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________________ B 488+ मांग-अनुचरोधपाई योग सूत्र 48+ देवान्पिया ! कयत्थे कयलक्खणे सुलद्धेणं देवानुपिया ! तवमणुस्सए जम्म जीवियफले तिकट्टु, वंदइ नमसइ २त्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उबागच्छइ २ त्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव वंदइ नमसइ २ सा जामेवदिसिं पाउन्भूया तामेवदिसिं पडिगया ॥ ४८ ॥ तरणंतस्स धन्नास्स अणगारस्स अन्नयाकयाई पुव्वरता बरत्तकाल समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमीयारूत्रे अज्झथिए चिंतिए मोगएसंकप्पे समूपज्जित्था, एवं खलु अहं इमेणं उसलेणं जहा खंधओ तहेव चिंता अपुच्छणा, थेरेहिसद्धिं विपुल पव्त्रयं दुरुहइ २ चा मासियाए संलेहणाए Jain Education International अहो देवानुप्रिया ! तुम को अच्छा प्राप्त हुवा मनुष्य जन्म जीवित का फल ऐसी प्रसंशा कर वंदना नमस्कार करके, जहां श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी थे तहां आया, श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को तीन वक्त वेदना नमस्कार कर जिस दिशा से आया था उसदिशा पिछा अनगार अन्यदा किसी वक्त आधी रात्रि व्यतीत हुवे धर्म जागरना जागते हुवे गया ॥ ४८ ॥ तब धन्ना इस प्रकार अध्यवसाय मनोगत संकल्प उत्पन्न हुवा - यों निश्चय में इस औदार तंप से जिस प्रकार खन्धक जीने विचार किया या वैवाही किया तैसेही भगवतको पूछकर कडाइये स्थविर के साथ विपुलगिरी पर्वत पर चढकर सलेचना की। 488+-- तृतीय-मंगका प्रथम अध्ययन 4-9+ For Personal & Private Use Only ३५ www.jainelibrary.org
SR No.600257
Book TitleAgam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages52
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_anuttaropapatikdasha
File Size8 MB
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