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41 नवमांग-अणुत्तरोत्राई दशांग मृण
॥ तृतीय-वर्ग ॥ जइणं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोबवाइए दाणं दोच्चस्स बग्गरस अयमढे पण्णत्ते; तच्चस्रणं भंते ! वग्गस्स अणुत्तरोववाइय दपाणं समणेणं भगव्या महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते ? ॥ १ ॥ एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपरोणं तचस्सवग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता तंजहा-(गाहा)-धणेय,सुनक्खत्तेय, इसियदाय, आहिते ॥ पेलाए रामपुत्तेय, चंदमा, पुट्ठिमाइया ॥.॥ पेढ लपुत्ते आणगारे, नवमो पोटिलतिय ॥ विहल्लेय, दसमेबुत्त, एते अज्झयणा आहिया ॥ २ ॥ जइणं
मंते । समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइय दसाणं तच्चस्स बग्गरस दस । यदि अहो भगवन्! श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी धर्मकी आदिके करता यावत् मुक्ति पधारे उनोंने अनुत्तरोपपातिक दशाका दसरे वर्गका उक्त अर्थ कहा,तो अनुत्तरोपपातिक दशाके तासरे वर्गका क्या अर्थ कहा॥१॥निश्चय, हे अम्बू ! श्रमण यावत् मुक्ति प्राप्त हुवे उनोंने तीसरे वर्ग के दश अध्ययन कहे हैं,
उन क नाम- धन्ना अनगार का, २ सुनक्षत्र अनगार का, .३ ऋषिदास का, ४ पेल्लक पुत्र का १५ राम पुत्र का, ६ चन्द्र कुमार का, ७ पोष्टि पुत्र का, ८ पोढाल कुमार का, ९ पोटिला साधु का,800
और १.० विहल्ल कुमार का. यइ दश अध्ययन कहे हैं ॥ २॥ यदि अहो भगवन् ! अपण भगवंत।
48488 तृतीय-वर्गका प्रथम अध्ययन 4888
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