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अनुवादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
ताओं देवलोगाओ आउक्खएणं मक्खएणं ठीक्खएर्ण कहिंगच्छति कहिउववजति ? गोयमा ! महाविदेहेवासे सिज्झिरसंति जाव सम्वदुवखाणं अंतं करिस्सइ ॥१५॥ एवं
खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइय दसाणं पढमस्स वग्गस्स पढमस्स - अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्वे ॥ इति पढम वग्गस्स पढमअझवणं सम्मत्तं ॥१॥३॥ एवं सेसावि नवण्हं भाणियन्वं, णवरं सत्तधारणी सुत्ता, विहल विहास चलणाए,
अभयणंदाए ॥ १ ॥ आइलाणं पंचण्हं सोलस्स वासाइं, तिण्हं बारस्स वासाइ,. हे गौतम ! बत्तीम सागरोपम की स्थिति कही है ॥ १७ ॥ अहो भगवन् ! जालीदेव देवलोक से आयु.. प्य का भव की स्थिति का क्षय कर कहा जावेगा कहां उत्पन्न होवेगा? हे गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में जन्म ले संयम ले सिद्ध बुद्ध मुक्त होवेगा सर्व दुःख का अन्त करेगा ॥ १६ ॥ यों निश्चय, हे जम्बू ! श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी यावत् मुक्ति पधारे उनोंने प्रथम वर्ग का प्रथम अध्ययन का यह अर्थ कहा है॥ १७॥ इति प्रथम वर्ग का प्रथम अध्ययन संपूर्ण ॥१॥2॥ जिस प्रकार जाली कुमार काई आपकार कहा वैसा ही बाकी रहे. नव ही कुमारों का अधिकार जानना,जिसमें इतना विशेष-सात कुमार सो धारणी राणी के पुत्र, विहल्ल कुमार और वे हांस कुमार चिल्लना राणी के पुत्र, और अभय कुमार
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सकाशक राजबहादुर लाला मुखदवसहाय माज्यालाणसादजी*
Aaina
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