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________________ . उदरभायणेणं जोइजमाणेहिं पंसुलीकरंडएहिं अक्खसुत्तमाला विवगणिज्जमाणाहिं पिट्टिकरंडगसंधिहिं गंगातरंगभूएणं, उरकडाग देसभाएणं सुक्क सप्प समाणेहि बाहाहिं सिढिलकडालीविव लंबतहिय अग्गहत्यहिं कंपणवइओविवदेतमाणहिं सीस. घडिए पंचायवदनकमल उब्भडघडामुहे उच्छद्देनयणकोसे; ॥ ४१ ॥ जीवं जीणं गच्छड. भासं भासिस्सानिति गिलायड से जहा नामए-इंगालसगडियात जमा खंधओ तहा हुयासणे इव भासरासी पलिछिन्ने,तवेगं तेयणं तवतेयं सिरिए अतिवर mamiwww नवमांग-अणुनरोत्रवाई दशांग सूत्र जैसा युक्त पसिलियों का करंड सूत में परोये मालाके दाने अलगरगिन लिये जावे त्यों शरीर की रहीयों अलगरगिना लिये जावे,पृष्ट करंड छाती करंड गङ्गाकी तरङ्गो समान,सूकी हुई यह सूके हुचे सांप समान,मूका हुवा शरीर इस्त का अग्रभाग सके थोरे के हत्थे समान था, चलते हुवे अगकम्पाय मान होता था. हडीथोंका शब्द होता था, जिस प्रकार वायु के रोगकर शरीर कम्मता है उस प्रकार मस्तक हलता, मुख कमल पत्र समान निस्तेज देखाता था, आंखो अंदरगइ देखाती थी, इस प्रकार शरीर कोष्ट होगया था ॥४१॥॥ धमा अनागर जीव की शक्ति के आधार से चलते थे, भषा बोले पहिले वोलती बक्त और बोलवाद स्वेदित होते थे, उन का शरीर उठते बैठते करंड २ शब्द करता और चलती वक्त जिस प्रकार कोयले की भरी हुइ गाडी वह २ बजती है त्यों शरीर के अन्दर की हड्डियों का आवाज होता था." जिस प्रकार संघ की जीका वर्णन भगवती मूत्र में कहा है वैसा इन का भी सब जानना यावद mammmmmmmmmmmmmm तीय वर्मका वम अध्ययन 488 488 | । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600257
Book TitleAgam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages52
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_anuttaropapatikdasha
File Size8 MB
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