SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 20280 * नवमांग अणुत्तरोववाई दशांग मूष 488+ है. कालगयं जाणित्ता, परिनिव्वाणवत्तियं काउसग्गं करेइ, पत्तचीवराई गिण्ह २ तहेव उत्तरंति जाव इमेसे आययार भंडए॥१५॥ भंतेत्ति ! भगवं गोयमे जाव एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी जालीनाम अणगारं पगइभद्दए, सेणं जालि अणगारे कालगए कहिंगए काहिं उववण्णे ? ॥ एवं खलु गोयमा ! मम अंतेवासी- तहेव जहा क्खंदयस्स जाव कालगए उर्दू चंदिमा जाव विजय विमाणे देवत्ताए उववणे ॥ १६ ॥ जालिसणं भंते ! देवरस केवइयं कालं दिई पण्णता ? गोयमा ! बत्तीसं सागरोवमाइं टुिई पण्णत्ता ॥ १७ ॥ सेणं भंते ! उन जाली अनगार के धर्मोपकरण पात्रे वस्त्रादि ग्रहण कर पर्वत से उतरे, उतरकर भगवंत के पास आये बंदना नमस्कार कर उपकरण मुपरत किये ॥ १५ ॥ भगवान से, भगवंत गौतम श्रमण भगवंत जमहावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर पूछने लगे. अहो भगवन् ! आपका शिष्य प्रकृतिका भद्रिक जाली अनगार, काल के अवसर काल कर कहां गया कहां उत्पन्न हुवा ? हे गौतम ! मेरा शिष्य तैसे ही खंदक की परे आयुष्य पूर्ण कर यावत् उपर चन्द्रमा सूर्य बारे देवलोक नवग्रीयवेक को उल्लंघनकर विजय, विमान में देवतापने उत्पन्न हुवा है ॥ १६ ॥ अहो भगवन् ! जाली देवता की कितने काल की स्थिति है ? । प्रथम-बगेका प्रथम अध्ययन 488 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.600257
Book TitleAgam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages52
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_anuttaropapatikdasha
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy