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________________ अर्थ 49 अनुदादक- बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी द्वेय ॥ ८ अद्रुमंमासं अट्ठारसमं अट्ठारसमेणं अनिखितेणं तवोकरमेणं दियाठाकट्टू सूराभिमूहे आयावणभूमीए आयावेमाणे, रत्तिबीरासणेणं अबाउ ॥ ९ णत्रमंमासं वीसइमं वीसइमेणं अनिक्खित्तेणं तत्रोकम्मेणं दियट्टाणुकट्टूएं सूराभिमूहे आयावणभूमी, रतिं वीरामणेणं अवाउड्डेणय || १० दसमंमासं वावीसाए बावीस ईमेणं अनिक्खित्तेणं दियाणकद्दूए सूराभिमूहे आयावणभूमीए आयावेमाणेणं रतिं वाउ || ११ एक्कारसमंमासं चउवीसाए चउवीसईमेणं अनिक्खितेणं तवोकम्मेणं दियाणुकट्टए सूराभिमूहे आयात्रेमाणे रत्तिविरासणेणं अवाउगुणयं ॥ १२ वारसमंमासं छब्बीसाए छबीसईमेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं दिय'द्वाणु कहुए सूराभिमूहे आयायण भूमीए आयाचेमाणे रात्तं वीरासणणं अवाडेड्डेणय सूर्य की आतापना लेते और रात्रिको वस्त्र रहित वीरासन से रहते ॥ ११ ॥ तबउन जाली अनगारने गुररत्न संवत्सर तपकर्म को सूत्रोक्त विधी प्रमाने साधु के कल्प प्रमाने जिन मार्ग कीति प्रमाने, भगवंतने { कहा वैसा यथा तथ्य सम्यक् प्रकार अपनी कायाकर स्पर्श विशुद्ध भाववाला, शुद्धता पूर्वक, पार पहोंचाया कीर्तियुक्त भयवंत की आज्ञा प्रमाने आराधन किया ॥२॥ फिर जहां श्रमगवंत श्री महावीर स्वामी - तहां Jain Education International For Personal & Private Use Only प्रकाशक- राजावहादुर लाला मुखदेव मझयजी ज्वालाप्रसादजी www.jainelibrary.org
SR No.600257
Book TitleAgam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages52
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_anuttaropapatikdasha
File Size8 MB
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