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________________ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी धण्णदारयस्स तं महया जणसदं जहा जमाली तहा णिग्गए. णवरं पायविहारेणे जाव जं णवरं अम्मया भई सत्थवाहं आपुच्छामि, तएणं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए जाव पव्वयामि, जाव जहाजमालि तहा अपुच्छिया,मुच्छिया,वृत्त पडिवुत्तिया,जहा महाबलो जाव नोसंचाईय, जहा थावच्चा पुत्तरस जहा जियसत्तु आपुच्छाइमि, छत्त चामराओ को भगवंत अगमकी खबर लोगों के महाशब्द सुन जानी, जिसपकार जमाली वंदने आयाथा उसही प्रकार से धन्नाकुमर भी आया जिसमें विशेष यह पांघोंसे चलकर आया, धर्मकथासुनी परिषदा राजा पीछेगये,धनाकुमर धर्मकथा श्रवनकर हर्ष संतोषपाया यावत् कहनेलगा अहो भगवान! में मेरीमाता भद्रासार्थ वाहिनीसे पूछकर आपके पास दीक्षा लेगा. भगवंतने कहा जिस प्रकार मुख होवे वैसा करो, तब धमाहर्ष संतोष पाया अपने घरको आया जमालीकी तरह माता से प्रश्नोत्तर हुने यावत् जिस प्रकार महावल कुमार के मातपिता ललचा सके नहीं उम ही प्रकार यह भी ललचाये नहीं, जिस प्रकार थावरचा पुत्र की माताने दीक्षा के उत्सव की कृष्णजी से याचना की थी उसही प्रकार भद्रासार्थवाहीनीने जीत शत्रुराजा मे दीक्षा महोत्सव की याचना की, जित शत्रुराजा चतुरंगनी सेना सज यावत् सर्व सामग्री युक्त धन्नासाथ वहीं के घरगया, धन्नाकुमारको समनाया,वह ललचाया नहीं तब जितशत्रुराजाने दीक्षाउत्सव किया, छत्रचार • प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600257
Book TitleAgam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages52
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_anuttaropapatikdasha
File Size8 MB
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