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________________ + अनुवादक-वासनमचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी - बिलमेव जाव आहारीत, धनस्सणे अणगाररस सरीरवन्नओ सव्यो जाव उवसोमे माणे चिट्ठइ. से तेणटेणं सेणिया ! इमं वुच्चती इमीसे चउदसण्हं समणसहस्सीणं धन्नेअणगारे महादुक्करचेव कारए महानिजरकराएचव ॥४७॥ तत्तेणं से सेणियराया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयमटुं सोचा निसम हट्ठतुढे समणं भगवं तिखुत्तो आयाहिणं पयाहीणं करेइ वंदइ नमसइ २ ता जेणेव धन्ने अणगारे तेणेव गवागन्छइ २ त्ता, धन्न अणगारं तिखुत्तो आयाहीणं पयाहीणं करेइ वंदेह नमसइ वंदइत्ता नमसइत्ता एवं वयासी--धन्नेसिणं तुमे देवाणुप्पिया ! करता है. (यहां पूर्वोक्त प्रकार सब शरीर का वर्णन किया) यावत् शोमता हुवा विचरता है. इस लिये हे श्रेणिका ऐमा कहा कि इन चौदह हजार साधुमें धना अनगार दुक्कर करनी का करनेवाला है महानिर्जरा का करनेवाला है। ४७ ॥ तब श्रेणिक राजा श्रमण भगवंत महावीर स्वामी के पास उक्त कथन श्रवणकर हष्ट तुष्ट वा श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को बंदना नमस्कार कर जहां घना अनगार था तहां आय पाकर थमा अनगार को तीन वक्त हाथ जोड प्रदक्षिणावर्त फिराकर वंदना नमस्कार कर यों कहने ल अहो देवानुप्रिय ! धन्य है तुमारे को, तुम पुण्यवन्त हो, हे देवानुप्रिय ! तुम कृतार्य हो, उत्तलक्षणी हो प्रकाशक-रागाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वामलदजासी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600257
Book TitleAgam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages52
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_anuttaropapatikdasha
File Size8 MB
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