुडएहिं जाव विहरंति ॥ ७ ॥ तेणंकालेणं तेणंसमएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे, परिसानिग्गया,राय जहा कोणिओ तहा जियसत्तु जिग्गओ ॥८॥तएणं तस्स बाल्यावस्था से मुक्त हो विज्ञान अवस्था को प्राप्त हों बहुतर पुरुष की कला का अभ्यास किया यात् संपूर्ण भोग भोगवने समर्थ हुवा ॥ ६ ॥ तब भद्रासार्थ वहीनी धन्ना कमर को बाल्यावस्था से मुक्त हो यावत् भोग भोगवने सामर्थहुवा जानकर उस केलिये यत्तीय प्रसाद कराये वे बहुत ऊंचे सप्त मजले] यावत् उनके मध्य मेंएक भवन अनेक स्थम्भोकर वेष्टित था.यावत उसघना कुमार को बत्तीस ईभसेठकी कन्याकेमाथपानी ग्रहण कराया यावत् प्रसादपर मृदंग के सिरफुटते हुवे पांचोंइन्द्रिय के सुख भोगते हुवे विचरनेलगे ॥ ७॥ उस काल उस समय में श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी पधारें महश्रम्ब उध्यान में विराजमान हवे नीत शत्र राजा भी कोणिक राजा की तरह वंदने आया ॥८॥ तब उस धन्नाकुमार तृतीय वगेका प्रथम अध्ययन * . For Personal & Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी धण्णदारयस्स तं महया जणसदं जहा जमाली तहा णिग्गए. णवरं पायविहारेणे जाव जं णवरं अम्मया भई सत्थवाहं आपुच्छामि, तएणं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए जाव पव्वयामि, जाव जहाजमालि तहा अपुच्छिया,मुच्छिया,वृत्त पडिवुत्तिया,जहा महाबलो जाव नोसंचाईय, जहा थावच्चा पुत्तरस जहा जियसत्तु आपुच्छाइमि, छत्त चामराओ को भगवंत अगमकी खबर लोगों के महाशब्द सुन जानी, जिसपकार जमाली वंदने आयाथा उसही प्रकार से धन्नाकुमर भी आया जिसमें विशेष यह पांघोंसे चलकर आया, धर्मकथासुनी परिषदा राजा पीछेगये,धनाकुमर धर्मकथा श्रवनकर हर्ष संतोषपाया यावत् कहनेलगा अहो भगवान! में मेरीमाता भद्रासार्थ वाहिनीसे पूछकर आपके पास दीक्षा लेगा. भगवंतने कहा जिस प्रकार मुख होवे वैसा करो, तब धमाहर्ष संतोष पाया अपने घरको आया जमालीकी तरह माता से प्रश्नोत्तर हुने यावत् जिस प्रकार महावल कुमार के मातपिता ललचा सके नहीं उम ही प्रकार यह भी ललचाये नहीं, जिस प्रकार थावरचा पुत्र की माताने दीक्षा के उत्सव की कृष्णजी से याचना की थी उसही प्रकार भद्रासार्थवाहीनीने जीत शत्रुराजा मे दीक्षा महोत्सव की याचना की, जित शत्रुराजा चतुरंगनी सेना सज यावत् सर्व सामग्री युक्त धन्नासाथ वहीं के घरगया, धन्नाकुमारको समनाया,वह ललचाया नहीं तब जितशत्रुराजाने दीक्षाउत्सव किया, छत्रचार • प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी For Personal & Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 488+ नवमांग-अणुत्तरविवाई दशांग मूत्र. 488 सयमेव जियसत्तु निक्खमणं करेइ; जहा था बच्चा पुत्तस्स कण्हे, जाव पव्वइए, अण. गारेजाए, इरियासमिए जाव गुत्तबंभयारी ॥ ९ ॥ तएणं से धण्णे अणगारे, जंचेव दिवसे मुडेभवित्ता जाव पव्वइयाए तंचव दिवसेसं समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-एवं खलु इच्छामिणं भंते ! तुम्भेहिं अब्भणु ण्णाए समाणे जाव जीवाए छटुं छट्टेणं अणिक्खित्तणं आयंबिले पारग्गहिएणं तवो. जितशत्रु राजा स्वयं धारनकर जिस प्रकार थावरचापुत्र को कृष्णजीने दीक्षा दिलाइ थी उस ही प्रकार धन्ना कुमार को भी जितशत्रुराजाने दीक्षा दीलाइ, यावत् धन्ना अनगार हवे इर्यासमिती समिता यावत् गुप्तब्रह्मचारी बने ॥ १ ॥ तब धन अनमार जिस दिन दीक्षा धारण की उमही दिन श्रमण भगवंत श्री महावीर सामीजी को वंदना नमस्कार कर इस प्रकार अभिग्रह धारन किया-यों निश्चय अहो भगवन् ! आप की आज्ञा होतो मैं जावजीच पर्यन्त बेले २ तप निरन्तर करूं, बेले के पारने में आयंबिल कर्फ इस प्रकार तप कर्म से अपनी आत्मा को भावता हुवा विचरूं, बेले के पारने में मुझे आयंबिल-32 लूक्ख एक ही प्रकारका अन्न ग्रहण करना कल्पे किन्तु आयंबिल विना पारना करना कल्ले नहीं, वह भी 20 भाहार भरे हुवे हाथ से देवे तो लेना कल्पे किन्तु विना भरे हाथ से देवे तो लेना कल्ये नहीं, वह भी आहार घरवालो के खाकर वाढडो-बचा हुवा हो जो किसी के काम में नहीं आतहो उमे करडी आदी । वर्गका प्रथम अध्ययन 88 For Personal & Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ 49 अनुवादकालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी - कम्मेणं अप्पाणं भात्रमाणे विहरित्तए, छठुस्स वियणं पारणगसि कप्पइ मे आयंबिले पडिग्गाहित्तए, णोचेवणं अणाआयंबिलं, तंपिय संसटेणं णो चेवणं असंसट्रेणं, तंपियणं उज्झियं धम्मियं णो चेवणं अणुज्झियं धम्मियं,तंप्पियणंजं अन्ने वहवे समणे माहणे अतिहि किवण वणिमग्ग णावकंक्खंति ? अहासुहं देवाणुप्पिया ! मापडिबंध करहे ॥ १० ॥ तएणं धन्ने अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणण्णाए समाणे हद तष्ट जाव जीवाए छद्रं छद्रणं अणिखितेणं तवो कमेणं अप्पाणं भावमाणे विहरई ॥ ११ ॥ तएणं धण्णे अणगारे पढम छट्ठखमणं पारणंयांस पढमाए पोरसियं सज्झायं पर डालने जाते हों दैला लेना कल्पे किन्तु घर में रखने जैसा होतो वह आहार लेना कल्पे नहीं, वह भी नहाखने जाताहो, उसे अन्य दूसरा शमण लाक्यादि.महाण-ब्रह्म गादि अतीथी बावाजोगी कृपण-रांक वनीमग भिक्षाचर को देने से उस आहार की बांछा कर नहीं ऐसा एकान्त निकम्मा न्हाखने लायक बला जला. खुरचनादी का खराब आहार ग्रहणकर उस से पारना करना कल्पे ? भगवंतने कहा जिस प्रकार तुपारी आत्मा को सुख उत्पन्न हो वैसे करो, किन्तु धर्मकार्य में विलम्ब मतकरो ॥१०॥ तब धन्नाअनगार श्रमण भगवन महावीर स्वामीजी की आज्ञापतकर हर्ष तुष्ट हुवे यावत् जावनीव बेले २ तपकर्म अन्तर रहित करते हुवे अपनी आत्मा को भावते हुवे विचरने लगे ॥ ११॥ तब धनाभनगार प्रथप आयंबिल है . प्रकाशक-राजावहाहर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी. 6 For Personal & Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्थ नवमांग- अणुत्तरोववाई दशांग सूत्र 4 कति जहा गोयमसामी आपुच्छंति जाव जेणेव काकंदी णयरी तेणेव उवागच्छ २ त्ता काकंदीय णयरीए उच्च जात्र अडमाणे अयंबिले णो अणायंबिलं जाव नाव कंक्खंती ॥ १२ ॥ तरणं घण्णे अणगारेताए आभुजताए पयत्ताए पग्गहियत्ताए एसणाए, एसमा जइ भंते लभइ णो पाणं लब्भइ, अह पाणं लब्भइ णो भत्तं लब्भइ ॥ १३ ॥ तरणं से धन्ने के पारने के दिन प्रथम प्रहर में स्वध्याय की, दूसरे महर में ध्यानधरा, तीसरे प्रहर में मुहपती वस्त्र पात्रादि का प्रतिलेखनकर गौतम स्वामीजी की तरह भगवंत से पूछकर यावत् जहां काकंदि नगरी तहां आये, काकंदी नगरी के ऊंच क्षत्रियादि के कुलों में, नीच कृपणादि के कुलों में मध्यम वणिकादि के कुलों में भीक्षार्थ परिभ्रमण कर आयंबिलवाला लूक्खा एकही प्रकार का धान्य ग्रहण) किया, किन्तु आयंबिल बिना का चिह्नना आदि विविध प्रकार के आहार की वांछ भी की नहीं, तथा श्रमण ब्राह्मणादि के काम में न आवे ऐसा आहार ग्रहण किया ॥ १२ ॥ तब धन्ना अनगारने आहार के मालक गृहस्थ से पूछकर उस आहार को ग्रहण किया. किन्तु बिना पूछा वह भी परतीत उत्पन्न हो ऐसा आहार ग्रहण किया, किन्तु किसी प्रकार अप्रतीव हो आहार ग्रहण किया नहीं. ग्रहण करते कभी आहार मिले तो पानी नहीं मिले, और For Personal & Private Use Only वृतिका प्रथम अध्ययन ग्रहण किया नहीं, [ निन्दा हो ] ऐसा कभी पानी मिले . २३ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ अनुवादक-बालग्राचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी g+ अणगारे अदीणे अविमणे अकलुसे अविसायी अपरित्तत्तजोगी जयणघडण जोगचरित अहपज्जत्त समुद्दाणं पडिगाहित्ति २ त्ता काकंदीणयरीओ पडिणिक्खमइ २ ता जहा गोयमे तहा पडिदसइ॥१४॥तएणं से धण्णे अणगारे,समणं भगवं महावीरेणं अब्भणुणाए समाणे अमुच्छाए जाव अणज्झोववन्ने विलमिव पणगभूएणं अप्पाणणं आहारं आहारिइरत्ता, संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरंति॥१५॥तएणं समणे भगवं महावीरे अण्णया कयाई काकंदीओ पयरीओ संहसंब वणाओ उज्झाणाओ पडिणितो आहार नहीं मिले ॥ १३ ॥ तब धन अनगार इस प्रकार आहार की प्राप्ति में, दीनपने सहित, किमन [ उदासी ] रहित, आकुलता रहित, आहाट दोहट वित्त के (व्याकुलता)विचार रहित, तृष्णा रहित मनादि जोग है जिन का ऐसे यत्नयुक्त यथा पर्याप्त चाहिये उतना आहार बहुत घरों से ग्रहण किया, ग्रहण कर काकंदी नगरी से निकलकर, गौतम स्वामी की तरह भगवंत को आहार बताया ॥ १४ ॥ तब वे धमा अनगार अनण भगवंत श्री महावीर स्वामीकी आज्ञा प्रप्तहोते मूर्छा रहित थावत् लुब्धाता रहित जिस प्रकार बिलमें सर्प प्रवेश करता हैं उस ही प्रकार ममत्व रहित आहार किया, आहारकर संयम तपसे अपनी आत्मा भावते हुये विचरने लपे ॥ १५ ॥ तक श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामीजी अन्यदाकिसीवक्त कांकंदी * प्रकाशक-राजाबहादर लाला मुखदेवसहायजा ज्वालामसादी For Personal & Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ... 488 नवमांग-अणुत्तरोववार्ड' दशांगः सूत्र 488 क्खमइ रत्ता बहिया जणवय विहरति ॥ १६ ॥ तएणं से धणेअणमारे समणस्स . भगवओ महावीररस तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस्सअंगाई अहिझंति, सजमेणं तबसाअप्पाणं भावमाणे विहरंति ॥१७॥तएणं से धण्णे अणगारे तेणं उरालेणं तबो करमेणं जहा खंदओ जाव सुहुथ हुयासणेइव तेयसा जलंति . उवसोभेमाणे चिट्ठति॥१८॥धन्नसेणं अणगारस्स पायाणं इमेयारूवे तवरूवलावण्णहोत्या से जहा नामए-रुक्खछाल्लीइवा, कट्ठपाउयाइवा, जरगाउवादगाइवा, एवामेव धन्नस्स अणगारस्स पाया सुक्का भुक्खा लुक्खे निमंसा अढि चम्म छिरत्ताए पन्नायंति, नो भी नगरी के सहश्रम्ब उद्यान से निकले निकलकर बाहिर जनपद देश में विचरने लगे। १६ ॥ तब वे का अनगार श्रमण भगवंत श्री महावीर के पासके तथारूप स्थविर भगवंत के पास सामायिकादि इग्यारे अंगमा अभ्याम किया, संयम तपकरके अपनी आत्माको भावते हुवे विचरने लगा ॥ १७ ॥ तब वह धना अनगार उस औदार्य प्रधान तप कर सूक्षगये भूकवने रूक्ष हुवे तद्यपि तप तेज कर खन्धक अनगार की परे जिस प्रकार राख से ढकी हुई अग्नि शोभती है. इस प्रकार शोभादेते थे ॥ १८ ॥ धन्ना अनगार के पति इस प्रकार तप कर लावण्यता को प्राप्त हुवे, यथा दृष्टान्त-वृक्ष की छाल, लकडकी पवंडी / खंडाग पुरानी है। -पगरस्सी (जूते) जिस प्रकार के होते हैं, इसप्रकारके धन्ना अर्नमार के पवि मूके मूक्षमा मांस रहित हुवे थे, तृतीय-चनका थप अध्ययन For Personal & Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेवणं मंस सोणियत्ताए॥ १९ ॥ धन्नरस अणगारस्स पायंगुलीयाणं अयमेयारवे से जहा नामए कलसंगलियाइवा मुग्ग-माससंगलियाईवा, तरुणिया छिण्णा उण्हेदिण्णा सुक्कासमाणी मिलायमाणी चिटुंति, एवामेव धन्नस्स अणगारस्स पायंगुलिया सुक्काओ जाव णो मंससोणिएतए॥ २०॥ धन्नासणं अणगारस्स जंघाणं अयमेया रूवे-से जहा नामए-काकजंघाइवा, ढेणियालियजंघाइवा, जाव णो सोणियात्तए ॥२१॥ धन्नस्सणं जाणूणं अयमेयारूवे से जहा नामए-कालीपोरेइवा, मयुरपोरेइवा, ढिणिया लिया पोरेइवा, एवं जाव णो सोणियात्तए ॥ २२ ॥ धण्णस्सउरु से जहा नामए. TE आस्थि (जी) चमडा नशा जाल देखाती थी किन्तु मांस और रक्त करके रहित ये ॥ १९ ॥ धमा अनगार की पांव की अंगुलीयों इस प्रकार की थी-यथादृष्टन्त-तूअर की फली, मूंग की फली, उडद/a की फली, इन फलीयों को हरेपने में कच्चेपने में ही छेदन कर धूप के ताप में सुकाने से कुमलाकर प्रकार देखाती है, इस प्रकार धना अनगार की पांव की अंगुलियों सूकी यावत् मांस रक्त रहित थी ॥ २० ॥धमा अनगार की पांव की जंघा { पीडी] इस प्रकार यथादृष्टान्त काग की जंघा जैसी, दांक पक्षी की जंघा जैसी, यावत् रक्त मास रहित थी॥२१॥ धना अनगार के जानु [ घुटने ] यथादृष्टान्त, काग के दौचन, मयुर के हींचन, ढांक के बचन इस प्रकार थे यावत् मांस रक्त रहित के ॥२२॥ पवार 403 अनुवादक-चालनमगरी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + प्रकाशक-राजाबहादुर काला मुखदेवस जी ज्वालाप्रसादजी For Personal & Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + नवगि-अणुचरोवदाई दांग मूत्र + सामकरिजिइबा, बोरिकरिल्लिइवा, सल्लइयकारिलिइवा, सामलीकरिलइवा, तरुणाय छिन्माउण्हेदिण्णा जाब चिट्ठइ, एवामेव धन्नस्त उरु जाव जो सोणियात्तए॥२॥धनस्स कडि पिटुस्स इमेयारूये,से जहानामए-उंदृपाएइवा, जगपाएइवा,महिसपाएइवा जाव णो सोणियत्तए ॥ २४ ॥ धन्नस्स उदर भायणरप्त अयनेयारूवे से जहा नामए-सुक्कदीईइवा, भजणयकभलिइया, कमलाएइबा, एवा मव उदरसुक्कं ॥ २५ ॥ धन्नस्स पासुलिया करंडयाणं इमेयारवे से जहा नामए-धासयावलिइवा, पाणावलीइवा,मुंडावली. इवा,सुंडावलीइवा गोलावलीइवा एवामेव०॥२६॥धण्णस्स पिटुकरंडगाणं-अयमेयाख्वे से अनगार का रू (साथल) पयादृष्टान्त भिगक्ष की शाखा, बोरडीवृक्ष की शाखा, सांगरीवृक्ष की शाखा, हरेपने में छेदन कर धूप के ताप में मूकाने से कुपलाकर जैसी देखाती है तैसी मांस रक्त रहित थी ॥२॥ धमा अनगार की कमर का विभाग इस प्रकार था यथा दृष्टान्त-ऊट का पांव, जरख (बेला) का पांवमेंस का पांव यावर रक रहित था ॥ २४ ॥ धन्ना अनगार का उदर पेट) माजन [बरतन] था, यथारन्त-सूकी हुइ चमहे की मशक, रोटी पकाने का कडहावला, लक्कड की कथरोटी, इ पेट सूका या ॥ २५॥धमा अनगार के पासलीयों करंड इस प्रकार था,यथादृष्टान्त-बांस का कर जीवा, बासकी टोपली, बांसके पासे,बाँसका मूंडला यावत् रक्तरहितया ॥२६शाधना अनगारका पृष्ट विभाग इस धर्मका प्रथम अध्ययन 28 4 | । For Personal & Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Rom 48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी.-8+ जहाँ नामए-कन्नावलीइवा, गोलावलीइवा, बटावलीइवा, एवामेव ॥२७॥धण्णस्स उरु करंडयस्स अयमेयारूवे से जहा नामए-चित्तय कंदूरेइवा, विणयपत्तेइवा, तालियंटेण पत्तिइवा, एवामेव०॥ २८ ॥ धन्नरस वाहाणं से जहा नामए• समिसंगलियाइवा, वाहायसंगलियाइवा, अगस्थियसंगलियाइवा एवामेव० ॥ २९ ॥ धण्णस्स हत्थाणं से जहा नामए-सुक्क छगणियाइवा, वडपत्तेइवा, पलासपत्तेइवा, एवामेव० ॥ ३० ॥ धन्नस्स हत्थंगुलियाणं से जहा नामए-कालसंगलियाइवा, मुग्ग-माससंगलिकाइवा, तरुणिया छिन्ना आयवदिण्णा सुक्कासमाणी एवामेव०॥ ३१ ॥ धन्नस्सगीवाए से जहा प्रकार था-यथादृष्टान्त-बांस की कोठी, पाषान के गोलों की श्रेणी, घडोंकी श्रेणी इस प्रकार॥२७॥ धन्ना अनगार की छाती इस प्रकार की थी यथादृष्टान्त-बिछाने की चटाइ, पत्ते का पंखा, दुप्पड का पंखा,, इस प्रकार ॥ २८ ॥ धन्ना अनगार की वांह यथादृष्टान्त-समले की फली, पाहाडे की फली, अगयीय फली, इस प्रकार ॥ २९ ॥ धना अनगार के हाथ (पंजे) यथादृशन्त-सका छाना (कंडा) बर का पत्ता, पलास का पत्ता इस प्रकार ॥ ३० ॥ धन्ना अनगार के हाथ की अंगुलीयों इस प्रकार तुबरकी फली,मूंगकी फली उडदकी फली, हरी कच्ची छेदनकर धूप के तापमें मूकाइ होने से कुमलाइ हुइ देखाती है। इसपकार॥३१॥षमा अनगार की ग्रीवा (गरदन )यथादृष्टान्त-लोटे का गला,कूडे-याकमंडलका गला, कोय । mmanawwwwwwwww • प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सझयजी ज्वालामसादजी For Personal & Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7 488 । नवमांग-अणुत्तरांचवाई दशांम मूत्र 4 नामए-करगगीवाइवा, कुडियागीवाइवा,कोत्थवणाइवा,उच्चत्थवणाइवा एवामेव०॥३२॥ धन्नस्स हणुयाणं से जहा नामय-लाउफलेइवा,हकुवफलेइवा,अंबगट्टियाइवा, एवामेव. ॥ ३३ ॥ धन्नस्सणं उट्ठाणं से जहा नामए-सुक्काजलोयाइया, सिलिसेगुलियाइवा, अलत्तगगुलियाइवा,अंबाडगपेसीयाइवा एवामेवा ०॥३४॥धन्नस्स जिहा-से जहा नामए वडेपत्तेइवा,पलासपत्तेइवा, उबरपत्तेइवा,सागपत्तेइवा, एवामेव ०॥३६॥धन्नस्सनासियाए से जहा नामए-अनंग पेसियइवा, अंबडग पसियाइवा, माउलिंगपेसियइवा, तरुणियाइवा, एवामेव० ॥ ३६ ॥ धण्णस्स अत्थिणं से जहा नामए वीणाछिद्देइवा बधीसग छिद्देइवा, पभाइयतारगाइवा, एवामेव ० ॥ ३७ ॥ धन्नस्स कन्नाणं, से जहा नामएलीका मुख, उर्द्धमुख भाजन इस प्रकार॥३२॥ धन्ना अनगारकी हणु दढी] यथादृष्टान्त मूका तुम्बा, हकुन का फल, आम्ब की गुठली इस प्रकार ॥३३॥ धना अनगार के होष्ट (होट) यथादृष्टान्त-सूकी जलोक, सूका श्लेषम, अलत (लाख) की गोली इस प्रकार ॥३४॥ धना अनगार को जिव्हां यथ दृष्टान्त-बड का पत्ता, पलास (खांखरे) का पत्ता, गुलर का पत्ता, साग का पत्ता, इस प्रकार ॥३५॥धना अनगार की नाशीका यथारष्टान्त-आंबकी कतली, अम्बाडे की गुठली, बीजोरे की कतली, हरी छेदकर मुकाइ हो। ऐसा ॥ ३० ॥ धन्ना अनगार की आंख यथादृष्टान्त-चीणा के छिद्र, बांसली के छिद्र, प्रातःकालके.सतारे तृतीय-वर्गका प्रथम अध्ययन 488 4 For Personal & Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +8 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी - मुलाछाखियाइबा, वालुकीछाल्लियाइवा, कारल्लयछालियाइवा, एवामेव० ॥ ३८ ॥ धन्नस्स अणगारस्स सीस्स अयमेवरूवे से जहा नामए-तरुणगलाउएतिवा, तरुणगए लालुयाइवा, सिण्हालएइवा, तरुणाए छिन्न जाव मिलाएमाणी चिटुंति एवामेवधन्नास अणगारस्स सीसं मुक्कं भुक्खं लूक्खं निमंसं अट्टि चम्म छिरत्ताए पन्नायंति नोचेवणं मंस सोणियत्ताए॥३९॥ एवं सवत्थमेव णवरं उदरभायणं, कन्ना, जिहा, उट्टा, एसिं अट्टि नभणंति, चम्मछिरत्ताए पन्नायंति इति भणंति ॥४०॥ धन्नणं अणगारे सुक्केणं भुक्खणं पाय जंघारुणाविगत तडिकरालेणं कडिकडिहिणं पिट्ठ मणुस्सिएणं इस प्रकार ॥ ३७ ॥ धमा अनगार के कान मूले की छाल, खरबुजे की छाल, करेसे की । छाल, इस प्रकार ॥ ३८ ॥ धन अनगार का मस्तक यथा दृषान्त तरून कोले का फल, तुम्बे सिल्हाकंद तरूनपने में जैसा होता है इस प्रकार का पन्ना अनगार का मस्तक सूका लूखा मांस रहित अस्तिका चमडे कर चेष्टित था निश्चय से मांस और रक्त या उस में नहीं था।॥ ३९ ॥ इस प्रकार सर शरीर जानना निसमें इतना विशेष, उदर, कान, जिव्हा, होष्ट, इतने स्थान में अस्थि(हड्डी) नहीं कहना परन्तु चमडे । का वर्णन करना ॥४०॥ धन्ना अनगार का शरीर सूकगया भुक्ष हुवा लूक्खा होगया, पाव नपा साधला *सह शरीर शुक्क तप से, उठते बैठते करड २ शब्द करने लगा, पृष्ट भाग मांस लोही रहित उदर माजमा .प्रकाशक राजावहादुर लालामुख जी ज्वालाप्रसादनी For Personal & Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . उदरभायणेणं जोइजमाणेहिं पंसुलीकरंडएहिं अक्खसुत्तमाला विवगणिज्जमाणाहिं पिट्टिकरंडगसंधिहिं गंगातरंगभूएणं, उरकडाग देसभाएणं सुक्क सप्प समाणेहि बाहाहिं सिढिलकडालीविव लंबतहिय अग्गहत्यहिं कंपणवइओविवदेतमाणहिं सीस. घडिए पंचायवदनकमल उब्भडघडामुहे उच्छद्देनयणकोसे; ॥ ४१ ॥ जीवं जीणं गच्छड. भासं भासिस्सानिति गिलायड से जहा नामए-इंगालसगडियात जमा खंधओ तहा हुयासणे इव भासरासी पलिछिन्ने,तवेगं तेयणं तवतेयं सिरिए अतिवर mamiwww नवमांग-अणुनरोत्रवाई दशांग सूत्र जैसा युक्त पसिलियों का करंड सूत में परोये मालाके दाने अलगरगिन लिये जावे त्यों शरीर की रहीयों अलगरगिना लिये जावे,पृष्ट करंड छाती करंड गङ्गाकी तरङ्गो समान,सूकी हुई यह सूके हुचे सांप समान,मूका हुवा शरीर इस्त का अग्रभाग सके थोरे के हत्थे समान था, चलते हुवे अगकम्पाय मान होता था. हडीथोंका शब्द होता था, जिस प्रकार वायु के रोगकर शरीर कम्मता है उस प्रकार मस्तक हलता, मुख कमल पत्र समान निस्तेज देखाता था, आंखो अंदरगइ देखाती थी, इस प्रकार शरीर कोष्ट होगया था ॥४१॥॥ धमा अनागर जीव की शक्ति के आधार से चलते थे, भषा बोले पहिले वोलती बक्त और बोलवाद स्वेदित होते थे, उन का शरीर उठते बैठते करंड २ शब्द करता और चलती वक्त जिस प्रकार कोयले की भरी हुइ गाडी वह २ बजती है त्यों शरीर के अन्दर की हड्डियों का आवाज होता था." जिस प्रकार संघ की जीका वर्णन भगवती मूत्र में कहा है वैसा इन का भी सब जानना यावद mammmmmmmmmmmmmm तीय वर्मका वम अध्ययन 488 488 | । For Personal & Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 42 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी : उवसोभेमाणे २ चिट्ठइ ॥ ४२ ॥ तेणंकालेणं तेणंसमएणं रायगिहे जयरे, गुणसिलए चेइए, समणे भगवं महावीरे समोसढे परिसाणिगया सेणिओ णिगओ, धम्मकहा, परिसा पडिगया ॥ ४३ ॥ तएणं से सणिएराया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मंसोच्चा निसम्म समणं भगवं वंदइ नमसइ वंदइत्ता नगंसित्ता एवं वयासी इमेसिणं भंते ! इंदभूई पामोक्खाणं चउद्दसण्हं समणं साहसीणं कयरे अणगारे महादुक्कर कारएचेव महाणिज्जरकाराएव ? ॥४४॥ एवं खलु सेणिया! इमीसिं इंद भूइ पामोक्खाणं चउद्दसण्हं समण साहस्सीणं धन्ने अणगारे महादुक्कर कारएचव, शरीर करतो मूक गये थे न्तुि तप कर पुष्ट हुये सूर्य की तरह तप तेजकर दिप्त थे बहुत २ शोभते हुवे रहे। थे ॥ ४२ ॥ उस काल उस समय में, राजग्रही नगरी, गुनसिला चैत्य, श्रेणिक राजा, श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी पधारे, परिषदा आई, श्रेणिक राजा भी आया, धर्म कथासुनाई, परिषदा पीछी गई ॥४३ तब श्रेणिक राजा श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी जीके पास धर्म श्रमण कर हर्ष संताप पाय, श्रमण भगवंत महावीर स्वामीजी को वंदना नमस्कार किया, वंदना नमस्कार कर पूछने लगा-अहो भगवान ! यह इन्द्रभूतीजी प्रमुख चउदह हजार साधु हैं. इन में दुक्कर करनी के करने वाले कौन साधु हैं महानिर्जरा के करने वाले कौन साधु है ? ॥ ४४ ॥ तब भगवन्तने कहा यों निश्चय हे श्रेषिक ! यह इन्द्रभूती प्रमुख *प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी। । For Personal & Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 488 मूषक * महानिजरकाराएचैवा४५ से केण?णं भंते! एवं वुच्चइ इमासिं चंउद्दसहि समण साहसिणं 2. धन्ना अणगारे महादुकार कारएचेद महानिज्जरा कारएचवे?॥४६॥ एवं खलु सेणिया! तेणंकालेणं तेणंसमएणं काकंदी नाम लयरी होत्था, जाव उप्पिए पास्टए वार्डसए विहरातत्तेणं अहं अण्णयाकयाइ पुवापुपविंचरेमाणे गामाणुगामं दुइजमाणे जेणेत्र काकंदी नयरीए जेणेव सहस्सबवणेउजाणे तेणेव उवागच्छइ २त्ता अहापडिरूवंउग्गहं उगाहीत्ता संजमेणं तवसा जाब विहरमि ॥ परिसाणिग्गया, तंचेव जाव पवइए जाव nirmwomanmmmmmmmmmmmmna 422 नवमांग वणुत्तरोक्वाई दशांग मूत्र तृतीय-वर्गका.प्रथम अध्ययन चउदह हजार साधुओंमें धन्ना अनगार महादुक्कर करनीका करनेवाला है महानिर्जराका करनेवाला १.अहो भगवन् ! इन चौदह हजार साधुओं में घना अनगार दुक्कर करनी करता हैं. महानिर्जरा करता है किसलिये कहा ॥४॥यों निश्चय हे श्रणिक उसकाल उससमय में काकंदी नामकी नगरीथी, वहां भद्रासार्थ जवानी का पुत्र धमा बत्तीस स्त्रीयों के साथ प्रमाद के ऊपर सुख भोगवता विचरता था. तब मैं अन्यदा किसी वक्त पूर्वानुपूर्व चलता हुवा ग्रामानुग्राम उल्लंघता हुवा जहां काकंदी नगर का सहश्रम्ब उद्यान था,ors .1 तहां गया; जाकर यथा प्रतिरूप अवग्रह ग्रहण कर संयम तप कर आत्मा को शवता हुवा विचरने लगा. परिषदा आइ, धन्ना आया यावत् दीक्षा धारन की यावत् जैसे विल में सर्प प्रवेश करता है तैसे ही आहार के For Personal & Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + अनुवादक-वासनमचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी - बिलमेव जाव आहारीत, धनस्सणे अणगाररस सरीरवन्नओ सव्यो जाव उवसोमे माणे चिट्ठइ. से तेणटेणं सेणिया ! इमं वुच्चती इमीसे चउदसण्हं समणसहस्सीणं धन्नेअणगारे महादुक्करचेव कारए महानिजरकराएचव ॥४७॥ तत्तेणं से सेणियराया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयमटुं सोचा निसम हट्ठतुढे समणं भगवं तिखुत्तो आयाहिणं पयाहीणं करेइ वंदइ नमसइ २ ता जेणेव धन्ने अणगारे तेणेव गवागन्छइ २ त्ता, धन्न अणगारं तिखुत्तो आयाहीणं पयाहीणं करेइ वंदेह नमसइ वंदइत्ता नमसइत्ता एवं वयासी--धन्नेसिणं तुमे देवाणुप्पिया ! करता है. (यहां पूर्वोक्त प्रकार सब शरीर का वर्णन किया) यावत् शोमता हुवा विचरता है. इस लिये हे श्रेणिका ऐमा कहा कि इन चौदह हजार साधुमें धना अनगार दुक्कर करनी का करनेवाला है महानिर्जरा का करनेवाला है। ४७ ॥ तब श्रेणिक राजा श्रमण भगवंत महावीर स्वामी के पास उक्त कथन श्रवणकर हष्ट तुष्ट वा श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को बंदना नमस्कार कर जहां घना अनगार था तहां आय पाकर थमा अनगार को तीन वक्त हाथ जोड प्रदक्षिणावर्त फिराकर वंदना नमस्कार कर यों कहने ल अहो देवानुप्रिय ! धन्य है तुमारे को, तुम पुण्यवन्त हो, हे देवानुप्रिय ! तुम कृतार्य हो, उत्तलक्षणी हो प्रकाशक-रागाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वामलदजासी For Personal & Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ B 488+ मांग-अनुचरोधपाई योग सूत्र 48+ देवान्पिया ! कयत्थे कयलक्खणे सुलद्धेणं देवानुपिया ! तवमणुस्सए जम्म जीवियफले तिकट्टु, वंदइ नमसइ २त्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उबागच्छइ २ त्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव वंदइ नमसइ २ सा जामेवदिसिं पाउन्भूया तामेवदिसिं पडिगया ॥ ४८ ॥ तरणंतस्स धन्नास्स अणगारस्स अन्नयाकयाई पुव्वरता बरत्तकाल समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमीयारूत्रे अज्झथिए चिंतिए मोगएसंकप्पे समूपज्जित्था, एवं खलु अहं इमेणं उसलेणं जहा खंधओ तहेव चिंता अपुच्छणा, थेरेहिसद्धिं विपुल पव्त्रयं दुरुहइ २ चा मासियाए संलेहणाए अहो देवानुप्रिया ! तुम को अच्छा प्राप्त हुवा मनुष्य जन्म जीवित का फल ऐसी प्रसंशा कर वंदना नमस्कार करके, जहां श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी थे तहां आया, श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को तीन वक्त वेदना नमस्कार कर जिस दिशा से आया था उसदिशा पिछा अनगार अन्यदा किसी वक्त आधी रात्रि व्यतीत हुवे धर्म जागरना जागते हुवे गया ॥ ४८ ॥ तब धन्ना इस प्रकार अध्यवसाय मनोगत संकल्प उत्पन्न हुवा - यों निश्चय में इस औदार तंप से जिस प्रकार खन्धक जीने विचार किया या वैवाही किया तैसेही भगवतको पूछकर कडाइये स्थविर के साथ विपुलगिरी पर्वत पर चढकर सलेचना की। 488+-- तृतीय-मंगका प्रथम अध्ययन 4-9+ For Personal & Private Use Only ३५ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Fr-.'- - 12 . नवमास परियाओजाव कालमासे कालकिच्चा उडदिमा जाव नवेयगेविजविजयविमाण । 'पत्थडे उड़े दुरंवितिवइत्ता सन्वटुंसिद्धे महाविमाणे देवत्ताए उववन्ने ॥ ४९॥ थरा सहिब उत्तरंति जाव इमेसे आयरभंडए ॥ ५० ॥ भंतेत्ति, भगवं मोयमे तहेव पुच्छइ जहा E. खंधयस्स भगवं वागरति जाव सबसिद्धि विमाणे उववन्ने । ५१॥ धन्नस्सणं M. भंते ! देवस्स केवइयं कालं ठिइपन्नत्ते ? गोयमा ! तेत्तीसं सागरोइमाई द्विति पन्नंते ॥ ५२ ॥ सेणं भंते ! ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं मवक्खएणं ट्रितिक्खा एक महीने की सलेषना, नक्महीने पूर्ण संयम पालकर यावत् काल के अवसर काल पूर्ण करके उई चन्द्रमा मूर्य से भी ऊपर यानत् प्रयवेक विजय विमान उल्लंघकर सर्वार्थ सिद्ध महाविमानमें देवतापने उत्पा हुवे ।। ४९ ।। स्थवी पवन नीचे उतरे यावत् धन्न अनगारके भंडोप करण भगवंत के सुपरत किये।।५०॥ बार भगवती खंदक की पूछा की है उस ही प्रकार गौतम स्वामीने यहां भी पछा कीतब भगवंतने कहा कि-ह गौतप ! धना धनगार यावत् सर्वार्थ सिद्ध महाविमान में देवतापने उत्पन्न हुवा है ॥ ५१ ॥ अहो भगवन् ! धन्ना देवता की कितने काल की स्थिति है ? हे गौतम ! तेतीस सागरोपम की स्थिति कही है. ॥ ५२ ॥ अहो भग्वम् ! वह देवलोक से.आयुष्य पूर्ण कर कहा जायगा 4.2 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी WEANIKinaruwarmirmandir प्रकाशक राजबहादुर लाला मुखदेवसहायजी.ज्वालाप्रसादजी ........ .. Mmmmmmmmmm PARIYARINE. | For Personal & Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्र अर्थ 4000+ नवमांग- अणुतरोववाई दशांग सूत्र एणं कहिंगच्छति कहिंउववजेहिंति ? गोयमा ! महाविरेवासे सिज्झिर्हिति बुज्झिहिति मुचिर्हिति परिणिव्वार्हिति सव्वदुक्खाण मंतं करेंहिंति ॥ ५३ ॥ एवं खलु जंबू!, समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते ॥ ५४ ॥ इति तियवग्गस्स पढम अज्झयणं सम्मत्तं ॥ ३ ॥ १ ॥ जइणं भंते ! उक्खेवओएवं खलु जंबू ! तेणंकालेणं तेणंसमएणं काकंदी नामं नयरीहोत्था, महासत्यवाही परिवसइ, अड्डा ॥ १ ॥ तीसे भद्दाए सत्यवाहीपुत्ते सुनक्खत्ते नामं दारएहोत्था, अहिण जाव सुरू, पंचधाइ परिक्खित्ते जहा धन्ने तहब बत्तीस्त उदाओ जाव कहां उत्पन्न होगा? हे गौतम ! महाविदेहक्षेत्र में अवतार ले संयम धारन कर यावत् सिद्ध होंगा बुद्ध होंगा {मुक्त होगा, परिनिर्वान होगा यावत् सब दुःख का अन्त करेगा ॥ ५३॥ हे जम्बू ! निश्चय श्रमण भगवंत महावीर स्वामी यावत् मुक्ति पधारे उनोंने प्रथम अध्ययन का यह कथन कहा । इति तृतीय वर्ग का प्रथम अध्ययन संपूर्ण ॥ ३ ॥ १ ॥ यदि अहो भगवान दूसरा अध्याय, यो निश्चय, हें जम्बू ! उस काल उस समय में काकंदी नाम की नगरी में भद्रा नाम की सार्थवाहीनी यावत् ऋद्धिवन्त रहती थी ॥ १ ॥ उस भद्रा सार्थवाहीनी का पुत्र सुनक्षत्र था, पंचेन्द्रिय से पूर्ण: यावत् सूखा था, पांव घाई से वृद्धि पाया जिस प्रकार धन्ना का अधिकार कहा उस ही प्रकार बत्तीस स्त्रीयों कचीस दात यात्रतू प्रसाद के उपर सुख भोगवता For Personal & Private Use Only तृतीय वर्गका द्वितीय अध्ययन Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी - namainawwarniwwwanmaniin उप्पिए पासाए वडिंसए विहरइ ॥२॥तेणंकालेणं तेणंसमएणं सामी समोसड्डे जहा धन्ने तहा सुणक्खत्तेवि निक्खंत्ते जहा थावच्चा पुत्तस्स तहा निक्खमणं जाव अणगारे जाए इरियासमिए जाव गुत्तभयारिए ॥ ३ ॥ तएणं से मुनक्खत्ते अणगारे जंचेव दिवसं समणस्स भगवंओ महावीरस्स अंतिए मुंडे जाव पवइए तंचेव दिवसं अभिग्गहंतहेव विलमिव पणग भूएणं आहार आहारेइ,संजमेणं जाव विहरइ॥४॥समगं जाव वहिया जणवया विहराएकारस्स अंगाइं अहिजइ,संजमेणं तवस्साअप्पाणं भाबमाणे विहरइ॥५ तएणं से सुनक्खत्ते अणगारे तेणं उरालेणं जहा खंधओ ॥ ६ ॥ तेणंकालेणं तेणं समएणं रायगिहे पयरे गुणसिला चेइए, सेणियाराया, सामीसमोसढे, परिसणिग्मया, विचरता था॥२॥ तब भगवंत पधारे धन्ना की तरह मुनक्षत्र का भी दीक्षा उत्सव जानना यावत् अनगार हुबे ईर्या समिती यावत् गुप्त ब्रह्मचारी हुवे ॥३॥ उसी दिन से तैसा ही अभिग्रह धारन किया, यावत् बिल में प्रवेश करे त्यों आहार करते संयम तप से आत्मा भावते विचरने लगे। भगवन्त बाहिर जनप. देश में विहार किया ॥ मुनक्षत्र अनगार इग्यारे अंग पढे संयम तप से आत्मा भावते विचरने लगे ॥५॥ तब मुनक्षत्र अनगार उस औदार प्रधान तप कर खंधक जैसे हुवे ॥ ॥ उस काल उस समय में राजगृही नगरी, श्रेणिक राजा भगवंत पधारे, परिषदा आई, धर्मकथा सुन, परिषदा और राजा पीछे प्रकाशक-राजाबहादर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी, | For Personal & Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ wwwwww धम्मकहींओराया-परिसहा पडिगया॥७॥तएणं तस्स सुनक्खत्तस्स अन्नया कयाई पुव्वरत्तजाव धम्म जागरियं जाव खंधयस्स बहुचासाओ परियाओ ॥८॥ गोयम पुच्छा जाव सबठसिद्ध विमाणे देवत्ताए उवषण्णे ॥ जाव महाविदेहवासे सिज्झिहिति ॥९॥ इति वीयं अज्झयणं सम्मत्तं ॥ ३ ॥ २ ॥ एवं खलु जंबू ! सुनक्खत्ते गमेणं सेसावि अट्ठ माणियव्या, अणुपुम्बिए-दोन्नि रायगिहे, दोन्नि साइए, दोन्नि वाणियगामे, नवमो हत्थिणापुरे, दसमोरायगिहे॥१॥नवण्हं भद्दा जणणिओ, नवण्हं निक्खमणं थावच्चापुत्त सरिसं, वेहलप्पिया करेइ, नवमासधण्णे वेहलछमासा परियाओ, सेसाणं बहुवाIE गये ॥८॥ त३ वह सुनक्षत्र अणगार अन्यदा किसी वक्त धर्म जागरणा जामते खंधक जैसा विचार किया यावत् संथारा किया बहुत वर्ष संयम पाल काल समय काल पूर्ण कर सर्वार्थ सिद्ध विमान में देवी उत्पन हुवा ॥ ९ ॥ गौतम स्वामीने पूछा, भगवंतने सर्वार्थ सिद्ध में उत्पन्न हुवे कहा, तेंतीस सागर का आयुष्य कहा यावत् महा विदेह में सिद्ध होंगे ॥ इति तृतीय वर्ग का द्वितीय अध्ययन संपूर्ण ॥ ३ ॥२॥ यों निश्चय, हे जम्बू! जिस प्रकार सुनक्षत्र का कथन कहा तैसा बाकी रहे आगे ही का कहना, अनुक्रम से-दो राजगृही नगर में, दो सेतम्बिका नगरी में, दो वानीज्य ग्राम में, नववा हस्थिनापुर में,और दशवा राजगृही नगरीमें॥१॥नवों की भद्रा माता,नव ही के बत्तीस स्त्रीयों, बत्तीस दात,नव ही का औत्सव थावरचा पुत्रके जैसा,वेहल कुमारका दीक्षा उत्सव पीताने किया,धना अणगार नव महीने और वेहल कुमार छमहिने १ नवमांग-अणुत्तरोववाई. दशांग सूत्र 428+ अर्थ य-वगका२-१०अध्ययन 48 For Personal & Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . 42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी + साइं,मासं सलेहणा सव्ये महाविदेहयासेसिज्झिहिंति ॥ एवं दल अज्झयणाणी । एघं खलु .. जंबू ! समणेणं भगवया महाचरणं अण तरीकवाइय दसाणं तउवस्स वागस्स अयम?.. पन्नत्ते ॥ अणुत्तरोक्काइए देसाओ अम्मत्त ॥ अगुत्तरोक्वाइ दमागं एगोसुयखधो . तिनिवग्गा तिसु दिवसेस उद्दीभिजति,पढमेवग्गे दस उद्देसग्ग,वीएवग्गे तेरस्स उद्देगा तइएवग्गे दस उद्देसगा, सेसं जहा धम्मकहा नायव्यं ॥ नवमं अंगसम्मत्तं ॥ ५ ॥ दीक्षा पाली,शेष सब बहुत वर्ष दीक्षा पाली सबके एक महीनेही मलेषना,मत्र सर्वार्थ सिद्धपानमें उत्पन्न हुवे,सब महाविदेह में सिद्ध होंगे. यो दश ही अध्याय संपूर्ण 100 या निश्चय,हे जम् ! श्रयण भगवंत महावीर स्वामीने अनुत्तरोपपातिक दशाका तीसरा वर्गका अधिकार का अनुमालिक दशाका एक श्रुतस्कन्ध तीन दिनमें उद्देशना ।। प्रथम वर्ग दश ध्यय दूत के तेरा और के दस अध्ययन है सर्व तेंतीस अध्याय शेष जैसा ज्ञाता धर्मकथाले अधिकार जानना।इति नवमांनुरोलाई दशांग संपूर्ण ॥९ ॥ इति नवमांग ।। अणुत्तरोववाई दशा सूत्र समाप्तम् । विराब्द २४४ वैशाक शुक्ल ८ शनिवार. प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * For Personal & Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शास्त्रोद्वार प्रारंभ वीराब्द 2442 ज्ञान पंचमी Sok इति EEEEEEEEEEEEEE:21 SILTE Sws SYANA SHAYAT SANTAN Silpadose SANTA Biosaxa SE pl STOCT PISCIPIS Plegise oremony अनुत्तरोववाई दशांग सूत्र समाप्तम् Jae 5名中国 BEEEEEEEEEE-83 GOO610 शास्त्रोद्धार समाप्ति वीराब्द 2446 विजयादशमी /