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________________ चेइत्य सेणिएराया, धारणीदेवी, सीह सुमिणंप सित्ताण पडिबुद्धा जाव जालिकुमारेजाए, जहामेहो जाव अट्ठ उदाओ, जाव उपिपासए जाव विहरंति ॥८॥ तेणंकालेणं सेणं समएणं समणं भगवं महावीरे जाव समोलढे, सेणिय णिग्गओ, जालि जहा मेहो। तहा णिग्गओ, तहेव णिक्खतो, जहा मेहो, एकारस्स अंगाई अहिझंति ॥ ९॥ तएणं से जाली अणगारे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक पिजी सिंह का स्वप्न देखा, यावत् नत्रमहिने सादीसातररात्रि व्यतीत हुवे सुकुमार कुमार का जन्म हुवा, बारवे दिन जालि कुमर नाम दिया, बालवय मुक्त हुवे विद्याभ्यास किया, यौवन अवस्था । प्राप्त होते आठ गज्य कन्याओं के साथ पानी ग्रहण कराया, आठ २ दात दायचा की दो यावत् मेघकुमार की तरह ऊपर महलों में सुख भोगरता विचरने लगा ॥८॥ उस काल उस समय में श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी पधारे, श्रेणिक राजा और परिषदा दर्शनार्थ आई, धर्मकथा सुनाई, मेघकुमारकी तरह जा कुमार को भी वैराग्य उत्पन्न हुवा मातापिता से चरचा की आज्ञा ले यावत् औत्सव पक दीक्षा ली. मेघकुमार की तरह इग्यारे अंग का अभ्यास किया ॥ ९ ॥ तब वे जाली अनगार जहां श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी थे तहां आये आकर श्रमण भगवंत श्री महा .प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवसहायजी बालाप्रसादजी क Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600257
Book TitleAgam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages52
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_anuttaropapatikdasha
File Size8 MB
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