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Page नवमांग-अणुसरोक्वाई दशांग सूत्र 4387
तंजहा-खीरधाईए जहा महाबलो जाव बावत्तरिकलाओ अहिजंति जाव अलंभोग समत्थं जाएआविहोत्था ॥ ६ ॥ तएणं सै भद्दा सत्थवाहिं धण्णदारयं उमुक्त बालभावं जाव भोगसमत्यंच वियाणिया, बत्तीसं पासाय वडिसए कारेई,२त्ता अब्भग्गय मसीए जाव तसिंमझं भवण अणेग खंभ सयसन्निविट्राजाव बत्तीसाए इब्भवरकन्नगाणं एगदिवसणं पाणिगिण्हावेई,बत्तीसंओदाओ जाव उप्पिंपासाय फुडएहिं जाव विहरंति ॥ ७ ॥ तेणंकालेणं तेणंसमएणं समणे भगवं महावीरे
समोसढे, परिसानिग्गया,राय जहा कोणिओ तहा जियसत्तु जिग्गओ ॥८॥तएणं तस्स बाल्यावस्था से मुक्त हो विज्ञान अवस्था को प्राप्त हों बहुतर पुरुष की कला का अभ्यास किया यात् संपूर्ण भोग भोगवने समर्थ हुवा ॥ ६ ॥ तब भद्रासार्थ वहीनी धन्ना कमर को बाल्यावस्था से मुक्त हो यावत् भोग भोगवने सामर्थहुवा जानकर उस केलिये यत्तीय प्रसाद कराये वे बहुत ऊंचे सप्त मजले] यावत् उनके मध्य मेंएक भवन अनेक स्थम्भोकर वेष्टित था.यावत उसघना कुमार को बत्तीस ईभसेठकी कन्याकेमाथपानी ग्रहण कराया यावत् प्रसादपर मृदंग के सिरफुटते हुवे पांचोंइन्द्रिय के सुख भोगते हुवे विचरनेलगे ॥ ७॥ उस काल उस समय में श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी पधारें महश्रम्ब उध्यान में विराजमान हवे
नीत शत्र राजा भी कोणिक राजा की तरह वंदने आया ॥८॥ तब उस धन्नाकुमार
तृतीय वगेका प्रथम अध्ययन
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