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42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी +
साइं,मासं सलेहणा सव्ये महाविदेहयासेसिज्झिहिंति ॥ एवं दल अज्झयणाणी । एघं खलु .. जंबू ! समणेणं भगवया महाचरणं अण तरीकवाइय दसाणं तउवस्स वागस्स अयम?.. पन्नत्ते ॥ अणुत्तरोक्काइए देसाओ अम्मत्त ॥ अगुत्तरोक्वाइ दमागं एगोसुयखधो . तिनिवग्गा तिसु दिवसेस उद्दीभिजति,पढमेवग्गे दस उद्देसग्ग,वीएवग्गे तेरस्स उद्देगा
तइएवग्गे दस उद्देसगा, सेसं जहा धम्मकहा नायव्यं ॥ नवमं अंगसम्मत्तं ॥ ५ ॥ दीक्षा पाली,शेष सब बहुत वर्ष दीक्षा पाली सबके एक महीनेही मलेषना,मत्र सर्वार्थ सिद्धपानमें उत्पन्न हुवे,सब महाविदेह में सिद्ध होंगे. यो दश ही अध्याय संपूर्ण 100 या निश्चय,हे जम् ! श्रयण भगवंत महावीर स्वामीने अनुत्तरोपपातिक दशाका तीसरा वर्गका अधिकार का अनुमालिक दशाका एक श्रुतस्कन्ध तीन दिनमें उद्देशना ।। प्रथम वर्ग दश ध्यय दूत के तेरा और के दस अध्ययन है सर्व तेंतीस अध्याय शेष जैसा ज्ञाता धर्मकथाले अधिकार जानना।इति नवमांनुरोलाई दशांग संपूर्ण ॥९
॥ इति नवमांग ।। अणुत्तरोववाई दशा सूत्र समाप्तम् ।
विराब्द २४४ वैशाक शुक्ल ८ शनिवार.
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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