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अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
अराहिता ॥१२॥ जेणेव समणे भववं महावरि तेणवेउवागच्दछ २ त्तसामणे भगव माहावीरं वंदइ नमसइ वंदइत्तानमंसइत्ता बहुहिं चउत्थछट्ठ अट्ठमदसम दुवालसेहिं मासेहिं अधममास खसमणेहिं विचित्तेहिं तवो कम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ १३ ॥ तएणं से जाली अणगारे तेणं उरालेणं विउलेणं पयतेणं पग्गइएणं एवं सचेव जहा में क्खंदस्स वत्तव्यया तहा चेव आपुच्छणा, थेरेहिं सद्धिं विपुलं तहेव दुरुहंति, गवरं सोलस्स बासाइं समण्ण परियाग्गं पाऊणित्ता कालं मासं कालंकिच्चा उर्दु चंदिमाई सोहम्मसिाण जाव आरणाच्चुयोकप्पे नवएगवेजयविमाणं पत्थडेओ वित्तिवयाती
विजय विमाणे देवत्ता उबवणे ॥ १४ ॥ तयाणं थेरा भगवंतो जाल अणगारं विचित्र प्रकार के उदार-प्रधान प्रकर्ष तप करके निप्त प्रकार स्कन्ध का कथन भगवती में कहा उस ही प्रकार शरीर से दुर्बलबने यावत् धर्म जागरणा की तैसे ही भगवंत को पूछ कर कडाये (संथार में साहय, करे ऐसे) स्थविर को साथ लेकर विपुलगिरी पर्वत पर पृथ्वी सिलापट्ट पर सपना की, यावत् सोलह वर्ष संयम पाला, काल के अवसर में काल पर्ण करके ऊर्य मौधर्म : ईशान सनतकुमार माहेन्द्र इत्यादि बारह देवलोक नवग्रंयिक को उल्लंघनकर विजय विमान के पाथडे में गये, विनय विमान में देवतापने उत्पन्न हुवे ॥ १४ ॥ तत्र स्थविर भगत जाली अनगार को काल प्राप्त हुवे नानकर कायुत्सर्ग. किया, ॥
प्रकाशक-सजावहादरहाला सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी.
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