________________
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
namainawwarniwwwanmaniin
उप्पिए पासाए वडिंसए विहरइ ॥२॥तेणंकालेणं तेणंसमएणं सामी समोसड्डे जहा धन्ने तहा सुणक्खत्तेवि निक्खंत्ते जहा थावच्चा पुत्तस्स तहा निक्खमणं जाव अणगारे जाए इरियासमिए जाव गुत्तभयारिए ॥ ३ ॥ तएणं से मुनक्खत्ते अणगारे जंचेव दिवसं समणस्स भगवंओ महावीरस्स अंतिए मुंडे जाव पवइए तंचेव दिवसं अभिग्गहंतहेव विलमिव पणग भूएणं आहार आहारेइ,संजमेणं जाव विहरइ॥४॥समगं जाव वहिया जणवया विहराएकारस्स अंगाइं अहिजइ,संजमेणं तवस्साअप्पाणं भाबमाणे विहरइ॥५ तएणं से सुनक्खत्ते अणगारे तेणं उरालेणं जहा खंधओ ॥ ६ ॥ तेणंकालेणं तेणं
समएणं रायगिहे पयरे गुणसिला चेइए, सेणियाराया, सामीसमोसढे, परिसणिग्मया, विचरता था॥२॥ तब भगवंत पधारे धन्ना की तरह मुनक्षत्र का भी दीक्षा उत्सव जानना यावत् अनगार हुबे ईर्या समिती यावत् गुप्त ब्रह्मचारी हुवे ॥३॥ उसी दिन से तैसा ही अभिग्रह धारन किया, यावत्
बिल में प्रवेश करे त्यों आहार करते संयम तप से आत्मा भावते विचरने लगे। भगवन्त बाहिर जनप. देश में विहार किया ॥ मुनक्षत्र अनगार इग्यारे अंग पढे संयम तप से आत्मा भावते विचरने लगे ॥५॥ तब मुनक्षत्र अनगार उस औदार प्रधान तप कर खंधक जैसे हुवे ॥ ॥ उस काल उस समय में राजगृही नगरी, श्रेणिक राजा भगवंत पधारे, परिषदा आई, धर्मकथा सुन, परिषदा और राजा पीछे
प्रकाशक-राजाबहादर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी,
|
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org