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१ अनुवादक-बालग्राचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी g+
अणगारे अदीणे अविमणे अकलुसे अविसायी अपरित्तत्तजोगी जयणघडण जोगचरित अहपज्जत्त समुद्दाणं पडिगाहित्ति २ त्ता काकंदीणयरीओ पडिणिक्खमइ २ ता जहा गोयमे तहा पडिदसइ॥१४॥तएणं से धण्णे अणगारे,समणं भगवं महावीरेणं अब्भणुणाए समाणे अमुच्छाए जाव अणज्झोववन्ने विलमिव पणगभूएणं अप्पाणणं आहारं आहारिइरत्ता, संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरंति॥१५॥तएणं समणे भगवं महावीरे अण्णया कयाई काकंदीओ पयरीओ संहसंब वणाओ उज्झाणाओ पडिणितो आहार नहीं मिले ॥ १३ ॥ तब धन अनगार इस प्रकार आहार की प्राप्ति में, दीनपने सहित, किमन [ उदासी ] रहित, आकुलता रहित, आहाट दोहट वित्त के (व्याकुलता)विचार रहित, तृष्णा रहित मनादि जोग है जिन का ऐसे यत्नयुक्त यथा पर्याप्त चाहिये उतना आहार बहुत घरों से ग्रहण किया, ग्रहण कर काकंदी नगरी से निकलकर, गौतम स्वामी की तरह भगवंत को आहार बताया ॥ १४ ॥ तब वे धमा अनगार अनण भगवंत श्री महावीर स्वामीकी आज्ञा प्रप्तहोते मूर्छा रहित थावत् लुब्धाता रहित जिस प्रकार बिलमें सर्प प्रवेश करता हैं उस ही प्रकार ममत्व रहित आहार किया, आहारकर संयम तपसे अपनी आत्मा भावते हुये विचरने लपे ॥ १५ ॥ तक श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामीजी अन्यदाकिसीवक्त कांकंदी
* प्रकाशक-राजाबहादर लाला मुखदेवसहायजा ज्वालामसादी
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