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________________ - 48 अनुवादक-बालबमचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 8 अट्ठमस्स अंगरस अंतगड दसाणं अयम? पण्णते, नवमस्सणं भंते ! अंगरस अणु. त्तरोवाई दसाणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते ? ॥ ३ ॥ तएणं से सुहम्मे अणगारे जंबू अणगार एवं वयासी-एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं नवमस्स अंगरस अणुत्तरोववाई दसाणं तिणि वग्गा पण्णत्ता ॥४॥ जइणं भंते ! समणेणं जाव संपत्तणं नवमरस अंगस्स अणुत्तरोववाई दसाणं तिणिवग्गा पण्णत्ता,पढमस्सणं भत्ते! बग्गरस अणुत्तवियाई दसाणं समेणण जाव संपत्तेणं के अज्झयणा पण्णत्ता? ॥५॥ एवं खलु जंबू! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाई दसाणं पढमस्स वग्गस्स दस नमस्कार कर पूछने लगे कि-अहो भगवान ! यदि श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी यावत् मोक्ष पधारे उनोंने आठवा अंग अंतकृत दशांग का उक्त अर्थ कहा तो नववा अंग अनुत्तरोक्वाइ दशांगका क्या अर्थ कहा है? ॥॥तब बे सौधर्म स्वामी जंबू स्वामी से यों कहने लगे-यों निश्चय है जबू! श्रमण भगवंत यावन् मुक्ति पधारे उनोंने मरवा अंग अनुत्तराववाइ दशाके तीन वर्ग कहे हैं॥४॥ यदि अहो भगवाग! नववा अंग अनुत्तरोक्वाइ दशाके तीन वर्ग कई हैं तो अनुत्तरोववाइ के दशाके प्रथम वर्ग के कितने अध्ययन ॥५॥ यों निश्चय है जंयू ! श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी यावत् मुक्ति पधारे उनीने प्रथम प्रकाशक राजाबहादुर लालामुखदवसहायजी ज्वालाप्रसाद Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600257
Book TitleAgam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages52
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_anuttaropapatikdasha
File Size8 MB
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