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________________ २२ 49 अनुवादकालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी - कम्मेणं अप्पाणं भात्रमाणे विहरित्तए, छठुस्स वियणं पारणगसि कप्पइ मे आयंबिले पडिग्गाहित्तए, णोचेवणं अणाआयंबिलं, तंपिय संसटेणं णो चेवणं असंसट्रेणं, तंपियणं उज्झियं धम्मियं णो चेवणं अणुज्झियं धम्मियं,तंप्पियणंजं अन्ने वहवे समणे माहणे अतिहि किवण वणिमग्ग णावकंक्खंति ? अहासुहं देवाणुप्पिया ! मापडिबंध करहे ॥ १० ॥ तएणं धन्ने अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणण्णाए समाणे हद तष्ट जाव जीवाए छद्रं छद्रणं अणिखितेणं तवो कमेणं अप्पाणं भावमाणे विहरई ॥ ११ ॥ तएणं धण्णे अणगारे पढम छट्ठखमणं पारणंयांस पढमाए पोरसियं सज्झायं पर डालने जाते हों दैला लेना कल्पे किन्तु घर में रखने जैसा होतो वह आहार लेना कल्पे नहीं, वह भी नहाखने जाताहो, उसे अन्य दूसरा शमण लाक्यादि.महाण-ब्रह्म गादि अतीथी बावाजोगी कृपण-रांक वनीमग भिक्षाचर को देने से उस आहार की बांछा कर नहीं ऐसा एकान्त निकम्मा न्हाखने लायक बला जला. खुरचनादी का खराब आहार ग्रहणकर उस से पारना करना कल्पे ? भगवंतने कहा जिस प्रकार तुपारी आत्मा को सुख उत्पन्न हो वैसे करो, किन्तु धर्मकार्य में विलम्ब मतकरो ॥१०॥ तब धन्नाअनगार श्रमण भगवन महावीर स्वामीजी की आज्ञापतकर हर्ष तुष्ट हुवे यावत् जावनीव बेले २ तपकर्म अन्तर रहित करते हुवे अपनी आत्मा को भावते हुवे विचरने लगे ॥ ११॥ तब धनाभनगार प्रथप आयंबिल है . प्रकाशक-राजावहाहर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी. 6 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600257
Book TitleAgam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages52
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_anuttaropapatikdasha
File Size8 MB
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